सपा+प्रसपा+ राष्ट्रीय लोक दल+सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी+AIMIM+ पीस पार्टी+आज़ाद समाज पार्टी।
सपा+प्रसपा का मूल वोटर यादव और मुस्लिम ही है। धरातल पर इनके अलावा केवल गेहूँ में घुन बराबर ही वोटर है इन दोनों पार्टियों के पास. राष्ट्रीय लोक दल को साथ लेने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट वोटों का ध्रुविकरण होगा और आपको उसका सीधा लाभ प्राप्त होगा. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का मूल वोटर राजभर समाज है और कुछ प्रतिशत आदिवासी समाज है , पूर्वांचल के कुछ हिस्सों में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन आपको लाभ पहुंचा सकता है. आज़ाद समाज पार्टी अभी नवनिर्मित पार्टी है, चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ युवा हैं और भीम आर्मी का नाम किसी से छुपा नहीं है पूरे देश में, एक मौका इस युवा को भी देना चाहिये और महागठबंधन में शामिल करना चाहिय, चूंकि रावण मूलत दलितों की आवाज़ उठाते हैं, दलितों की लड़ाई लड़ते हैं तो संभत: दलितों का कुछ प्रतिशत वोट महागठबंधन की झोली में आ ही जायेगा. बुलंदशहर विधानसभा सीट के उपचुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी ने अपनी उपस्थिती दर्ज कराते हुए सपा रालोद और कांग्रेस से भी ज्यादा वोट हासिल किये हैं।
AIMIM पार्टी जिसकी चर्चा पूरे यूपी में जोरो से हर गली मोहल्ले में हो रही है, कुछ अपवाद को छोड़ दिया जाये तो पूरे देश में औवेसी के प्रति मुसलमानों की दिलचस्पी साफ देखी जा सकती है और असद औवेसी मुसलमानों के नेता के रूप में पहचाने जाने लगे हैं, मुसलमानों में ओवैसी की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है, AIMIM का मूल वोटर मुसलमान ही है, उत्तर प्रदेश की एक बड़ी संख्या मुस्लिम वोटरो की है जो हार जीत में बहुत अहम निर्णायक भूमिका में रहता है. समाजवादी पार्टी की गाड़ी बिना मुस्लिम वोट बैंक के आगे बढ़ ही नहीं सकती और 2022 में मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा इस बार औवैसी की तरफ देख रहा है , उसे उस बात से कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है कि उसके ओवैसी को वोट करने से सीधा सीधा लाभ भाजपा को होगा, उस तबके को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला कि भाजपा हारे या जीते वो वोट केवल ओवैसी को ही देगा. दूसरी ओर पीस पार्टी को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता 2012 के चुनाव में चार सीट जीतकर अपनी उपस्थिती दर्ज कराने वाले डॉ. अय्यूब बीते दस महीनों से पार्टी के संगठन निर्माण पर लगे हुए हैं। उनके पास संगठन है, लेकिन AIMIM के पास सिर्फ ओवैसी है।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को यह समझना होगा कि उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के भीतर ओवैसी की चर्चा बहुत जोरो शोरों से चल रही है जिसके परिणाम स्वरूप समाजवादी पार्टी अपनी लाख कोशिशों के बावजूद किसी भी सूरत में 2022 का चुनाव जीत सकने में असफल ही साबित होगी, समाजवादी पार्टी को संजीदगी से समझना होगा कि मुसलमान वोट ही उसका कोर वोट बैंक यदि इसमें सेंधमारी हुई तो परिणाम समाजवादी पार्टी के लिये घातक ही सिद्ध होंगे. आज़म ख़ान प्रकरण पर समाजवादियों को चुप्पी ने भी अखिलेश यादव की भूमिका संदिग्ध बनाया है।
यदि मुस्लिम वोट को समेटना है तो समयनुसार अखिलेश यादव को ओवैसी से हाथ मिला लेने में ही भलाई है क्योंकि इसके दो लाभ होंगे एक तो मुस्लिम वोट कहीं किसी और अन्य पार्टी में ना बंटकर बेझिझक सीधा इस गठबंधन को ही वोट करेगा दूसरा आपके परंपरागत यादव वोट बैंक की हकीक़त भी आपके सामने आ जायेगी कि उसने महागठबंन को वोट किया है या किसी अन्य दल को वोट किया है, दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा.
सबसे महत्वपूर्ण बसपा सुप्रिमों मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर जो चक्रव्यूह आपके प्रत्याशियों के सामने मुस्लिम प्रत्याशियों को खड़ा करने का रचा है वो भी धाराशायी हो जायेगा क्योंकि मुस्लिम वोट बीना इधर उधर देखे सीधा महागठबंधन को ही जायेगा, और यदि बसपा+AIMIM का गठबंधन हो जाता है जोकि भाजपा पूरे प्रयास में है कि मायावती और ओवैसी का गठबंधन हो तो सीधा सीधा लाभ उसे ही प्राप्त हो , जो गलती बिहार में तेजस्वी यादव ने की थी मैं उम्मीद करता हूँ शायद अखिलेश यादव उनकी गलती से कुछ सीखेंगे वरना परिणाम बिहार नतीजों से भी बुरे होंगे , तेजस्वी यादव तो इतनी भयानक इंकंबेन्सी होने पर भी सरकार नहीं बना पाये और सम्मानजनक सीटें हासिल कर मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में ही विराजमान हुए , यदि अखिलेश यादव को यह नहीं समझ आया तो उनके लिये सम्मानजनक सीटें जीतने में भी लाले पड़ जायेंगे.
अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी से हाथ मिलाकर गठबंधन कर चुनाव लड़ा और उनका यह प्रयोग पूरी तरह विफल रहा, नतीजा आज विधानसभा में उनकी सीटें देख लीजिये वो भी मुस्लिम वोट बैंक के सहारे ही जीती हुई सीटें हैं , उसके बाद अपने पिता नेता जी मुलायम सिंह यादव के विपरीत जाकर 2019 लोकसभा चुनाव में मायावती से हाथ मिलाया परिणाम स्वरूप अपने घर तक की सीटे हार गये, यदि दो प्रयोग कर चुके अखिलेश यादव को विफलता ही हाथ लगी है तो इस तीसरे प्रयोग को उन्हें करने में हिचक नहीं करनी चाहिये जबकि यह प्रयोग उनके लिये सफल ही साबित होगा, अपने मन के भीतर से इस आशंका को उन्हें निकालना होगा कि हमारा हिन्दू वोट बैंक हाथ से चला जायेगा, आपके पास है कि कितना हिन्दू वोट भईया जी जिसका भय है आपको, आपको तो भयभीत किया जाता है और आप इसी भय की वजह से मंच से मुस्लिम समाज का नाम लेने तक से डरने लगे और भूल बैठे की एक मुस्लिम वोट बैंक ही आपका हार्डकोर वोटर है जिसके बलबूते आपकी सरकार बनती बिगड़ती है, आपकी सत्ता की चाभी केवल यादव वोट बैंक और मुस्लिम वोट बैंक ही रहा है इस सच्चाई को स्वीकारिये और इसी के साथ आगे बढ़िये बाकी अन्य जाति बिरादरियों के वोट बैंक तो केवल आपके पास दर्शक के रूप में ही रहे हैं यदि आपको वोट देते हैं तो अच्छी बात है उनका सम्मान कीजिये नहीं देते हैं तो यह उनकी स्वतंत्रता है जिसे चाहे वोट दें, ब्राह्मण वोट ठाकुर वोट हासिल करने के चक्कर में आपके अपने हार्डकोर वोट बैंक को हाथ से फिसल जाने में कौन सा भला होगा आपका, यदि अखिलेश यादव में समझदारी होगी तो उन्हें यह समझना चाहिये कि आम मुसलमानों के भीतर भी औवेसी को लेकर एक सॉफ्ट कॉर्नर है यदि सपा AIMIM को गठबंधन में शामिल करती है तो पूर्ण रूप से एक मुश्त मुस्लिम वोट बैंक गठबंधन की ही झोली में गिरेगा वरना तितर बितर होना मुस्लिम वोट का तय है जिसका सबसे अधिक नुकसाम समाजवादी पार्टी को ही होगा.
अभी एक साल है चुनाव में अखिलेश यादव को चाहिये कि अपने मूल वोटर यादवों को एक पंक्ति में लाकर खड़ा करें जिसका बड़ा हिस्सा 2017 – 2019 के चुनाव में भाजपा के साथ गया था , दूसरी तरफ यदि AIMIM को उत्तर प्रदेश में पैर जमाने हैं तो अन्य मुस्लिम दलों को साथ लेकर अपना एक फ्रंट तैयार करे और सभी को चुनाव में हिस्सेदारी दे , बिहार में असद औवेसी ने जो गलती की थी वो यूपी में ना दोहरायें , यदि आप अन्य मुस्लिम दलों को साथ में लेकर चलेंगे और उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का एक बड़ा फ्रंट तैयार करने में कामयाब हो जायेंगे तो आपको सफलता भी बड़ी प्राप्त होगी और अविश्वास का भाव भी समाप्त हो जायेगा.
अब आता हूँ कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी के किरदार पर , यदि सच में वो भाजपा को यूपी से साफ करना चाहते हैं तो बिना सोचे समझे भाजपा के प्रत्याशी के सामने उसी जाति के प्रत्याशी को उतारे जिस जाति के प्रत्याशी को भाजपा ने खड़ा किया हो क्योंकि धरातल पर दोनों ही पार्टियों का वोट बैंक के रूप में कुछ बहुत ज्यादा मौजूद नहीं है , कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले रायबरेली अमेठी जैसे जिलों में कांग्रेस का भी ज्यादा कुछ शेष रहा नहीं है, बीच में प्रियंका गाँधी यूपी में सक्रिय जरूर हुई लेकिन जिस गति से सक्रिय हुई थी उसी गति से विलुप्त भी हो गई, जब आपको हारना ही है तो महागठबंधन को फायदा पहुंचा कर ही हारिये ना साहब.
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार एंव राजनीतिक विश्वेषक हैं, ये उनके निजी विचार हैं)