पलश सुरजन
पंजाब में विधानसभा चुनावों से पहले बेअदबी के दो मामलों और उन पर हुई भीड़ की हिंसा से राजनैतिक माहौल तो गर्म है ही, इसके साथ ही सांप्रदायिक माहौल भी बिगड़ने की आशंका बढ़ गई है। शनिवार शाम स्वर्ण मंदिर में ‘रेहरास साहिब’ के पाठ के दौरान एक युवक ने मंदिर के गर्भगृह में घुसने की कोशिश। युवक की इस हरकत से नाराज़ संगत और सेवादारों ने युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी। अब पंजाब पुलिस ने उस युवक पर ही मौत के बाद उस पर ही धारा 307 यानी हत्या के प्रयास और धारा 295 ए यानी धार्मिक भावनाओं को भड़काने के तहत मामला दर्ज किया है।
हालांकि अब तक मारे गए युवक की पहचान नहीं हो पाई है। और पुलिस उसकी शिनाख्त करने में ही लगी हुई है कि वो कहां से आया था, किस इरादे से आया था। अगर वह युवक ज़िंदा रहता, और स्वर्ण मंदिर में अवांछित गतिविधियों के आरोप में उसे खुद सजा न देकर पुलिस के हवाले किया जाता तो युवक की पहचान भी उजागर हो जाती और स्वर्ण मंदिर की धार्मिक गतिविधियों में छेड़छाड़ की नीयत का पता भी लग जाता। लेकिन अब इन सवालों के जवाब शायद ही मिल पाएं। अमृतसर की इस घटना के एक दिन बाद ही पंजाब के कपूरथला में एक और युवक को निशान साहिब से बेअदबी के आऱोप में भीड़ ने पीट कर मार दिया। जबकि पुलिस का कहना है कि वह चोरी के इरादे से आया था। यानी वह युवक भी पकड़ा जाता तो और उस पर चोरी के इल्जाम साबित होते तो उसे चाहे जो सजा मिलती, सजा-ए-मौत तो नहीं होती।
धर्म की रक्षा करते-करते इंसान कब खुद भक्षक बन जाता है, इसका पता ही नहीं चलता। लेकिन पंजाब में पिछले दिनों जो घटनाएं घटीं, कम से कम कोई ईश्वर, कोई गुरु, कोई धार्मिक ग्रंथ ऐसी शिक्षा तो नहीं देता है कि एक इंसान के पीछे खून की प्यासी भीड़ लग जाए। कुछ वक़्त पहले ऐसी ही क्रूरता हमने पाकिस्तान में देखी थी। जहां पवित्र कुरआन वाले पोस्टर हटाने के आरोप में एक श्रीलंकाई नागरिक को भीड़ ने बेहद क्रूरता के साथ मार दिया था। हम कई मामलों में खुद को पाकिस्तान से बेहतर मानते हैं, लेकिन धर्म के नाम पर जो कट्टरता वहां फैल चुकी है, अब उसी का प्रसार यहां भी हो चुका है।
पिछले कुछ वर्षों में गोकशी, गौ तस्करी, धर्मांतरण जैसे आरोपों पर अल्पसंख्यकों के साथ हिंसा की कई वारदात हुई हैं। भीड़ कभी निर्दोष इंसानों को जलाकर मार देती, कभी पत्थरों से कुचलती और इस तरह अपने धर्म का झंडा ऊंचा लहराने की कोशिश करती। हालांकि इसमें इंसानियत कितने नीचे गिरती है, यह देखने की फ़ुर्सत किसी को नहीं है। इस मामले में कानून भी लाचार नज़र आता, क्योंकि जिन लोगों पर कानून के पालन की ज़िम्मेदारी है, वो खुद धर्म को कठपुतली बनाकर जनता को नचा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने शुरुआती दौर में कुछेक बार सांप्रदायिक सद्भाव की बातें कही थीं, उसके बाद उनकी आंखों के सामने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता रहा और वे कपड़ों से उनकी शिनाख़्त की बात करते रहे। इस मामले में कांग्रेस से उम्मीदें हैं कि वह कम से कम धर्म के नाम पर होने वाली इस अविचारित हिंसा को रोकेगी। लेकिन पंजाब मामले में उसने निराश ही किया है। पंजाब में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से लेकर विपक्ष के तमाम नेताओं ने स्वर्ण मंदिर में बेअदबी की कोशिश की निंदा की है।
कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने तो अपने बड़बोलेपन का परिचय देते हुए कहा कि बेअदबी कहीं हो, चाहे कुरान शरीफ की हो, चाहे भागवद गीता की हो, चाहे श्री गुरुग्रंथ साहिब की हो। बेअदबी करने वालों को लोगों के सामने लाकर फांसी लगा देनी चाहिए। उन्हें इस संविधान की सबसे बड़ी सजा देनी चाहिए। ठीक है कि सिद्धू ने सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथों की रक्षा की बात की। लेकिन उन्हें ये भी बताना चाहिए था कि जिस संविधान की बात उन्होंने की, क्या वह भीड़ को किसी की जान लेने की इजाज़त देता है। इसी तरह मुख्यमंत्री समेत तमाम नेताओं को यह बात स्पष्ट करना चाहिए कि क्या भीड़ की हिंसा उन्हें मंज़ूर है।
पवित्र ग्रंथों की, धार्मिक प्रतीकों की, महापुरुषों की, दूसरों की धार्मिक भावनाओं की इज़्ज़त करना सभी का फर्ज है। जो इस फ़र्ज़ को न निभाए, उसे कानून के हिसाब से सज़ा भी मिलनी चाहिए। लेकिन लोगों को खुद सज़ा नहीं देनी चाहिए। पंजाब में कांग्रेस सरकार अगर यह संदेश लोगों को देती तो इससे उसकी साख कम नहीं हो जाती। लेकिन अफ़सोस, धार्मिक भावनाओं को वोट के तराजू के तौलने के फेर में कांग्रेस ऐसा नहीं कर पाई।
(लेखक देशबन्धु के संपादक हैं)