पिछले दो दिनों से मैं देख रही हूं यहां ओवैसी साहब के आने को लेकर कुछ लोग जिस तरह के क़यास लगा रहे हैं जैसे आर्ग्यूमेंट्स हो रहे हैं उनमें कुछ भी सच्चाई नहीं है।क्योंकि मैं लगभग डेढ़ घंटा वहाँ मौजूद थी मेरी न सिर्फ़ ओवैसी साहब से बल्कि ऑर्गेनाइज़र्स से भी चर्चा हुई , उसके मद्देनज़र मैं कुछ बातें दावे से कह सकती हूँ।
पहली बात तो ये है कि मैं सिरे से इस बात को नकारती हूं कि उन्हें कहीं होटल में जगह नहीं मिली , दरअस्ल उस दिन शहर में काफी़ शादियां थी पांच सितारा होटल पैक्ड थे शहर से दूर होटल फे़यरमाउंट, ट्राइडेंट वगै़रह में उनके लिए रूम बुक थे बल्कि उनके साथ आए हुए कुछ लोग वहाँ रुके भी थे , ओवैसी साहब की जिन लोगों से मुलाका़त होना थी वो सब शहर के लोग थे उनकी सहूलियत के मद्देनज़र ओवैसी साहब ने उनसे यहीं शहर में मिलना मुनासिब समझा जिस होटल में मुलाकात हुई वो ऑर्गेनाइज़र के बेस्ट फ्रेंड का होने के नाते मुलाका़त के लिए वहां एहतमाम किया गया।
दूसरी अहम बात जितना ओवैसी साहब के बारे में यहां लोग सोच रहे हैं जिस तरह की हाइपोथेटिकल बातें कर रहे हैं, उसके बरअक़्स ओवैसी साहब ने सिर्फ़ और सिर्फ़ दौराने चर्चा समाजी और सियासी हालात पर बात की उन्होंने बताया कि वो हैदराबाद में किन-किन चीज़ों को किस तरह डिफीट कर रहे हैं कैसे चैलेंजेज़ का सामना कर रहे हैं। यहां राजस्थान में उन्होंने ना तो गहलोत साहब के बारे में कुछ कहा ना बीजेपी के बारे में उन्होंने सिर्फ़ और सिर्फ़ इस बात पर जो़र दिया कि उनकी पार्टी यहाँ कैसे एस्टेब्लिश हो सकती है ताकि जो अक़लियत को उम्मीदें थीं लोगों से जो पूरी नहीं हो पाईं उन्हें पूरा किया जा सके।
मैं निहायत हैरत में थी, उनके पास इसका पूरा ब्यौरा मौजूद था , लगभग डेढ़ घंटे के उस संवाद में जो बातें हुईं उससे इस बात का साफ़ अंदाजा़ हो गया कि हममें से काफी़ लोगों को जितना राजस्थान के हालात के बारे में पता नहीं है वो सब ओवैसी साहब के फ़िगंर टिप पर था कि, राजस्थान के समाजी सयासी और इकोनॉमिकली हालात क्या हैं और आगे क्या होने वाले हैं।
मैं हतप्रभ थी उन्हें राजस्थान के उन दूरदराज़ के इलाकों के बारे में भी जानकारी थी जिनके बारे में कोई चर्चा शायद ही कभी इन व्हाट्सएप ग्रुप्स में की गई हो, बाड़मेर के अंदर क्या हालात बने हुए हैं कौन से इलाकों में कौनसी अक़लियतें हैं उनके साथ क्या हो रहा है, गंगानगर में जो फा़र्मर्स प्रोटेस्ट हैं उनको किस तरह दबाया जा रहा है, वहां जो इतनी बड़ी तहरीक़ें बनी हुई हैं उनके साथ क्या हो रहा है, मेवात के बारे में उनकी जो जानकारी थी मैं ताज्जुब में थी और पुख़्तगी के साथ कह सकती हूं कि हमनें शायद ही कभी इन मुद्दों पर अपने व्हाट्सएप ग्रुप्स में कभी कोई चर्चा की हो जबकि इन ग्रुप्स में पत्रकार महोदय भी हैं, सियासी, समाजी और ब्लॉगर्स भी हैं, लेकिन उन्होंने कभी इन इलाकों का दौरा नहीं किया होगा ना उनके पास डेटा होगा।
