मुसलमान है तो मारा जा सकता है!

जैनी इस देश का सबसे शांतिप्रिय समुदाय है। उनके एक बुजुर्ग व्यक्ति की पीट पीट कर हत्या इसलिए कर दी गई कि उसे मुसलमान समझा गया। ह्त्या करने वाला, उस नफरती मानसिकता को फैलाने वाले और इस खबर को देने वाली मीडिया तीनों का रुख यह रहा कि पहचान की गलती हो गई। मुसलमान समझा था। मतलब हत्या कुछ खास नहीं मगर गलत पहचान समस्या है। अगर मुसलमान होता तो सही था। जैनी समाज भी जो देश में उद्योग, व्यापार, शिक्षा, नौकरी, मीडिया सब में महत्वपूर्ण स्थान रखता है इस हत्या पर चुप है। वह भी शायद मान रहा है कि हमारा आदमी गलती से मारा गया। मुसलमान के धोखे में। हमें थोड़ी मारा।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

आठ साल से हो रही लींचिंग में यह एक नया और बहुत खतरनाक फैक्टर आया है। जो बताता है कि अब किन्हीं खास लोगों की लिंचिंग जायज है। वैसे तो कारण हों तो भी आप किसी को नहीं मार सकते। मगर आठ साल से फैलाई जा रही नफरत और विभाजनकारी राजनीति अब यहां तक आ गई है कि किसी को मारने के लिए किसी कारण की भी जरूरत नहीं है।

May be an image of 1 person and text

नफरत और विभाजन की विचारधारा ने ही महात्मा गांधी की हत्या करवाई थी। मगर उसके कारण आज तक बताना पड़ते हैं। वह हत्या एक ऐसा कलंक है जो नफरती विचारधारा के माथे पर आज भी चिपकी हुई है। और इसे हटाने के लिए कभी वे इसे गांधी वध कहते हैं, कभी हत्या के कारण बताते हैं। मगर न देश में और न देश के बाहर कहीं भी वे गांधी की हत्या को स्वीकृति दिला पाए। गोडसे का खूब महिमामंडन किया। गांधी को गालियां दीं। गाली देने वालों को सम्मान किया। उन्हें सांसद बनाया। 74 साल हो गए यह सब करते करते मगर वह कलंक आज भी मिटने का नाम नहीं ले रहा। कोई कारण बताना काम नहीं आ रहा। इसलिए अब कारण बताने की जरुरत ही खत्म की जा रही है। मुसलमान समझ कर मारा यह कहना, लिखना बताता है कि जो गांधी वध कहकर स्थापित करने की कोशिश की थी उसे ही अब नए रूप में किए जाने की तैयारी हो रही है। वह नया रूप क्या है? वह है किसी को भी वध्य घोषित कर दो। वध्य है मतलब स्वीकृत है। यह बार बार मुसलमान समझे थे कहने का यही अभिप्राय है।

दलित, महिला, गरीब, दूसरी कमजोर जातियों के बाद अब इस श्रेणी में मुसलमानों को भी डालने की कोशिश शुरु हो गई है। अवध्य और वध्य का नया क्लासिफिकेशन शुरू हो गया है। मगर क्या यह हो पाएगा? संभव है?

मुसलमान होना ही सिर्फ लिंचिंग का, हत्या का कारण बन जाए इसे सभ्य समाज, संविधान, न्याय व्यवस्था, दुनिया क्या मान लेगी। इससे पहले दलित पर सदियों से सिर्फ इसीलिए अत्याचार होते रहे कि वह दलित है। अन्य पिछड़ी जातियों पर भी। महिला पर भी और दूसरे गरीबों पर भी। आज भी दलित का घोड़ी पर चढ़ना, मूछें रखना, गांव में नई बाइक पर आना उसकी हत्या का कारण बन जाता है। लेकिन मुसलमान के लिए अब यह नया माहौल बनाया जा रहा है कि उसकी हत्या के लिए किसी कारण की भी जरूरत नहीं।

यह बहुत खतरनाक और देश को बर्बाद कर देने वाली सोच है। अगर समय रहते इसे नहीं रोका गया तो इसके क्या परिणाम होंगे किसी को नहीं पता। आग लगाने वालों को तो बिल्कुल ही नहीं। राहुल गांधी ने बहुत सही कहा है कि भाजपा ने पूरे देश में केरोसिन छिड़क दिया है। उनकी इस चेतावनी को देश को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। लेकिन भाजपा ने इसे समझने की कोशिश किए बिना उल्टा कांग्रेस पर आरोप लगा दिया कि उसने तो 1984 में ही छिड़क दिया था। इसका क्या मतलब हुआ। अगर मान लो कांग्रेस ने छिड़क दिया था तो आप भी ऐसा करोगे? यह कौन सा तर्क हुआ कि उसने गलती की थी तो हम भी कर रहे हैं।

