कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर हमज़ा सूफियान ने उठाए गंभीर सवाल, घूंघट, कलावा, तिलक, पगड़ी सभी तो…

नई दिल्लीः बीते रोज़ मंगलवार को हिजाब पर आए कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर मुस्लिम संगठनों की ओर से लगातार असहमती दर्ज कराई जा रही है। इसी क्रम में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष और एआईएमआईएम के यूथ के जनरल सेक्रेट्री हमज़ा सूफियान ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को मौलिक अधिकार का उल्लंघन करार दिया है। उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि अपने धर्म का पालन करने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

हमज़ा सूफियान ने कहा कि भारत में धार्मिक पोशाक या प्रतीक का विषय कोई नया नहीं है। जबकि कर्नाटक राज्य का दावा है कि “धार्मिक प्रतीकों और पोशाक” को नहीं पहना जा सकता है, अन्य राज्य उच्च न्यायालयों ने छात्रों को विभिन्न परिस्थितियों में ऐसा करने की अनुमति दी है। भारत जैसे देश में, जहां सरकार के फूट डालो और राज करो के दृष्टिकोण ने पहले ही सांप्रदायिक एकता को तोड़ दिया है, हिजाब (धार्मिक पोशाक) जैसा मुद्दा सामाजिक असंतुलन को बढ़ा देगा। भारत को विभिन्न प्रकार के धर्मों और संस्कृतियों का घर माना जाता है।

हमज़ा ने सवाल किया कि ऐसा क्यों है कि पगड़ी पहनने वाले सिख, घूंघट पहनने वाली हिंदू महिला, या कलावा पहनने वाले लड़कों या तिलक लगाने वाले लड़कों का भारतीय समाज में सम्मान किया जाता है, लेकिन नकाब, बुर्का या हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिला का सम्मान नहीं किया जाता है? महिलाओं पोशाक का विकल्प रखने का अधिकार अनुच्छेद 25(1) द्वारा संरक्षित एक मूल अधिकार है।

उन्होंने कहा कि सरकार या किसी और को किसी व्यक्ति की पोशाक में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि किसी भी संस्थान के अंदर मौलिक अधिकारों को हनन नहीं किया जा सकता है। यह प्रत्येक व्यक्ति की अनूठी स्वतंत्रता और निर्णय है। कोई कारण नहीं है कि एक महिला का मूल्यांकन उसके कपड़ों से किया जाना चाहिए। हिजाब पर कर्नाटक हाईकोर्ट की टिप्पणी चौंकाने वाली है। अपने धर्म का पालन करना संवैधानिक अधिकार है।

हमज़ा ने कहा कि हिजाब की आवश्यकता नहीं होने का फैसला करने के लिए अदालत ने किन सबूतों का इस्तेमाल किया? यह कुरान और हदीस से होना चाहिए, मगर ऐसा उसमे ऐसा कुछ नहीं है। इसी तरह धर्म के आधार पर भेदभाव अनुच्छेद 15 के तहत निषिद्ध है। 2016 में केरल हाईकोर्ट के फैसले ने कुरान और हदीस की जांच करके हिजाब को इस्लाम के आवश्यक धार्मिक अभ्यास के रूप में घोषित किया है।