कृष्णकांत
यूपी सरकार प्रियंका गांधी के सचिव को चिट्ठी लिखकर कह रही है कि आप गाजियाबाद और नोएडा में 1000 बसें उपलब्ध करा दीजिए. उत्तर प्रदेश या केंद्र सरकार का कौन सा विभाग प्रियंका गांधी संभालती हैं जो वे बसें भेज दें? जनता के टैक्स से पैसों से भरा खजाना किसके नियंत्रण में है? जनता ने सरकार सत्ता किसे सौंपी है? अगर जनता सामूहिक रूप में संकट में है तो उन्हें बचाने का जिम्मा सरकार का है या प्रियंका गांधी का है?
अगर यह जिम्मा प्रियंका गांधी का है तो यूपी सरकार को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए और सत्ता प्रियंका गांधी को सौंप देना चाहिए. लेकिन विपक्ष ऐसा मृतप्राय है कि उसके मुंह में जबान ही नहीं रह गई है. ये काफी मजेदार है, लेकिन बेहद घिनौनी राजनीति है.
केंद्र और यूपी दोनों जगह सत्ता में बीजेपी है. लेकिन यूपी सरकार के गृह विभाग ने प्रियंका गांधी के सचिव को खत लिखा है. कहा है कि 500 बसें गाजियाबाद में और 500 बसें नोएडा में उपलब्ध करा दीजिए. सभी बसों को दोनों जिलों के जिलाधिकारी रिसीव करेंगे. सरकार की ओर से दिन के 12 बजे तक इन बसों को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं.
अपर मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी की ओर भेजे गए खत में कहा गया कि आप लखनऊ में बस देने में असमर्थ हैं और नोएडा-गाजियाबाद में बस देना चाहते हैं. तो आप गाजियाबाद में 500 और नोएडा में 500 बसें उपलब्ध करा दें.
पहले कांग्रेस का आरोप था कि उनकी बसों को यूपी सरकार परमिशन नहीं दे रही है. कल प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके परमिशन देने के लिए यूपी सरकार का आभार जताया. अब आज मुख्यमंत्री योगी के मीडिया सलाहकार ने दावा किया है कि कांग्रेस की बसों की लिस्ट में कई नंबर तिपहिया वाहन, मोटरसाइकिल और कारों के हैं.
तो क्या कांग्रेस सिर्फ घटिया राजनीति कर रही है? क्या सरकार ने बाइक और आटो के नंबरों पर इजाजत दे दी थी और आज आरोप लगा रही है? तो क्या राजस्थान से बसें भरकर चलने की बात झूठ है? क्या नोएडा बॉर्डर पर बसें नहीं खड़ी थीं, जैसा कांग्रेस दावा कर रही थी? यह भी अद्भुत है.
अब ये दोनों पार्टियां घटिया किस्म की राजनीति कर रही हैं और यूपी सरकार की भूमिका बेहद घिनौनी और गैरजिम्मेदाराना है, क्योंकि वह सत्ता में है. यूपी सरकार प्रियंका गांधी से किस हैसियत से बसों की अपील कर रही है? क्या प्रियंका गांधी यूपी सरकार चलाती हैं? यह ऐसे समय में हो रहा है जब लाखों लोग रास्ते में फंसे हैं और भूखे प्यासे पैदल अपने घरों की ओर भाग रहे हैं. यूपी में दो और पार्टियां हैं जिनका कहीं नामो-निशान नहीं मिल रहा.