कनक तिवारी
इस सिलसिले में बहुचर्चित मामला मकबूल फ़िदा हुसैन का है। विवाद तब हुआ, जब भोपाल से प्रकाशित ’विचार मीमांसा’ पत्रिका ने उनकी कलाकृतियों के कुछ चित्र ओम नागपाल के लेख ’यह चित्रकार है या कसाई’ शीर्षक से छापे। महाराष्ट्र के शिव सेनाई संस्कृति मंत्री प्रमोद नवलकर की लिखित शिकायत पर आनन-फानन में भारतीय दण्ड विधान की धारा 153 (क) और 295 (क) के तहत अपराध पंजीबद्ध हुआ हुसैन के समर्थन में देश में बुद्धिजीवी अभिव्यक्ति की आजादी के पक्षधर बनकर खड़े हुए। आरोप था कि हुसैन ने सीता और शिव-पार्वती सहित हिन्दू देवी-देवताओं को लगभग नग्न अथवा अर्द्धनग्न चित्रित किया, जो धर्म और हिन्दुत्व की भावना के खिलाफ है। यह भी कि एक मुसलमान को हिन्दू देवी देवताओं के चित्रण की इज़ाजत नहीं मिलनी चाहिए। भाजपा विचारक उपाध्यक्ष के. आर. मल्कानी पूछ गए कि हुसैन ने वास्तविक अर्थों में एक भी कलाकृति बनाई है?
आलोचक ये बुनियादी बातें भूलते रहे। भारतीय अथवा हिन्दू स्थापत्य और चित्रकला में देवी देवताओं को नग्न अथवा अर्द्धनग्न चित्रित करने की परम्परा रही है। अजंता, कोणार्क, दिलवाड़ा और खजुराहो की कलाएं विकृति के उदाहरण नहीं हैं। कर्नाटक में हेलेबिड में होयसला कालखंड की बारहवीं सदी की विश्व प्रसिद्ध सरस्वती प्रतिमा एक उदाहरण है। कुषाण काल की लज्जागौरी नामक प्रजनन की देवी को उनके सर्वांगों में चित्रित किया गया है। तीसरी सदी की यह प्रतिमा नगराल (कर्नाटक) में आज भी सुरक्षित है। देवी देवताओं को वस्त्राभूषणों में चित्रित करने की परम्परा उन्नीसवीं सदी में राजा रवि वर्मा ने इंग्लैंड के विक्टोरिया काल की नैतिकता के मुहावरों से प्रभावित होकर डाली। वह पारम्परिक भारतीय मूर्तिकला से अलगाव का रास्ता था। कलात्मक सौन्दर्यबोध से सम्बद्ध नग्नता से परहेज़ करना भारतीय दृष्टिकोण नहीं रहा है। वह सीधे पश्चिम से आयातित विचार है।
मशहूर चित्रकार अर्पिता सिंह, मनजीत बावा और जोगेन्द्र चौधरी ने दुर्गा, कृष्ण और गणेश के ऐसे तमाम चित्र बनाए हैं, जिनमें नए साहसिक कलात्मक प्रयोग किए गए हैं। बंगाल में नक्काशी करने वाले हिन्दू-मुसलमान कलाकारों ने सत्यनारायण और मसनद अली पीर को एक देह एक आत्मा बताते हुए सत्यपीर के नाम से मूर्तियां बनाई हैं। यह उसी श्रद्धा का परिणाम है जो हरिहर और अर्द्धनारीश्वर की छवियों में दिखाई पड़ती है। सिक्के के दूसरे पहलू की भी बात है कि मुस्लिम कठमुल्ले ऐसे नक्काशीकारों और कलाकारों को मस्जिदों से हकाल रहे हैं क्योंकि वे हिन्दू देवताओं को चित्रित करते हैं।
हुसैन को देवी सरस्वती के कथित नग्न रेखांकन के लिए प्रताड़ित किया गया। वह उन्होंने उद्योगपति ओ.पी. जिन्दल के लिए 1976 में किया था। संयोग है अपूर्ण सरस्वती रेखांकन को बाद में हुसैन ने खुद ही कपड़े पहना दिए थे, वह भी विवाद के वर्षों पहले। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के पूर्व अध्यक्ष, प्रख्यात कला समीक्षक एस. सेट्टार ने दो टूक कहा था ’’कोई मुझे बताए देश में सरस्वती की एक भी पारम्परिक प्रतिमा कपड़ों से लदी-फंदी हो।’’ कला समीक्षक सुमीत चोपड़ा के अनुसार हमारे पारम्परिक सौंदर्यशास्त्र में शरीर में ऐसा कुछ नहीं है कि उसे दिखाने से परहेज किया जाए या छिपाकर महत्वपूर्ण बनाया जाए। उनके अनुसार आधुनिक भारतीय चित्रकला में हुसैन भी ऐसे हस्ताक्षर हैं जो हमारी लोक संस्कृति की छवियों को आधुनिक माध्यम और आकार देते हैं।
मशहूर चित्रकार अकबर पदमसी को भी शिव और पार्वती की कथित नग्न मूर्तियां चित्रित करने के लिए आपराधिक मामले में फंसाया गया था लेकिन बाद में न्यायालय ने विशेषज्ञ राय लेने के बाद छोड़ दिया। कलात्मक दृष्टि का दावा करने के बाद हुसैन के आक्रमणकारी यह भी फरमा सकते थे कि शिव और पार्वती के नग्न चित्रों को देखकर उन्हें वह गुस्सा नहीं आता जो हुसैन द्वारा किए गए सीता के चित्रण से हुआ है क्योंकि शिव और पार्वती को इन रूपों में देखने की उनकी सांस्कृतिक आदत हो गई है!
