मानवीय त्रासदी: पूरी दुनिया में हैं आठ करोड़ से अधिक शरणार्थी, जो देश से निकल आए लेकिन देश उनमें से नहीं निकलता

दुनियां भर में 8.24 करोड़ शरणार्थी हैं। ये लोग अपने-अपने देश में राजनीतिक, आतंक, भुखमरी इत्यादि के कारण मज़बूरी में अपना मातृभूमि छोड़ दूसरे देशों में शरण लेने वाले ये लोग विषम परिस्थितियों में अपना देश छोड़ कर आनन-फानन में भागते हैं तो इनके पास अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के कागज भी नहीं होते। प्रमाण पत्रों के अभाव में पढ़ा लिखा आदमी-औरत भी दूसरे देश जाकर वहां कोई अच्छी नौकरी नहीं कर सकता इसलिए कला आधारित जैसे सिलाई, बुनाई, बर्तन काम करते हैं या फिर सीधे मजदूरी करते हैं और औरतें काम वाली बाईं, मेड, हॉउस मेड या नैनी बन जाती हैं।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

एक देश से भागे लोग अपने देश के रहे नहीं और दूसरे देश उन्हें अपना मानते नहीं। तब सवाल है कि फिर आखिर वो हैं कहां के? क्या उनके पास कागज नहीं तो इस दुनियां में उनकी कोई पहचान ही नहीं है। उन्हें पढ़ने-बढ़ने का हक़ नहीं है क्या ? क्या मानव सभ्यता की इन मनुष्यों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं ? इस बाबत कुछ देशों ने कदम उठाये हैं।

उत्तरी और दक्षिणी कोरिया के बॉर्डर के बीच एक चार किमी का बफर जोन है। उत्तरी कोरिया में तानाशाही है और दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र है इस लिए वहां जाना अलाउड नहीं है। लेकिन उत्तर कोरिया से यदि कोई व्यक्ति दक्षिण कोरिया में आ जाए तो उसे तब तक रिफ्यूजी केम्प में रखा जाता है और उसे वहां कोई नौकरी ना मिल जाये। स्पेन और फ़्रांस जैसे विकसित यूरोपीय देशों में नियम है कि किसी भी तरह उनके देश में घुसा व्यक्ति यदि सात साल वहां रह जाए तो उसे नागरिका दे दी जाती है भले वो अवैध तरीक़े भागकर क्यों ना आया हो।

धार्मिक ज़िम्मेदारों से सवाल

ये तो सरकारों कि बात है लेकिन क्या धर्म इस बात का समाधान नहीं कर सकता? जिस देश पहुंचे जहाँ का खाना, पानी, रोजगार, साधन ले रहें क्या वहां कि संस्कृति नहीं अपना सकते ? आखिर आपका नया देश, मातृभूमि यही तो है अब। यदि आप चाहते हैं कि वो देश आपको खुले दिल से अपनाये तो आप उसे खुले दिल से क्यों नहीं अपना लेते? आखिर धर्म आपसे है आप धर्म से नहीं। जब आप पैसा कमाते हैं, खाना-पीना, गाड़ी कमा लेते हैं तब मंदिर मस्जिद बनवाने का बीड़ा उठाते हैं। भूखा आदमी रोटी मांगता है धर्म नहीं।

जरा सोचिये!  शरणार्थी और उस देश के निवासियों के बीच सबसे बड़ी खाई तो दोनों धर्मों का अंतर है ना तो इसे ख़त्म नहीं किया जा सकता क्या? या इसकी कीमत जीवन से ज्यादा है? मतलब आप आपने देश से तो निकल आए लेकिन देश आपमें से नहीं निकल रहा है। आज भारत में रहने वाले अफगानी शरणर्थियों ने संयुक्त राष्ट्र के दूतावास के सामने अंतराष्ट्रीय समुदाय से मदद मांगने के लिए प्रदर्शन किया। भारत में कुल 2.44 लाख शरणार्थी हैं।