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मीडिया की बेशर्मी तालमेल में कैसे है?

Sanjaya Kumar Singh
संजय कुमार सिंह

आज एक खबर सोशल मीडिया पर कई जगह दिखी – गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच में आग लगाने के आरोपी रफीक हुसैन भटुक को गोधरा शहर से गिरफ्तार किया गया। सच्चाई यह है कि प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की खबर कल ही आ गई थी और इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी भी है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर बताती है कि पुलिस ने यह जानकारी सोमवार को दी। लेकिन खबर मंगलवार को सोशल मीडिया में चर्चा में है। मुख्य धारा की मीडिया में नहीं थी इसलिए सोशल मीडिया में भी नहीं आ पाई।

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करीब 19 साल पहले हुई इस घटना में 59 कारसेवकों की मौत हुई थी और इसी के बाद गुजरात दंगा हुआ था और तब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। दंगे से निपटने और राज करने का उनका तरीका गुजरात मॉडल के नाम पर चर्चित और प्रचारित हुआ। उसी में जुमले मिलाकर 2014 के लिए चुनाव प्रचार किया गया और आशातीत सफलता मिली। इसमें 15 लाख के झूठ का भी पर्याप्त असर होगा लेकिन अब वह सब मुद्दा नहीं है। नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। नोटबंदी, जीएसटी के बावजूद 2019 का चुनाव फिर जीत गए।

चुनाव से ऐन पहले पुलवामा हुआ और इसका राज अभी तक नहीं खुला है। दूसरी तरफ सरकार अपने विरोध को राष्ट्रद्रोह मान लेती है और वैसे ही कार्रवाई करती है। मीडिया ताली बजाने लगता है। ऐसे में 2002 के अपराधी का 19 साल बाद पकड़ा जाना मायने रखता है। कई तरह से महत्वपूर्ण है। खासकर इसलिए भी, अब जब किसान आंदोलन गंभीर हो चला है, सरकार मुश्किल में है, ऊट-पटांग फैसले कर रही है वैसे में 19 साल पुराने आरोपी का पकड़ा जाना कई तरह का संकेत हो सकता है। पर मीडिया की उस खबर में कोई दिलचस्पी नहीं रही। इंडियन एक्सप्रेस ने भी अंदर के पन्ने पर सिंगल कॉलम में छापा है। हालांकि शीर्षक पर्याप्त गंभीर है।

दूसरी ओर, भारतीय मीडिया में टूल किट के लिए दिशा रवि की गिरफ्तार पर खूब खबरें हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया में आज लगातार दूसरे दिन लीड है। दूसरी ओर, जो खबरें नहीं छपीं उनकी गिनती नहीं है। जिनपर चर्चा नहीं हुई उनका हिसाब नहीं है। अर्नब गोस्वामी के व्हाट्सऐप्प लीक के अलावा भीमा कोरेगांव मामले में अभियुक्तों के कंप्यूटर में सबूत प्लांट करने का मामला अपने किस्म का पहला है। अर्नब के चैट से तो पुलवामा और बालाकोट सब की जांच जरूरी लगती है। लेकिन सरकार जांच करवा रही है अपने खिलाफ हो रही कार्रवाई की और इसमें बच्चों को भी परेशान कर रही है।

दिशा रवि की मां ने कहा है कि वे इस समय मीडिया से बात नहीं करना चाहती हैं। यह देश के हालात बताने के लिए काफी है। कल को उनका इंटरव्यू किसी विदेशी अखबार में छपेगा तो भारत की बदनामी ही होगी। पर भारतीय अखबारों को (या शासकों को भी) इसकी चिन्ता नहीं है और ना वे सच बता रहे हैं। उल्टे 21 साल की लड़की की गिरफ्तारी के समर्थन में माहौल बना रहे हैं। दिशा को एक साधारण से मामले में बेंगलुरु से गिरफ्तार कर दिल्ली लाया जाना अपने आप में विचित्र मामला है और इसीलिए देश-विदेश में चर्चा में है।

मेरे ख्याल से दिशा रवि की गिरफ्तारी के साथ ये सवाल महत्वपूर्ण है और सूचना तो है ही कि:

  • जेएनयू में मारपीट करने वाली कोमल शर्मा का पता नहीं
  • सीएए प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाला ‘रामभक्त’ आजाद है
  • पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड का पता नहीं चला
  • आतंकवादियों की सहायता के आरोपी पूर्व पुलिस अधिकारी देविन्दर सिंह को जमानत मिल गई है
  • न कोई हमारी सीमा में घुसा, न ही पोस्ट किसी के कब्जे में है – अफवाह फैलाने की श्रेणी में नहीं है
  • दिल्ली दंगे से संबंधित कई मामलों में एफआईआर ही नहीं लिखी गई और निर्दोष लोगों को फंसाने का आरोप है और उनके वकील पर छापा मारने का भी

सरकार है अपनी रफ्तार है अपना अंदाज है। और टू मच डेमोक्रेसी का प्रचार है। गजब हाल हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)