हुसैन ने इंदौर और धार में भी कलात्मक शिक्षण पाया। 1996 में धार में ग्यारहवीं सदी की निर्मित भोजशाला पर बजरंग दल ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद की तर्ज पर जबरिया कब्जा करना चाहा। राजा भोज के इस विश्वविद्यालय में हिन्दू मंदिर और मस्जिद दोनों हैं। स्थापत्य कला के संग्रहालय में सरस्वती की बेजोड़ प्रतिमा है। उसे लंदन में हुसैन ने शायद देखा हो। उसका चित्र ए.एल. बासम की पुस्तक ’द वन्डर दैट वाज़ इंडिया’ में प्रकाशित है। शायद हुसैन को इस कलाकृति से भी प्रेरणा मिली हो। इसमें उतनी ही नग्नता है जितनी हुसैन के चित्रांकन में। संघ परिवार ने मांग की थी कि लंदन से कलाकृति को वापस बुलाकर उसे भोजशाला में स्थापित किया जाए जिससे उसका सीता मंदिर के रूप में उपयोग हो सके।
खतरा केवल अभिव्यक्ति की कलात्मकता पर नहीं है। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने यहां तक कहा था कि हुसैन हिन्दुत्व में घुस सकते हैं। तो हम उनके घर में क्यों नहीं घुस सकते? अहमदाबाद की प्रसिद्ध हरविट्स गुफा गैलरी में हुसैन और वी.पी. जोशी द्वारा साझे में संचालित कला-केन्द्र पर हमला किया गया। लगभग डेढ़ करोड़ रुपयों की पेंटिंग्स नष्ट कर दी गईं। कई पेंटिंग गणेश-हनुमान, शिव, बुद्ध आदि की भी थीं। 1998 में हुसैन की दिल्ली में लगी प्रदर्शनी पर हमला किया गया और सुप्रसिद्ध चित्रकार जतिन दास को भाजपा के एक पूर्व सांसद ने मारा। सीता को हनुमान द्वारा छुड़ाए जाने सम्बन्धी चित्र को लेकर संघ परिवार की बदमिज़ाजी का दोहराव किया गया।
इस सीरीज के तमाम चित्र लोहिया के समाजवादी शिष्यों के आग्रह पर हुसैन ने 1984 में बनाकर दिए थे। बद्रीविशाल पित्ती कहते थे कि हुसैन की इस चित्र-रामायण का संदेश नास्तिकता, साम्यवाद और नेहरूवादी आधुनिकता से अलग हटकर भारतीय सांस्कृतिक सत्ता को कलात्मक आधुनिकता से लबरेज़ कर देना था। मुंह में कपड़ा ठूंसने की हरकतों का इतिहास है। अचरज और दुःख होता है इस विचारधारा के अधिक प्रचारित बौद्धिक महत्वपूर्ण वी.डी. सावरकर ने शिवाजी को लेकर यह तक कह दिया था उन्हें हिन्दू महिलाओं के शीलहरण का बदला मुसलमान शत्रुओं की महिलाओं के बलात्कार से लेना था।
कुछ आरोपों को जान लेने में कोई नुकसान भी नहीं होगा। कलकत्ता में हुसैन के चित्रों की पहली प्रदर्शनी लगी थी। तो महान कला समीक्षक ओ. सी. गांगुली ने उसे जैमिनी राय के साथ गद्दारी बताया था। एक दूसरा उदाहरण नागपाल देते हैं। दिल्ली में आधुनिक भारतीय चित्रकला के पितामह राजा रवि वर्मा की जन्मशती के अवसर पर उनके चित्रों की प्रदर्शनी लगी थी। चित्रकला की इस वैभवशाली परम्परा पर गर्व करने के बजाय अहसानफरामोश हुसैन ने मांग की कि दिल्ली से रवि वर्मा के चित्रों की प्रदर्शनी हटा ली जाए।’’ इन आरोपों की सत्यता की पड़ताल होती तो इन्हें अफवाह कहा जाना चाहिए था या अफवाहों के पुष्ट होने पर हुसैन के विरुद्ध एक फतवा, जिससे उबर पाना उनके लिए सरल नहीं होता।