कोरोना की चौथी लहर और हम

डॉ. अंजना राणा

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

अभी कोराना की मार से सामान्य मानव जीवन पूरी तरह से पटरी पर आया भी नहीं था कि कोरोना की चौथी लहर ने कई देशों में दस्तक दे दी है। इसके दस्तक के साथ कई शंकाएं मानव हृदय में पनप रही हैं। लॉकडउन के कटु अनुभव से अभी दुनिया अभी दुनिया उभर भी नहीं पाई है, कि फिर निरंतर फैलते इस संक्रमण ने फिर मानव सभ्यता के समक्ष चुनौति खड़ी कर दी है। इस संक्रामकता की तीव्रता के कारण भारत में कोरोना के मामले फिर से बहुत तेजी से बढ़ने लगे हैं। इस बार देखने में यह आ रहा है कि ब्च्चे भी बड़ी संख्या में इसकी चपेट में आ रहे हैं। कोरोना फिर मानव सभ्यता को काल का ग्रास बनाने के लिए मुँह बाए खड़ा है। ऐसे हालातों में डरने की जरूरत नहीं है बल्कि आवश्यकता है कोरोना को मात देने के लिए समुचित रणनीति को अपनाने की। हमें डरने की जरूरत है नहीं है, देश की कोरोना-रोधी टीकाकरण व्यवस्था काफी सुदृढ़ हो चुकी है, देश की कुल आबादी के 61.4 प्रतिशत को कोरोना-रोधी वैकशिन की सारी डोज़ लगाई जा चुकी है और अब 15-18 वर्ष के बच्चों के टीकााकरण का कार्य भी युद्धस्तर पर चल रहा है। संतोष इस बात का भी है कि जो कि कोरोना-रोधी टीकाकरण की सुविधा सभी भारतीय नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के उपलब्ध है। यह समय डरने का नहीं बल्कि उचित कदम उठाने का है। एक समय वह था जब हम कोरोना के बारे में कुछ नहीं जानते थे, फिर भी मानव की अदाम जीजिविषा ने उसे हारने नहीं दिया, आपसी सहयोग और ज्ञान-विज्ञान ने उसे इस भंयकर महामारी पर रोक लगाने में सक्षम बनाया। कई देशों ने स्वतंत्र रूप से या दूसरे देशों के साथ मिलकर कोरोना रोधि टिकों को इजाद किया। 

वर्तमान में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए आजकल फिर लॉकडाउन पर अटकलें लगाई जा रही हैं। लॉकडाउन किसी भी देश के विकास को बाधित करने वाला होता है। इससे न केवल अर्थव्यवस्थाओं की भारी आर्थिक हानि होती है बल्कि मानसिक धरातल पर यह अवसाद को लेकर आता है। लॉकडाउन जीवन की सामान्य गति और संभावनाओं का विघटन करता है। दीर्घकालिक लॉकडाउन से विर्निमाण, उत्पादन और सेवाओं से संबंधित कार्य ठप्प पड़ जाते हैं। इससे मानव जीवन की गुणवत्ता का ह्रास होता है, ऋण चक्र का आरंभ होता है और निर्णय निर्माण की स्वतंत्रता बाधित होती है। इसके चलते जीवन के मूलभूत संसाधनों भी दुर्लभ हो जाते हैं। विकास की गति अधोमुखी हो जाती है। असुरक्षा, अवसाद, अन्समनसकता आदि की भावनाएं मानव हृदय में घर करने लगती हैं। इसलिए हमें कोरोना के संक्रमण को रोकने का भरसक प्रयास करना चाहिए ताकि मानव जीवन पटरी पर बना रहे।

इस विकट परिस्थति में यह संतोषजनक है कि अब हम कोरोना की प्रकृति से नितांत अनभिज्ञ नहीं है। हम ये जानते हैं कि कोरोना के संक्रमण के प्रसार को कैसे रोका/कम किया जा सकता है। ऐसे वक्त में हमें निराश होने या हतोत्साही होने के बजाए आशावादी रहने की आवश्यकता है। हमें यह समझने की जरूरत है कि सही दिशा में किया गया पुरूषार्थ सुखद परिणाम लेकर आता है। इसलिए हमें डरना नहीं है, हमारे तमाम प्रयास इस दिशा में होने चाहिए कि हम सकारात्मक सोचें और हमारा आचरण कोरोनारोधी हो। हमें अपनी लापरवाही पर लगाम लगानी होगी। कोराना के विरूद्ध सफल होने में अनुशासन की भारी महत्ता है। कोराना के प्रसार को परस्पर कोरोनारोधी व्यवहार को अपनाकर ही रोका जा सकता है।

हमें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तथा भारत सरकार आदि के द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-र्निदेशों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए जैसे कि सामूहिक मेल-जोल के समय और भीड़-भाड़ वाली जगह पर सदैव मास्क को पहनें, साबुन से अच्छी तरह हाथों को धोएं, हाथों की उंगलियों को रगड़ रगड़ कर धोना चाहिए, जहॉं  साबुन उपलब्ध न हो वहां सेनेटाईजर का प्रयोग करें, हैंड गल्ब्स और फेस शिल्ड का उपयोग आवश्यकतानुसार करें, दो गज दूरी की एहतियात बरतें, समय-समय पर आवश्यकतानुसार घर, दफतर आदि को डिस्इनफेक्ट करें या कराएं, संक्रमित व्यक्ति के उपयोग में आने वाली चिजों को सावधानी से डिस्इनफेक्ट करें, संक्रंमितों के कूड़े का निपटान वैज्ञानिक तरीके से करें, कोराना के लक्षण महसूस होने पर अपने डॉक्टर स्वयं न बनें और तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें, टीकाकरण करवांए व जिससे कि विषाणु हमें न छू सकें। इस प्रकार कोरोना की इस लहर में मनोबल को बनाए रखना और संक्रमण निवारक एहतियत बर्तना कोराना की रोकथाम का कारगार साधन है  ।