पगड़ी, टीका, बिंदी, तिलक से परेशानी नहीं तब हिजाब से ही परेशानी क्यों?

मोहम्मद राशिद अल्वी

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एक अकेली लड़की को एक झुंड उसके दुपट्टे को उतारने के नारे लगाता है।उसकी हूटिंग की जाती है।एक दुपट्टे से हिजाब करने यानी अपने सर और गले को दुपट्टे से ढकने के लिए मुस्लिम छात्राओं को स्कूल से वाहर कर दिया जाता है शिक्षा से वंचित कर दिया जाता है।ये उन छात्राओं के लिए कितनी बड़ी मानसिक प्रताड़ना होगी।ये सब घटना क्रम एक सभ्य भारत में चलता है जिसकी संस्कृति की पूरी दुनिया में मिसाल है।एक सभ्य भारत की एसी स्थिति देखकर हर किसी का मन विचलित हो जाना चाहिए था।

आखिर ये विविधता तो नहीं हो सकती,किसी की पगड़ी, टीका, बिंदी, तिलक यहां तक कि मैंने कुछ विशेष धर्म के बच्चों को पीछे चोटी तक रख कर कालेज में आते हुए देखा है जब इन पर किसी को कोई परेशानी नहीं तो हिजाब से परेशानी क्यों? विविधता को समाप्त कर एकरूपता को थोपना,क्या यह सही है?

मुस्लिम लड़कियां हिजाब को अपनी आन समझती हैं। हिजाब में उनकी आस्था है।वो लड़कियां इंसाफ की इस उम्मीद से न्यायालय जाती हैं कि हमें इंसाफ मिलेगा।छात्राएं उम्मीद कर रहीं थीं न्यायालय यह तय करेगा कि उनकी आस्था को कोई दूसरे धर्म या मत के लोग तय नहीं कर सकते। उनकी आस्था,सर और गले को दुपट्टे से ढकने कि बजह से उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता।भारत का संविधान हर किसी को अपने धर्म और आस्था की स्वातंत्रता देता है।क्या मुस्लिम लड़कियां सर पर दुपट्टा रखकर पढ़ नहीं सकती?

कुछ लड़कियां हिजाब करने मतलब अपने सर को दुपट्टे से छिपाने के लिए या दुपट्टा औढ़ने के लिए न्याय मांग रहीं थीं। फैसला उनके हक में नहीं आया। में एक विधिक छात्र हों और इस फैसले पर विचार करते हुए जब मैंने संविधान के अनुच्छेद 25,29,14 का अध्ययन किया,में असमंजस में पढ़ गया कि विधि की परिभाषा में इस फैसले में न्याय को कैसे परिभाषित करूं?फैसला उनके सर से दुपट्टा उतारने यानी हिजाब न करने का आया है।और हिजाब को इस्लाम से अलग भी कर दिया।कोर्ट ने अपने पहले पाइंट में कहा है के हिजाब इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है।इस बिंदु से में सबसे ज्यादा असमंजस में हूं।इस्लाम धर्म का प्रथम स्रोत क़ुरान है जिसे मुस्लिम विधि के अंतर्गत भारत का संविधान वल्कि पूरी दुनिया क़ुरान को इस्लाम का प्रथम स्रोत मानती है।याची जिसका ताल्लुक इस्लाम से है उसकी और से कहा गया था हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है। इस सम्बंध में क़ुरान की आयतों की दलील भी दी गई थी। हिजाब अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है छुपाना। क़ुरान की सूरा ए नूर और सूरा ए आह़ज़ाब में हिजाब का वर्णन किया गया है।क़ुरान इस्लाम का प्रथम स्रोत है,क़ुरान से साबित भी हो रहा है। उसमें कही गयी हर एकबात इस्लाम का अभिन्न अंग है। फिर भी जब कोर्ट ने टिप्पणी की है हिजाब इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। किन्तु फिर भी हिजाब में उन लड़कियों की आस्था तो है उन्हें आस्था के आधार पर अनुच्छेद 25 के अंतर्गत उपचार नहीं मिलना चाहिए था क्या? ज़रूरी नहीं है जो बात धर्म ग्रंथों में हो उसे ही आस्था का विषय माना जायेगा।

इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने कमिश्नर हिंदू रेलिजस ऐंडाउमेंट्स मद्रास बनाम श्री एल टी स्वामियार AIR 1954 SC 282 में कहा है कि “धार्मिक स्वातंत्रा सैद्धांतिक विश्वासों तक ही सीमित नहीं है।इसके अंतर्गत धर्म के अनुसरण में किए गए कार्य भी शामिल हैं और इसमें कर्मकांड धार्मिक कार्यों संस्कृति और उपासनाओं की पद्धतियों की गारंटी है। जो धर्म के अभिन्न अंग हैं।धर्म या धार्मिक परिपाटी का आवश्यक भाग क्या है इसका निर्धारण न्यायालय द्वारा विशिष्ट धर्म के सिद्धांतों के प्रति निर्देश से किया जाएगा और इसके अंतर्गत एसी पारिपाटियां आती हैं जिन्हें समुदाय द्वारा धर्म का भाग समझा जाता है”

भारत के संविधान का अनुच्छेद – 25 सभी को अन्तकरण के आधार पर धर्म को मानने की स्वतन्त्रता देता है,तो क्या ग़ैर मुस्लिम अथवा दूसरे मत या धर्म के लोगों को तय करने का अधिकार है इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग कौन सा है या नहीं?क्या हमारी आस्था को दूसरे लोग तय करेंगे ?क्या हमारी आस्था आस्था नहीं ?क्या मुस्लिम की आस्था दूसरो पर निर्भर होगी? क्या हमें अन्तकरण के आधार पर धर्म को मानने की स्वतन्त्रता नहीं?

संविधान का अनुच्छेद 29 यह प्रावधान करता है कि भारत के किसी भी भाग में रहने वाले नागरिकों के किसी भी अनुभाग को अपनी बोली, भाषा, लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार है। और हिजाब करना इस्लामी महिलाओं की भेष-भूषा है,उनकी आस्था है,उनकी संस्कृति है। जिसे सुरक्षित रखने का इस्लामी महिलाओं का मौलिक अधिकार है आप उन्हें उनकी भेष-भूषा की बजह से शिक्षा हासिल करने से जबरदस्ती रोक नहीं सकते। और यदि कोई मुस्लिम लड़की हिजाब करने की बजह से शिक्षा से वंचित रहती हैं तो क्या यह शिक्षा के अधिकार का उलंघन नहीं है?

भारत के संविधान का अनुच्छेद 14 सभी को समता का अधिकार देता है।क्या काॅलेजो और सरकारों को ड्रेसकोड लागू करते समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14,25 का ध्यान नहीं रखना चाहिए?एक लिहाज से देखा जाए मेल और फिमेल के परिधानो में भिन्नता होती है। कोलेज या सरकार को ड्रेस कोड लागू करते समय पुरुष और महिलाओं की पोशाको का ख्याल रखना चाहिए और साथ साथ आस्था का भी।कुछ लड़कियां पेंट शर्ट नहीं पहनती हैं क्या उनकी स्वातंत्रा का ख्याल नहीं रखा जाना चाहिए? दुपट्टा महिलाओं की पोशाक का हिस्सा है।और यह भारतीय संस्कृति के अंतर्गत भी है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 के समानता का अधिकार महिलाओं को भी अपने परिधानों का अनुसरण करने की पूरी आजादी देता है। किन्तु ड्रेस कोड का रंग समान हो, उसमें किसी को कोई आपत्ती नही होनी चाहिए। मामला अब माननीय उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है उम्मीद करता हूं माननीय उच्चतम न्यायालय उचित फैसला करेगा।

(लेखक लॉ के छात्र हैं, ये उनके निजी विचार हैं)