जीएचएमसी चुनाव समीक्षा: जोरदार प्रचार लेकिन जोरदार वोट नहीं, क्यों? आखिर बाजी कौन मारेगा?

अफ्फान नोमानी

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जिस जोरदार अंदाज में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने जीएचएमसी (ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कारपोरेशन) चुनाव में प्रचार किया गया वैसे जोरदार प्रचार पर जोरदार वोट नहीं हुआ। तेलंगाना इलेक्शन कमीशन ने चुनाव प्रचार को देखते हुवे अधिकारी चयन में काफी बदलाव करते हुवे चुनिंदा और अच्छे प्रोफेशनल कॉलेज यूनिवर्सिटी के लेक्चरर व प्रोफ़ेसर व डीआरडीवो अधिकारीयों का चयन किया बनिस्बत स्कुल शिक्षक के। पोलिंग ऑफिसर से लेकर प्रीसाईडिंग ऑफिसर तक लेक्चरर, प्रोफ़ेसर व डीआरडीवो अधिकारी थे। कड़ी सुरक्षा के मद्देनज़र चुनाव शांतिपूर्ण हुआ।

इलेक्शन कमीशन के साथ काम करने का अनुभव काफी सुखद रहा। प्रशासन ने भी हर वक़्त सभी चीजों का ध्यान रखा। राजनीतिक पार्टी के नेता व एजेंट प्रशासन व्यवस्था और स्कूल शिक्षक की जगह पोलिंग ऑफिसर से लेकर प्रीसाईडिंग ऑफिसर तक लेक्चरर प्रोफ़ेसर व डीआरडीवो अधिकारी का नया चेहरा देख बदले नज़र आएं।  हर जगह से एक खबर जो ज्यादा हवा की तरह फ़ैल रही है वो यह है की अन्य साल से इस बार गैर क़ानूनी वोट पर ज्यादा लगाम लगाया गया। शाम 5 बजे तक में 36।73% ही वोट हुआ जबकी सभी पार्टी ने प्रचार जोरदार अंदाज में किया था।

तेलंगाना इलेक्शन कमीशन का एक अंग होने के नाते हमने 1 दिसम्बर को राजनीतिक समीक्षा नहीं किया था। चुनाव ख़त्म हो चूका है। 4 दिसम्बर को चुनाव परिणाम आएगा। लेकिन व्यक्तिगत रूप से ओल्ड सिटी हैदराबाद में मजलिस कार्यकर्ता न्यू सिटी हैदराबाद में टीआरएस व उसके बाद बीजेपी कार्यकर्ता ने अपने उम्मीदवार की जीत के लिए काफी दीवानगी के साथ मेहनत करते दिखें वही कांग्रेस कार्यकर्ताओ में वो जूनून नहीं दिखा। न ही वो ज्यादा सक्रीय थे चुनाव को लेकर। वामपंथी कही जगहों पर सक्रीय दिखे भी लेकिन वो कार्यकर्ता की तरह काम करने के बजाय खुद को बड़ा लेखक के तौर पे पेश करने में ज्यादा दिलचस्प है। कांग्रेस के बड़े नेता इस चुनाव से दूर रहे वही बीजेपी के बड़े नेताओ ने पूरा दमखम लगा दिया।

हालाँकि सत्ता में टीआरएस और मुख्य विपक्षी के तौर पर कांग्रेस है। लेकिन अब कांग्रेस की जगह बीजेपी लेने के लिए पूरी कोशिश कर रहे है। जिस तरह से बीजेपी लगे हुवे है उसका फायदा मिलने वाला है लेकिन फ़िलहाल अभी तेलुगु का मोह टीआरएस की तरफ है। तेलुगु लोग बीजेपी को एक सांप्रदायिक पार्टी के तौर देखते है। वो हिन्दू ह्रदय सम्राट नेता से अपनी दुरी की वजह तेलुगु पर हिंदी थोपने से डरते है। तेलुगु कांग्रेस के साथ सहज महसूस करते है। वो चाहते है की कांग्रेस के बड़े लीडर लीड करें जहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों एक साथ रहे और राज्य में सांप्रदायिक ताकतों का उभार ना हो। मुसलमानों की बड़ी तादाद भी यही चाहते है। लेकिन कांग्रेस की लीडरशीप और असक्रियता से तेलुगु हिंदू, मुस्लिम और सिख भी चुनाव में कांग्रेस के साथ आने में कतरा रहे है।

वर्त्तमान में हैदराबादी मुसलमान व सिख की बड़ी तादाद व दलित का कुछ तबका पूरी तरह एआईएमआईएम के साथ है। जबकि बहुसंख्यक आबादी पूरी तरह टीआरएस के साथ है। बीजेपी को चुनाव प्रचार का फायदा मिलेगा लेकिन टीआरएस को मात नहीं सकते। ओल्ड सिटी में बहुत से मुस्लिम आबादी शहर के हालात से एआईएमआईएम से नाराज़ थे लेकिन बीजेपी ने आकर सभी मुसलमानों को एआईएमआईएम की ओर गोलबंद कर दिया। जो उम्मीदवार हारने वाले थे वो जीत रहे है। बाढ़ आने पर कॉंग्रेस ने माहौल बनाया था लेकिन चुनाव का पारा बढ़ता गया। एआईएमआईएम- बीजेपी की धुँवाधार जुबानी तकरीर से जनता से जुड़े मुलभुत सुविधाओ के मुद्दे हवा में उड़ गया। ओल्ड सिटी में एआईएमआईएम के सिवा सभी पार्टी के उम्मीदवार बौने साबित होंगे। कुल मिलाकर ओल्ड सिटी में एआईएमआईएम टॉप पर रहेंगे। न्यू सिटी में टीआरएस टॉप पर रहेंगे।

4 दिसम्बर को चुनाव परिणाम आएगा लेकिन चुनाव के पहले और बाद में फिल्ड में रहने के बाद मैने जो समीक्षा किया है वो इस तरह है पहले नंबर पर टीआरएस दूसरे पर एआईएमआईएम और तीसरे और चौथे नंबर पर बीजेपी कांग्रेस रहने की पूरी संभावना है।