गाब्रीएला सबातीनी (Gabriela Sabatini) के नाम पर तब न जाने कितने दिल धड़कते होंगे. चेहरे का एक-एक कटाव तराशा हुआ और क्लासिक ग्रीक देवियों वाली जबड़े की हड्डी. जिस समय वह अपने खेल के शिखर पर थी, मार्टिना नवरातिलोवा-क्रिस एवर्ट का युग बीत चुका था और स्टेफी ग्राफ-मोनिका सेलेस जैसी चैम्पियंस का जलवा था.
इन दोनों के अलावा आरांचा सांचेज, मैरी जो फर्नांडिस, याना नोवोत्ना और हेलेना सुकोवा जैसी कोई दर्जन भर खिलाड़िनें थीं जो उससे ज्यादा प्रतिभावान आंकी जाती थीं. उसे पता था वह सर्वश्रेष्ठ नहीं है और इस अहसास ने उसे बेहद विनम्र बना दिया था. यह विनम्रता हमेशा उसकी समूची पर्सनलिटी पर तारीं नज़र आई.
बीसवीं सदी के सबसे बड़े लखकों में एक अल्बैर कामू खुद बढ़िया फुटबालर थे. उन्होंने लिखा था, “मैंने सीखा कि बिना ख़ुद को ईश्वर जैसा महसूस किये जीता जा सकता है और बिना ख़ुद को कचरा जैसा महसूस किये हारा भी जा सकता है.” कामू का यह सबक सबातीनी को भी कंठस्थ था. वह न जीत में कभी बहुत खुश नज़र आई न कभी पराजय में बहुत दुखी. और घनी काली भंवों वाली वे ईमानदार लैटिन आंखें. उफ़! कोई कैसे उससे मोहब्बत नहीं कर सकता था.
1991 का साल शायद उसके करियर का सबसे बड़ा साल था. उस साल के विम्बलडन फाइनल में पहुँचने से पहले 6 जुलाई तक उसने पचास मैच खेले थे जिनमें से छियालीस को उसने जीता था. फाइनल वर्ल्ड नंबर वन स्टेफी ग्राफ के साथ खेला जाना था जो उस साल उससे पांच बार लगातार हार चुकी थी. पिछले 25 सालों से कोई भी लैटिन अमेरिकी खिलाड़ी विम्बलडन फाइनल में नहीं पहुँची थी. उसके पहले 1966 में ब्राजील की चैम्पियन मारिया बुएनो पांचवीं बार विम्बलडन फाइनल खेली थीं और बिली जीन किंग से हारी थीं.
मेरे कमरे में पिछले तीन सालों से सबातीनी का पोस्टर लगा हुआ था और जाहिर है 6 जुलाई 1991 की सुबह से ही मैं मैच शुरू होने का इंतज़ार कर रहा था. तब हमारे यहाँ दूरदर्शन ही इकलौता चैनल था जिस पर टेनिस टूर्नामेंटों के फाइनल मैच लाइव आने लगे थे. बड़े मैचों में स्टेफी ग्राफ का खेल हमेशा दो लेवल ऊपर चला जाता था जबकि सबातीनी के साथ ऐसा कभी-कभार ही होता था. बावजूद गैबी के लिए अपनी कोमल भावनाओं के, मेरा मन जानता था स्टेफी ही जीतेगी.
शाम को खेल शुरू हुआ. सबातीनी अपने घने काले बालों पर गुलाबी पट्टा बाँध कर आई थी और वैसी ही दिख रही थी जैसा उसे दिखना चाहिए था – सुन्दर और निर्लिप्त. बराबरी पर चल रहे मैच में दोनों ने शुरुआत में एक-एक सेट जीत लिया. तीसरे और निर्णायक सेट में सबातीनी ने संभवतः अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ टेनिस खेली.
अमूमन महिलाओं के मैच औसत सवा-डेढ़ घंटे में निबट जाते थे. ग्रास कोर्ट पर यह समय करीब पंद्रह मिनट और कम हो जाता था. विम्बलडन ग्रास कोर्ट पर खेला जाता है. मैच कोई पौने दो घंटे से ऊपर चल चुका था और जब छः-छः से बराबरी पर टाई-ब्रेकर शुरू हुआ ही था कि दूरदर्शन पर न्यूज का समय हो गया. अब अगले आधे घंटे तक हिन्दी-अंगरेजी समाचारों ने आना था. यानी मैच का परिणाम समाचार के आख़िरी हिस्से में ही दिखना था.
मुझे भयानक कोफ़्त हुई. मैं सबातीनी का सपोर्ट कर रहा था और ऐन जिस वक्त उसे मेरे सहारे की जरूरत थी, स्क्रीन पर शम्मी नारंग डटे हुए थे. भाग कर रेडियो खोला और शॉर्टवेव पर बीबीसी वर्ल्ड सर्विस लगा सकने में कामयाब हुआ. डैन मैस्केल और जॉन बैरेट की लाजवाब कमेंटेटर जोड़ी मैच का हाल सुना रही थी.
करीब आधा घंटा चले उस टाईब्रेकर में जैसे ही लगने लगता कि स्टेफी जीत जाएगी सबातीनी कुछ जादू करती और स्कोर फिर टाई हो जाता. जब लगता सबातीनी एक बढ़िया सर्विस कर के चैम्पियन बन जाएगी वह डबल फाल्ट कर जाती. ठीक-ठीक याद नहीं ऐसा कितनी बार हुआ पर आधे घंटे के उस अंतराल को मैं आज तक नहीं भूला हूँ. आखिरकार स्टेफी ने एक ताकतवर फोरहैंड क्रॉस-कोर्ट मारा जो कोर्ट के सुदूर दायें कोने पर गिरा. बेसलाइन के पास खड़ी सबातीनी एक कदम भी हिल नहीं सकी. मैच करीब सवा दो घंटे चला.
अंगरेजी समाचार निबटने के बाद विम्बलडन फिर से लाइव था. कैमरों के फ्लैश चमक रहे थे और चेहरे पर चौड़ी मुस्कान फैलाए स्टेफी ग्राफ चमचमाती ट्राफी लिए सेंटर कोर्ट पर खड़ी थी. गाब्रीएला सबातीनी (Gabriela Sabatini) का चेहरा क्लान्त जरूर था लेकिन हारा हुआ कहीं से भी नजर नहीं आ रहा था. भीड़ में बैठे अपने पापा को देख कर वह एक बार हौले से मुस्कराई भी.
अब मुझे गुलाबी हेडबैंड वाली गैबी का नया पोस्टर चाहिए था. हासिल कर भी लिया और उसे पहले से भी अधिक चाहने लगा. स्टेफी ग्राफ आज बावन साल की हो गयी. मेरे कमरे की दीवार पर महफूज गाब्रीएला सबातीनी (Gabriela Sabatini) आज भी वैसी ही है – उम्र इक्कीस साल एक महीना इक्कीस दिन.