पलाश सुरजन
अमेरिका-कनाडा की सरहद पर मैनिटोबा में बीते दिनों दिल दहलाने वाला हादसा हो गया। कनाडा से होते हुए चोरी छिपे अमेरिका में घुसने का जतन करते हुए चार भारतीयों ने -35 डिग्री तापमान और बर्फीली हवाओं के बीच अपनी जान गँवा दी। स्थानीय पुलिस की पड़ताल में पता चला कि यह परिवार गुजरात से आया था और इसमें युवा पति-पत्नी के साथ उनके दो बच्चे भी शामिल थे। पहली नज़र में यह मामला मानव तस्करी का दिख रहा है, क्योंकि किसी अन्य व्यक्ति ने उन्हें सीमा तक छोड़ा था और वे उसे पैदल पार करने की कोशिश कर रहे थे। इस हादसे का खुलासा तब हुआ जब कुछ लोग कनाडा से अमेरिकी सीमा के भीतर आए और उन्हें अमेरिकी बॉर्डर पुलिस ने पकड़ लिया। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि एक गिरोह ने हादसे के शिकार हुए परिवार समेत कई लोगों से पैसे लेकर गैर-कानूनी तरीके से सरहद पार करवाने का वायदा किया था।
भारत समेत समूची दुनिया में पलायन कोई अजूबा नहीं है, न ही जिंदा इंसानों की ख़रीद-फ़रोख्त कोई नई चीज़ है। हमारे यहाँ उप्र, बिहार, झारखंड, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश से लोग रोज़गार की तलाश में अपेक्षाकृत संपन्न राज्यों की ओर बड़ी संख्या में पलायन करते हैं। देश के आदिवासी इलाकों से लड़कियों और औरतों की तस्करी बड़ी तादाद में होती है, शहरों से भी बच्चे गुम होकर कहां पहुँच जाते हैं, पता नहीं चलता। लगभग सभी प्रदेशों से लोग बेहतर भविष्य के लिए अफ़्रीकी देशों और खाड़ी देशों को जाते हैं। अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड में अनगिनत भारतीय कई-कई दशकों से बसे ही हुए हैं। उनके साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, सुदूर पूर्व और कई यूरोपीय देश भी भारतीयों के पसंदीदा जगहें हैं। दूसरी तरफ, नेपाली और बांग्लादेशी नागरिक यदि अवैध तरीके से भारत लाए जाते हैं तो भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है।
कुछ अरसा पहले तक पंजाब में ‘कबूतरबाजी’ और अविभाजित आंध्र में अरब के शेखों द्वारा अल्पसंख्यक लड़कियों के शोषण के किस्से आम थे। ज़ाहिर है, अब गुजरात भी इस कड़ी में शामिल हो गया है। किसी गुजराती परिवार के गैर कानूनी ढंग से विदेश में बसने के इरादे से जान गंवा देने की घटना शायद पहली बार हुई है, लेकिन बीते सालों में मानव तस्करी की अनेक घटनाएं अपने आपको ‘गर्वीला’ कहने वाले इस प्रदेश में होती रही हैं। 2012 में तो अहमदाबाद के बाशिंदों ने बच्चों और किशोरों की बढ़ती गुमशुदगी को लेकर 240 दिन तक बड़ा आंदोलन चलाया था। यह तब है जब लगभग तीन दशकों से वहां एक ही पार्टी का राज चलते आ रहा है। इसमें भी सबसे लम्बा कार्यकाल मोदीजी का रहा, जिन्होंने विकास के ‘गुजरात मॉडल’ का देश और दुनिया में जमकर प्रचार किया और इस प्रचार ने उनके प्रधानमंत्री बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गुजराती स्वभाव से ही उद्यमशील होते हैं, व्यापार उनके