Latest Posts

जौनपुर में साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक स्वर्ण जड़ित ताजिया

जौनपुरः उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के मछलीशहर केे जरी इमामबाड़े में रखे गये स्वर्ण जड़ित ताजिया साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक माना जाता है। मुहर्रम के दौरान ही ताजिये व अलम तथा स्वर्णक्षरों वाली कुरान का दर्शन लोगों को मिलता है, कोरोना संक्रमण के चलते इस बार भी आम लोगोंं के लिए दर्शन कर पाना मुश्किल है।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

इमामबाड़े के मुतवल्ली सैय्यद कमर रजा ने सोमवार को यूनीवार्ता को बताया कि 1857 की गदर के समय लखनऊ के शिया बादशाह नबाब वाजिद अली शाह ने अंग्रेजों की नजरों से बचने के उद्देश्य से इस दुर्लभ स्वर्ण जड़ित ताजिये को ताबूत में भर कर गोमती नदी में प्रवाहित कर दिया था, स्थानीय नगर निवासी अली जामिन जैदी उस समय प्रतापगढ़ जिले में डिप्ती कलेक्टर के पद पर तैनात थे। वे इस ऐतिहासिक धरोहर को प्राप्त कर जौनपुर जिले के मछलीश्हर कस्बे के खानजादा मुहल्ले में स्थित जरी इमामबाड़े में लाकर सुरक्षित रख दिया। इसके साथ ही स्वार्णाक्षरों वाली कुरान भी मिली थी।

उन्होंने कहा कि सदियों से सुरक्षित इस बहुमूल्य ग्रंथ एवं धरोहर को कई लोगों ने प्राप्त करने का प्रयास किया, मगर इमामबाड़े के मुतवल्ली गुलाम हसनैन ने देने से इंकार कर दिया।

गुलाम हुसैन के मृत्यु के बाद वर्तमान में सैय्यद कमर रजा मुतवल्ली हुए हैं। वे बताते हैं कि मुहर्रम के दौरान यहाँ पर रखे गये स्वर्ण जड़ित ताजिये का दर्शन हिन्दू-मुस्लिम करके मनौती मांगते हैं और मनौती पूरी होने पर चाँदी के घुघुरू चढ़ाते हैं। मुहर्रम में लोग रतजगा कर पूरी रात इबादत करते हैं और अंजुमन सज्जारियां द्वारा नौहा एवं सीनाजनी का कार्यक्रम होता है। यहाँ पर देश् व विदेश् से लोग स्वर्ण जड़ित ताजिया देखने आते हैं।

मुतवल्ली सैय्यद कमर रजा ने कहा कि दो फरवरी 2008 की रात इस स्थान पर चोरी की घटना हुई, जिसमें लगभग सवा करोड़ मूल्य के आभूषण चोरी हुए थे, उस समय इस घटना के विरोध में यहां के हिन्दू व मुस्लिम एक हेा गये थे। लगभग 13 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी पुलिस इस चोरी का खुलासा नहीं कर सकी।

जौनपुर जिले में मुहर्रम देश में अपना एक अलग स्थान रखता है, यहां जितना बड़ा अलम का जुलूस निकलता है, शायद उतना बड़ा देश् के किसी अन्य स्थान पर निकलता हो। जौनपुर के जो लोग देश् के अन्य प्रान्तो व विदेश् में रखते हैं, वे मुहर्रम के समय यहां आ जाते हैं, लेकिन कोरोनावायरस के चलते यहां पर अधिक लोगोंं का आना संभव नहीं है।