माता सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को मुहल्ले की किसी हिंदी मीडियम स्कूल में 8वी तक पढ़ाया होता तो आज राहुल भारतीय राजनीति में बहुत सफ़ल नेता हो सकते थे। राहुल के 10 लफंगे दोस्त होते, जिन्हें लीड भी राहुल ही करते। लफंगों को पालने दुलारने और लताड़ने की कला सीख लेने के बाद राहुल देश को अच्छे से लीड करना सीख गए होते और इसी तरह वे छात्र राजनीति में झंडे गाड़ने का हुनर प्राप्त कर लिए होते। लेकिन माता सोनिया ने उन्हें थोड़ा सा जमीन से उगते ही नामी अंग्रेज़ी स्कूल में डाल दिया, फिर ले गई विदेशों के ख्यातिप्राप्त विश्व विद्यालयों में जहां उन्हें ना तो कंपाउंडर मिला, ना ही ललित और ना ही कोई टेनजेन्ट मिला। बहुत अच्छा मौका था सोनिया गांधी के पास अपने पुत्र को विश्वस्तर का बाहुबलि बनाने का, लेकिन उन्होंने उस मौके को खो दिया। जबकि तमाम गृहनक्षत्र राहुल के साथ थे। कितना बढ़िया होता यदि सोनिया राहुल के कानों में बचपन से चिंगारीयां फूंकना शुरू कर देती।
बाप का, दादा का, दादी का सबक बदला लेगा तेरा राहुल.. ऐसा कोई सीन पिक्चर में आ सकता था। सीन आया भी तो कौनसा “मैंने अपने पिता के हत्यारों को माफ किया” .. जबकि ये वो जगह है जहां लोग अपने कुत्ते को गरियाने वाले को माफ नहीं करते। पिछले महीने ही जयपुर के शिप्रापथ इलाके में एक अध्यापिका की हत्या कुत्ते को टोकने को लेकर हो गई थी। दादी और पिता की हत्या के बाद राहुल को बना दिया जाना था कल्लू से कालिया.. तो आज ये रँगे बिल्ले की जोड़ी अपनी सही जगह पर होती। लेकिन राहुल ना ही कल्लू बन सके ना कालिया.. उन्होंने बदले की भावना पर बनी सारी सुपरहिट फिल्मों को बहुत बौना करके रख दिया है। राहुल ने कहा “मेरे दिल में किसी के लिए कोई नफरत नहीं है।” मुझे राहुल के इस वक्तव्य से ईर्ष्या होती है। वे भीतर से बहुत ही शुद्ध जीवन व्यतीत कर रहे हैं। बदले की भावना और कुंठा मनुष्य के भीतर बहने वाला गन्दा नाला है जिसकी सड़ान्ध उसे सुकून शांति से जीने नहीं देती। जो कि आज लगभग हर आदमी के भीतर बह रहा है।
बहरहाल जिस देश पर आपको शासन करना है वो देश कंट्रोल कैसे होगा ये कला सीखना सबसे अहम है। डिग्रियां तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास भी बहुत है। मैंने हज़ार बार देखा है, दो दो टके के लोग कैसे कैसे लफ्ज़ इस्तेमाल करते थे मनमोहन सिंह के लिए..। एक आदमी ने तो उन्हें शिखंडी कह दिया था जिसे आज सेकुलरों ने मोदी विरोध के नाम पर हीरो बना लिया है।
हो सकता है उस समय सोनिया गांधी ने अपने पुत्र को ये सोचकर उच्च शिक्षा एवं संस्कार दिये हों कि चलो 20-30 साल बाद जब भारतीय राजनीति में राहुल का पदार्पण होगा तब देश के लोग मानसिक रूप से सभ्य एवं विकसित हो चुके होंगे। तब लोग अनपढ़ गंवारों और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के बजाय पढ़े लिखों और कुंठाविहीन सरदारों को चुनने लगेंगे। लेकिन सोनिया को नहीं पता था कि 30 साल बाद भी इस मुल्क की सुई उसी जगह अटकी हुई होगी। 30 साल बाद भी वही भीड़ गलियों में तांडव कर रही होगी। सोनिया को अंदाज़ा नहीं था कि 30 साल बाद भी यहां एक आदमी दूसरे आदमी की पहचान उसके कपड़ो और धर्म से करेगा। सोनिया को नहीं पता था कि 30 साल बाद भी हमारे भीतर का दानव बूढा नहीं होगा। सोनिया ने सोचा भी नहीं होगा कि 30 साल बाद कोई फुंसी कैंसर बन जाएगी। सोनिया ने सोचा भी नहीं होगा कि 30 साल बाद वो सब बड़ी धूमधाम से बेचा जाएगा जो आज कमाया जा रहा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)