खून में होता है -जैसा मोदीजी ने भी अपने बारे में बताया था। गुजरात में कारोबार करना भी दूसरे प्रदेशों की तुलना में आसान है। इसीलिए गुजरात में दूसरे राज्यों की बनिस्बत ज़्यादा तरक्की दिखाई देती है। उसकी जीडीपी भी राष्ट्रीय औसत से अधिक रहती आई है। हालांकि ये सब खूबियाँ वहां पहले से मौजूद रही हैं, सरकार चाहे जिस पार्टी की रही हो और चाहे जो उसका मुखिया रहा हो। ‘गुजरात मॉडल’ के साथ तो गुजरात को सोने में सुहागा हो जाना था। लेकिन ऐसा केवल आर्थिक क्षेत्र में ही हुआ, सामाजिक विकास के मोर्चे पर गुजरात अभी भी पिछड़ा हुआ है। यह विडंबना ही है कि राज्य के आर्थिक विकास बावजूद एक परिवार ने अपनी जान की कीमत पर परदेस जाने का जोखिम उठा लिया। वो भी इसलिए कि उस कुनबे के आधे लोग पहले से अमेरिका में हैं जिन्हें बाकी लोगों का गाँव में रह जाना, अपमानजनक लगता था।
इस हादसे की जांच कनाडा और अमेरिका प्रशासन तो कर ही रहे हैं, गुजरात की सीआईडी भी मालूम करेगी कि स्थानीय दलालों की इसमें क्या भूमिका है। गाँव वालों ने ‘वाइब्स ऑफ़ इंडिया’ नामक वेबसाइट को बताया है कि उस परिवार ने अमेरिका जाने के लिए दलालों को 65 लाख रुपए दिए थे। सवाल उठता है कि जो बात गाँव वाले जानते हैं, उसका पता पुलिस-प्रशासन को क्यों नहीं था। यह भी कम हैरत की बात नहीं है कि प्रदेश की राजधानी से सिर्फ़ 12 किलोमीटर दूर बसे, कुल जमा तीन हज़ार की आबादी वाले डिन्गुचा गाँव – जहां का यह परिवार था, के आधे से ज़्यादा लोग अमेरिका में बसे हुए हैं। इनमें से कितने वैध पासपोर्ट और वीज़ा लेकर गए और कितने चोरी-छिपे, इसका भी इल्म शायद गुजरात सरकार को नहीं होगा। अब ‘वाइब्स ऑफ़ इंडिया’ यह पता करने की कोशिश कर रही है कि इस गाँव से कितने लोग विदेशों में कहाँ-कहाँ रह रहे हैं।
2015 में दक्षिण कोरिया में भारतीयों को संबोधित करते हुए मोदीजी ने कहा था कि “एक समय था जब लोग कहते थे- पता नहीं पिछले जन्म में क्या पाप किया कि हिंदुस्तान में पैदा हो गए, ये कोई देश है ! ये कोई सरकार है ! ये कोई लोग हैं ! चलो छोड़ो, चले जाओ कहीं और। और लोग निकल पड़ते थे। कुछ वर्षों से हम ये भी देखते थे जब उद्योग जगत के लोग कहते थे कि अब तो यहां व्यापार नहीं करना चाहिए, अब यहां नहीं रहना है। और ज़्यादातर लोगों ने तो एक पैर बाहर भी रख दिया था। मैं इसके कारणों में नहीं जाता हूं। और न ही मैं कोई राजनीतिक टीका-टिप्पणी करना चाहता हूं। लेकिन यह धरती की सच्चाई है कि लोगों में एक निराशा थी, आक्रोश भी था। और मैं आज विश्वास से कह सकता हूं कि अलग अलग जीवन क्षेत्रों के गणमान्य लोग बड़े बड़े साइंटिस्ट क्यों न हो, विदेशों में ही कमाई क्यों न होती हो तो भी आज भारत वापस आने के लिए उत्सुक हो रहे हैं.”
क्या कोई बताएगा कि मोदीजी ने जो कुछ कहा था, अगर वह सच है तो उनके ही गृह प्रदेश में उसका उल्टा क्यों हो रहा है!
(लेखक देशबन्धु के संपादक हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)