हमें राजस्थान के मुद्दों पर वहाँ चर्चा करने बुलाया गया था लेकिन उनसे ही हम यहां के बारे में काफी़ जानकारी लेकर आए एक रिसर्चर होने के नाते बाद में जब मैंने उनकी बातों को क्रॉस चेक किया तो मुझे उनके फुलप्रूफ़ होमवर्क का अंदाजा़ हो गया। मैं ये पोस्ट लिखने पर इसलिए मजबूर हुई क्योंकि यहां जिस तरह की चर्चा हो रही है उससे ऐसा जा़हिर हो रहा है जैसे उस बंदे को सियासत की भूख है जबकि हमने जितना महसूस किया उसमें यह बात निकलकर आई कि उनको लीडर बनाने हैं इलेक्ट्रॉरल और नॉन इलेक्ट्रॉरल दोनों उनका मक़सद यहाँ सिर्फ़ राजनीति करना नहीं है अगर उन्होंने यहां नॉन इलेक्ट्रॉरल लीडर खड़े कर दिए तो बताइए किस का बुरा है।
तीसरी जिस बात से मैं ख़ासी मुत्तासिर हूं कि जब भी कोई बड़ा नेता आता है तो वो बड़े लोगों को पकड़ता है,ओवैसी साहब ने यहां ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों को मुलाका़त के लिए चुना जो लोग मिले हममें से कुछ लोगों ने अपने फो़टो शेयर किए हैं जबकि कई लोग ऐसे भी थे वहां जिन्होंने अपने फोटो शेयर नहीं किए हैं एक ऐसे ब्लॉगर भी वहां थे जो काफी अच्छा लिखते हैं उनकी गज़ब की अंडरस्टैंडिंग है हालांकि वह बैंक में मुलाज़िम हैं वैसे भी ओवैसी साहब के लिए कोई बड़ी बात नहीं किसी बड़े उद्योगपति को लाने के लिए बहरहाल मुझे मिलकर ऐसा महसूस हुआ कि वो निहायत सादगीपसंद डाउन टू अर्थ इंसान हैं और किसी नाम के भूखे नहीं है न उनकी कोई मंशा मुझे यहां रहकर सरकार बनाने की लगी ना किसी को हराने की लगी बल्कि ऐसा लगा कि वह अक़लियतों की आवाज़ बुलंद करना चाहते हैं।
चौथी बात यह है कि ज़ाती तौर पर मैं एआइएमआइएम के बारे में बहुत खा़स नहीं जानती थी पिछले दो दिनों में जितना मैंने स्ट्डी किया ये देखकर मुझे फ़क्र हुआ कि इनकी पार्टी के जो एमएलए हैं महाराष्ट्र और बिहार में उनके कुछ इंटरव्यूज़ के वीडियो भी देखे तो एक बात तो मैं कह सकती हूं कि जितने अच्छे होमवर्क तैयारी के साथ ये लोग एसेंम्बली में सवाल करते हैं , मुद्दों को उठाते हैं ऐसे अगर एक दो भी आ जाऐं तो हमारे जो मुद्दे हैं वह पुरजो़र तरीके़ से साल में दो-तीन मर्तबा होने वाली असेंम्बली में उठाए जा सकेंगे।
आख़िर में यही कहूंगी कि हमारे देश में संविधान के दायरे में सबको आजा़दी है, मैंने भी अपनी फ्रीडम आफ़ एक्सप्रेशन का इस्तेमाल अदब के दायरे में संयमित भाषा के साथ आप तक पहुंचाने की कोशिश की है और मैं उम्मीद करती हूं कि जब तक हम किसी की शख़्सियत से मुकम्मल वाक़िफ़ ना हों तब तक उसके बारे में छोटी बातें करके या ऐसी बातें करके जिससे हमारी जहालत और बचकाने पन का मुजाहिरा होता हो अपना क़द छोटा ना करें शुक्रिया।
(लेखिका पत्रकार एंव एंकर हैं, ये उनके निजी विचार हैं)