देश में दुनिया में क्रिया प्रतिक्रिया हमेशा से होती रही। मगर इसे कभी अच्छी बात नहीं समझा गया। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। ठाकुरों से इक्कीस बार धरती खाली करा लेने की कहानी परशुराम जयंती पर हर साल  सुनाई जाती है। बौद्धों के नरसंहार उनके मठ तोड़ने का इतिहास भी है। तो क्या इन सबके बदले लिए जाएंगे? अगर ऐसा होता या हो तो क्या मानवता बचेगी? बदला लेने का तर्क कोई नहीं दे सकता। न यह कह सकता है कि उसने क्यों किया था? इतिहास की गलतियां सीखने के लिए होती हैं। उदाहरण देने और दोहराने के लिए नहीं। लेकिन 2002 में गुजरात दंगों के समय उस समय वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्रिया प्रतिक्रया का उदाहरण दिया था। वह एक नई शुरूआत थी। और अब जब राहुल एक बड़े खतरे की चेतावनी दे रहे हैं तो कहा जा रहा है कि आपने भी किया था। 1984 की पीड़ा लोग भूल गए हैं। पंजाब में हर पार्टी की सरकार बन गई। अकाली- भाजपा, कांग्रेस और अब आप। माफी मांग कर कांग्रेस देश को उस नफरती और विभाजनकारी समय से निकाल लाई थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अलावा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी माफी मांगी है।

क्या भाजपा कभी माफी मांगेगी? उसकी तो सांसद प्रज्ञा ठाकुर गोडसे का समर्थन करती हैं। भाजपा का कोई नेता गोडसे के खिलाफ नहीं बोलता है। गांधी की हत्या नफरती माहौल की वजह से ही हुई थी। वही आज राहुल गांधी ने कहा है। पूरा देश इस नफरत और विभाजन की राजनीति के चपेट में है। यूपी चुनाव के बाद लगता था यह कम हो जाएगा। मगर यह तो और तेज कर दिया गया। मगर प्रधानमंत्री मोदी एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं। पूरा देश कह रहा है कि प्रधानमंत्री को शांति की अपील करना चाहिए। मगर प्रधानमंत्री कश्मीर में मारे गए एक युवा कश्मीरी पंडित और यहां जैन समुदाय के बुजुर्ग की पीट पीट कर हत्या पर भी कुछ नहीं बोल रहे।

नफरत और विभाजन की राजनीति का यही आफ्टर इफेक्ट होता है। फैलाने वालों में भी हिंसा, क्रूरता और अहंकार बढ़ता जाता है। लेकिन भारत जैसे विविधता वाले देश में यह सब हमेशा के लिए नहीं चल सकता। देश को जोड़े रखना बहुत मुश्किल काम है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल की वह बात हमेशा याद रखना चाहिए और उसे गलत सिद्ध करने के लिए सारी कोशिशें करते रहना चाहिए जो उन्होंने भारत की आजादी से पहले नेता विपक्ष के तौर पर कहा था। उन्होंने ब्रिटेन की संसद में कहा था कि सत्ता दुष्ट, बदमाशों और लूटेरों के हाथ में चली जाएगी। वे हवा और पानी पर भी टैक्स लगा देंगे। विभाजन की राजनीति करके भारत को खत्म कर देंगे। नेहरू ने अपनी पूरी ताकत लगाकर चर्चिल को गलत साबित किया। प्रेम, भाईचारे, प्रगतिशील सोच से भारत को लगातार मजबूत किया। कांग्रेस ने भारत के खत्म हो जाने की चर्चिल की भविष्यवाणी को गलत साबित करते हुए गोवा, सिक्किम का विलय करके, पाकिस्तान के दो टुकड़े करके एक ताकतवर देश 2014 में भाजपा को सौंपा था।

लेकिन आज भाजपा को भी मालूम है और संघ को भी कि देश की हालत क्या है। जिस डर से मीडिया नहीं बोल रहा। न्यायपालिका सहित दूसरे इन्स्टिट्यूशन नहीं बोल रहे उसी डर से भाजपा के नेता भी खामोश हैं या हां में हां मिला रहे हैं। मगर मालूम सबको है। उन्होंने भी अपनी पूरी जिंदगी राजनीति में लगाई है वे देश और समाज की नब्ज जानते हैं। राहुल ने गलत नहीं कहा। नफरत और विभाजन का केरोसिन हर जगह फैला हुआ है। मामला केवल हिन्दू मुसलमान का नहीं है। दलित, ओबीसी का उससे ज्यादा है। विभाजन और नफरत की राजनीति के सबसे बड़े और निरीह शिकार तो वे ही हैं। मुसलमानों की वजह से आंच उन पर कम आ रही है। लेकिन अगर मुसलमान बीच से हट जाएं तो घृणा की वह लपटें सीधे दलित, आदिवासी, ओबीसी पर आएंगी। सब पर आएंगी। नफरत सब एक दूसरे से करेंगे। और प्रेम के जिस मंत्र से नेहरू ने एक दूसरे को बांधा था वह टूट जाएगा।