परीक्षित मिश्रा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैं इस बात को लेकर बहुत ऋणी हूँ कि एक विज्ञान के छात्र को उन्होंने इतिहास को खोद खोद कर पढ़ने वाला व्यक्ति बना दिया। अपने शहर में 1988 में संघ प्रवेश के बाद से जब सुभाष शाखा में गणवेश पहनकर जाता था तो मन में यही भावना होती थी कि अपने सबसे बड़े देशभक्त हो चुके हैं। 2009 में कांग्रेस की वापसी ने इतना मायूस किया था कि यूँ लगा अब भाजपा खत्म हो चुकी है। फिर आरएसएस के समर्थन से उठे अन्ना आंदोलन से कुछ आस जगी तो मोदी जी की भक्ति अपने सिर भी चढ़ी।
उनके भाषण सुने तो नेहरू देश के सबसे बड़े अपराधी लगने लगे। एक जर्नलिस्ट होने के नाते सोचा कि मुझे मोदी जी से भी ज्यादा इतिहास को जानना चाहिए। स्वतंत्रता आंदोलन पढ़ने लगा तो ज्ञान की बारिश में देशभक्ति और राष्ट्रवाद के रंगे सियारों का रंग उतरता दिखा। फिर तो रोज नया ढूंढने की ललक सी हो गई। कश्मीर फ़ाइल में गोएबल्स और हिटलर के प्रोपोगंडा का लिंक ढूंढते हुए ताजी जानकारी ये मिली कि हिटलर ने लॉर्ड हैलिफ़ैक्स से कहा था कि ‘गांधी को गोली मार देनी चाहिए।’ और बाद में नाजी प्रोपोगंडा से प्रभावित और स्वतंत्रता आंदोलन के समय अंग्रेजों की समर्थक हिन्दू महासभा ने ये कर भी दिया।
बात तब की है जब ब्रिटिश राजनयिक लॉर्ड हैलिफ़ैक्स 19 नवंबर, 1937 को बवेरियन आल्प्स में बर्गहोफ़ पहुंचे। उन्होंने जर्मन रीच चांसलर एडॉल्फ हिटलर को एक फुटमैन समझ लिया और उन्हें अपना कोट और टोपी सौंपने वाले थे। लेकिन, उनके साथ मौजूद विदेश मंत्री बैरन कॉन्स्टेंटिन वॉन न्यूरथ ने कहा, “फ्यूहरर! फ्यूहरर!” तब उन्हें गलती का अहसास हुआ।
लंच के बाद, हिटलर ने अपने।मेहमान हैलीफैक्स से कहा कि उनकी पसंदीदा फिल्म ‘लाइव्स ऑफ ए बंगाल लांसर’ थी, और यह फिल्म उनके (नाजी पार्टी के) युवा और विद्यार्थी वाहिनियों को अनिवार्य रूप से देखनी होती है। क्योंकि “इसमें बताया गया है कि एक उच्च नस्ल को कैसा व्यवहार करना चाहिए।”
फिर हैलीफैक्स ने भारत के पूर्व ब्रिटिश वायसराय (लार्ड इरविन) के अनुभवों की जानकारी रखने वाले हिटलर से पूछा कि भारत में ग्रेट ब्रिटेन की वर्तमान समस्याओं के बारे में क्या करना है, इस पर हिटलर जोर से चिल्लाए और कहा कि….
“गांधी को गोली मारो! यदि गांधी की हत्या का डर अहिंसके जन आंदोलनों को दबाने के लिए काफी नहीं है तो कांग्रेस के एक दर्जन प्रमुख सदस्यों को गोली मार दो। और यदि यह भी पर्याप्त नहीं है, तो 200 और इतने कांग्रेस नेताओं को गोली मारो जब तक कि ब्रिटिश आदेश स्थापित न हो जाए।”
उस रात, लॉर्ड हैलिफ़ैक्स (जिन्हें उनके साथियों द्वारा “होली फॉक्स” कहा जाता था) ने अपनी डायरी में स्वीकार किया, “उन्होंने (हिटलर) मुझे बहुत ईमानदार जवाब दिया था। और उनकी कही हर बात पर विश्वास करता हूँ जो उन्होंने कहा था। पर हमारे मूल्य और भाषा उनसे (हिटलर) से अलग थे।”
दरअसल, हिटलर उस समय भारत में जर्मनी के प्रपोगंडीस्ट और जासूसों के माध्यम से भारत के हालातों से अवगत था। जब भारत के वायसराय लार्ड इरविन और महात्मा गांधी की पहली बैठक हुई थी तो महात्मा गांधी ने उनसे कहा था कि जब तक वो पूर्ण आजादी की बात नहीं करेंगे वो नमक कानून तोड़ने के अपने निर्णय से अडिग रहेंगे। इरविन नहीं माने। गांधी ने दांडी मार्च शुरू करके नमक कानून तोड़ा। गांधी की ये अवज्ञा भारत के दिमाग में छाप छोड़ गई। जनमानस उनके पीछे जुटने लगा। जन आंदोलनों की बाढ़ आ गई और खुद इरविन को बापू के साथ अपनी दूसरी बैठक में भारत को आजाद करने पर प्रस्ताव रखने की बात माननी पड़ी। नस्लभेद की मानसिक बीमारी से ग्रसित हिटलर को ये नागवार गुजरा था।
हिन्दू महासभा पहले से ही हिटलर की नाजी पार्टी के सम्पर्क में थी। 1933 से 1939 के बीच भारत में नाजी प्रोपोगंडा मशीन का वो हिस्सा रह चुकी थी। ये कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता कि हिटलर द्वारा लार्ड हैलीफैक्स को के गांधी को गोली मार देने की राय के बाद ही 1944 में आजमखान हाउस में जिन्ना से वार्ता के विरोध में हिन्दू महासभा के सदस्यों द्वारा गोडसे के साथ मिलकर गांधी की मारने की कोशिश की गई। 1944 में पूना में गांधी जी गाड़ी को बम से उड़ाने की नाकाम कोशिश के रूप में सामने आया।
ऐसे में नाजी प्रोपोगंडा मशीन का हिस्सा रही हिन्दू महासभा द्वारा ये दलील देना कि गोडसे ने गांधी जी को पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए मारा बेमानी लगती है। परिस्थितियां इस ओर भी इशारा कर रही है कि 1942 में अंग्रेजों के समर्थन में भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा न बनी नाजी प्रोपोगंडा से प्रभावित हिन्दू महासभा के सदस्य द्वारा गांधी की हत्या हिटलर की राय पर जन आंदोलनों से घबराए अंग्रेजों द्वारा करवाई गई सुपारी किलिंग भी हो सकती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)