इस्लामी कैलेंडर के मुहर्रम के महीने की दस तारीख दुनिया के इतिहास में ऐसी दर्ज हुई कि जब जब ज़ुल्म के ख़िलाफ आवाज़ उठतीं हैं, तो उन्हें इस इमाम हुसैन का बलिदान याद आता है. यह बलिदान ज़ुल्म के ख़िलाफ लड़ने वालों को हौसला देता है, ताक़त देता है, और यह पुख्ता करता है कि बुराई कितनी ही ताक़तवर क्यों न हो लेकिन उसे मिटना ही पड़ता है। इमाम हुसैन की शहादत भी ऐसी ही है। उनकी शहादत के बारे में भारत के बड़े नेताओं की आंखों को भी नम कर दिया है। आईए जानते हैं इमाम हुसैन की शहादत पर किस नेता के क्या विचार हैं।
महात्मा गांधी ने इमाम हुसैन की शहादत पर कहा ‘मैंने हुसैन से सीखा कि मज़लूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है. इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती बल्कि हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है जो एक महान संत थे.’
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा कि ‘इन्साफ और सच्चाई को जिंदा रखने के लिए, फौजों या हथियारों की जरुरत नहीं होती है. कुर्बानियां देकर भी फ़तह (जीत) हासिल की जा सकती है, जैसे की इमाम हुसैन ने कर्बला में किया.’
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा ‘इमाम हुसैन की क़ुर्बानी तमाम गिरोहों और सारे समाज के लिए है, और यह क़ुर्बानी इंसानियत की भलाई की एक अनमोल मिसाल है’.
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा ‘इमाम हुसैन की कुर्बानी किसी एक मुल्क या कौम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोगों में भाईचारे का एक असीमित राज्य है.’
डॉ. राधाकृष्णन ने कहा ‘अगरचे इमाम हुसैन ने सदियों पहले अपनी शहादत दी, लेकिन उनकी पाक रूह आज भी लोगों के दिलों पर राज करती है’.
स्वामी शंकराचार्य ने कहा ‘यह इमाम हुसैन की कुर्बानियों का नतीजा है कि आज इस्लाम का नाम बाकी है, नहीं तो आज इस्लाम का नाम लेने वाला पूरी दुनिया में कोई भी नहीं होता’.
सरोजिनी नायडू ने कहा ‘मैं मुसलमानों को इसलिए मुबारकबाद पेश करना चाहती हूं कि यह उनकी खुशकिस्मती है कि उनके बीच दुनिया की सबसे बड़ी हस्ती इमाम हुसैन (अ:स) पैदा हुए जिन्होंने संपूर्ण रूप से दुनिया भर के तमाम जातीय समूह के दिलों पर राज किया और करते हैं.’
सरदार एसएस आज़ाद – बंग्ला साहब गुरुद्वारा ने कहा इमाम हुसैन की शहादत इंसानियत को बचाने के लिए दी गई शहादत थी,ज़ालिम हुकमरान हमेशा ही इंसानियत के खिलाफ रहते हैं, और इंसानियत के चाहने वाले जो होते हैं वो हमेशा ही करबला की तरह अपनी शहादत देकर इंसानयित को ज़िंदा रखते हैं.
फादर विक्टर एडविन ने कहा इमाम हुसैन इंसानियत के लिए लड़े और जुल्म के खिलाफ कभी सर नहीं झुकाया और अपनी कुर्बानी दे दी. मैं खुद भी उनकी कब्र(करबला) पर गया हूं मुझे वहां जाकर महसूस हुआ कि जिनते भी लोग वहां आते हैं सबको बहुत सुकुन मिलता है. उनकी ज़िंदगी आज के लिए सबक है. सब शांति अमन के लिए सबके साथ रहकर अपने कदम आगे बढ़ाएं.
प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने कहा इमाम हुसैन (स.अ.व.) ने अन्याय को स्वीकार करने के बजाय अपना बलिदान दिया. वह शांति और न्याय की अपनी इच्छा में अटूट थे.उनकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी सदियों पहले थीं. इमाम हुसैन के पवित्र संदेश को आपने अपने जीवन में उतारा है और दुनिया तक उनका पैगाम पहुंचाया है. इमाम हुसैन अमन और इंसाफ के लिए शहीद हो गए थे. उन्होंने अन्याय, अहंकार के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद की थी. उनकी ये सीख जितनी तब महत्वपूर्ण थी उससे अधिक आज की दुनिया के लिए ये अहम है.