नई दिल्लीः हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के घरों में नमाज पढ़ने के बयान से मुस्लिम समुदाय में हलचल है। सोमवार को जमीयत उलमा गुड़गांव के सदर मुफ्ती मोहम्मद सलीम कासमी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल लघु सचिवालय उपायुक्त से मिलने पहुंचा। उनके नहीं मिलने पर डीसीपी दीपक साहरण से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल की ओर से मांग की गई कि, प्रशासन वक्फ बोर्ड की जमीनें छुड़वाने में मदद करें और जब तक व्यवस्था नहीं होती है, तब तक जुमे की नमाज पढ़ने के लिए जगह उपलब्ध कराई जाए। वहीं नमाज के मामले में सुप्रीम को में याचिका दायर किए जाने की भी तैयारी कर ली गई है।
मोहम्मद सलीम कासमी ने कहा कि, मुख्यमंत्री ने दोनों समुदाय की सहमति से चिह्नित स्थान पर नमाज पढ़ने की बात कही है। गुड़गांव में करीब चार लाख स्थानीय व प्रवासी मुस्लिम नमाज़ अदा करते हैं। पहले प्रशासन की मंजूरी पर ही 37 जगहों पर नमाज पढ़ी जा रही थी, लेकिन अब विरोध के चलते नमाज पढ़ने में दिक्कत आने लगी है। उन्होंने बताया कि, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के लिए कुछ लोग सोमवार को सुप्रीम कोर्ट गए थे। प्रतिनिधिमंडल में पूर्व सासंद मोहम्मद अदीब, मौलाना हसीब, मौलाना अल्हलुल्ला, मौलाना शाकिर आदि शामिल रहे।
क्यों हो रहा है विवाद
साल 2018 में गुरुग्राम में पहली बार नमाज़ को लेकर विवाद हुआ था। हिंदुत्तववादी दक्षिणपंथी संगठनों का कहना है कि खुले में नमाज़ नहीं होनी चाहिए, जबकि प्रशासन ने गुरुग्राम में 37 जगहों पर नमाज़ अदा करने की अनुमति दी हुई थी, जिसे दक्षिणपंथी संगठनों के विरोध के बाद रद्द कर दिया गया। यह विवाद हर शुक्रवार को होने वाली जुमा की नमाज़ के दौरान होता है। दक्षिणपंथी संगठनों के लोग ठीक उस जगह पहुंचकर आपत्तिजनक नारेबाज़ी करते हैं, जहां पर नमाज़ होती है।
बीते दो शुक्रवार में नमाज़ियों के साथ दक्षिणपंथियों ने धक्का मुक्की भी की है, लेकिन मुसलमानों की ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी गई। पिछले शुक्रवार को गुरुग्राम में एक स्थान पर दक्षिणपंथियों ने नमाज़ अदा नहीं होने दी, जिस जगह नमाज़ होनी थी, ठीक उसी स्थान पर दक्षिणपंथी समूहों के लोग हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए जनरल विपिन रावत को श्रद्धांजलि देने के लिये बैठ गए।