फिल्मों को टैक्स फ्री करना समाज हित में है, कला हित में या सत्तारूढ़ पार्टी के लिए फायदेमंद है ? ये बड़ा सवाल है। फिलहाल सरकारी राजस्व का नुक़सान करके कुछ खास फिल्मों को प्रोत्साहित करने की इस ज़र्रानवाजी को सियासी कनेक्शन से जोड़ा जाता रहा है। एक ज़माने में उत्तर प्रदेश में टैक्स फ्री की संस्कृति तेज़ी से परवान चढ़ी थी। ये उन दिनों की बात है जब यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार हुआ करती थी जिसमें अमर सिंह की तूती बोलती थी। ग़रीबों, मज़दूरों और किसानों की समाजवादी पार्टी फिल्म सितारों और पूंजीपतियों/उद्योगपतियों से ग्लेमरस होकर अपने मूल स्वरूप व मूल उद्देश्यों/विचारधारा से भटकना शुरू हो गई थी। अमर सिंह आएदिन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से फिल्मी सितारों को मिलवाते रहते थे।
और सपा सरकार में ख़ूब फिल्मों को मनोरंजन कर से मुक्त कर दिया जाता था। रुपहले पर्दे की चकाचौंध सपाई कनेक्शन के सिलसिले में फिल्मी लोगों को चुनावी टिकट दिया जाता था और उनके मंहगे शो सैफई मोहत्सव की जान बनते थे।
जयाप्रदा,जया बच्चन, राज बब्बर, संजय दत्त, मुजफ्फर अली, नफीसा अली, मनोज तिवारी और तमाम फिल्मी हस्तियों को मुलायम के ज़माने की सपा ने पार्टी से जोड़ा था, किसी को चुनावी टिकट दिया गया तो किसी को राज्यसभा भेजा गया। उन फिल्मी सितारों और फिल्म निर्माता-निदेशकों की फिल्मों को सरकारों में टैक्स फ्री किया जाता था जो अमर सिंह के ख़ास होते थे।
फिल्मों को टैक्स फ्री करने से राजस्व का नुक़सान होता है। और राजस्व के नुकसान से गरीब जनता की कल्याणकारी योजनाओं में कहीं न कहीं कमी ज़रूर आती होगी। हांलांकि सरकारों द्वारा किसी ख़ास फिल्म को कर मुक्त करने का उद्देश्य होता है कि ये फिल्म समाज को अच्छा संदेश देने वाली हैं। टैक्स नहीं लिया जाएगा तो फिल्म के टिकट की क़ीमत करीब आधी हो जाएगी जिससे कि अधिक से अधिक लोग ऐसी फिल्म को देखेंगे। आम जनता को सही दिशा अथवा पुख्ता इतिहास से अवगत कराने वाली फिल्म समाज का नैतिक विकास करें, ये उद्देश्य बताकर सरकारें कुछ खास फिल्मों को मनोरंजन कर मुक्त करती हैं।
हांलांकि सरकारों पर आरोप में भी लगते हैं कि टेक्स फ्री करने की मंशा के पीछे दूसरे कारण होते हैं। कहा जाता है कि राजनीति दल फिल्मी लोगों को फायदा पंहुचा कर अपना मतलब निकालते हैं। मतलब भी अलग-अलग पत्रकार के होते हैं। पार्टी की विचारधारा का प्रचार-प्रसार.. यदि पार्टी सरकार में है तो सरकार की प्रशंसा और तमाम और भी काम। आम जनता बड़े पर्दे के बड़े कलाकार से जुड़ी होती है इसलिए पर्दे के सितारे राजनीतिक दलों के लिए बहुत मुफीद होते हैं।
कहते हैं फिल्म की दुनिया कुछ ज्यादा ही प्रोफेशनल होती है। दुनियां जहां की सियासत से दूर इस दुनिया के लोगों को कर्म पूजा पर अधिक विश्वास है। इनकी आस्था इनका व्यवसाय है और इनकी राजनीतिक च्वाइस वो हैं जो सत्ता में हों और इन्हें किसी भी सूरत में फायदा दें। ये किसी एक राजनीतिक दल के नहीं हो उसके हो जाते हैं। फिल्म वालों को सरकार से तमाम जरुरतें पड़ती हैं जिसमें राज्य सलकारों से फिल्म टेक्स फ्री करवाना अहम स्वार्थ होता है। सरकारों को जनहित की योजनाओं का खर्च चलाने के लिए तमाम टैक्स लेना होते हैं, इसमें आबकारी और मनोरंजन विभाग सबसे अधिक टेक्स वसूलता है। जब कोई फिल्म टेक्स फ्री हो ताज़ी है तो उसे देखने वालों की संख्या दो गुनी से अधिक हो जाती है। जिससे कि उस फिल्म के कलाकारों और निर्माता-निदेशक को लाभ मिलता है। जिस पार्टी की सरकार मनोरंजन मुक्त करने का लाभ देती है वहीं पार्टी इन कलाकारों से अहसान का बदला एहसान से लेती है।