अटल सरकार में रखी गई थी बिजली के निजीकरण की नींव, अब बिजली कर्मचारी भुगतेंगे खमियाजा

गिरीश मालवीय

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बिजली का निजीकरण किस तरह से उपभोक्ताओं के लिए और बिजली कर्मचारियों के लिए घातक सिद्ध होने जा रहा है, यह समझने के लिये हमें थोड़ा पीछे जाना होगा। देश में 2003 का विद्युत अधिनियम एक्ट पारित कर निजीकरण की नींव रख दी गई थी इसके तहत ही यह नीतिगत निर्णय हुआ कि धीरे धीरे बिजली क्षेत्र को निजी कम्पनियों के हवाले किया जाएगा। इसलिए देश भर में बने हुए  बड़े-बड़े बिजली बोर्डों के टुकड़े कर उन्हें कंपनियों का रूप दिया गया।

यूपी में मायावती की सरकार के समय कानपुर और आगरा की बिजली के निजीकरण का निर्णय एक साथ मई 2009 में लिया गया था। बिजली कर्मचारियों के विरोध के चलते कानपुर की बिजली व्यवस्था निजी हाथों में नहीं सौंपी जा सकी। लेकिन आगरा में यह व्यवस्था लागू कर दी गयी आज हम इस आगरा मॉडल को ही समझने की कोशिश करते हैं कि किस प्रकार से यह मॉडल आज भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा उदाहरण बना हुआ है उसके बावजूद योगी सरकार इस भ्रष्ट मॉडल को पूरे उत्तर प्रदेश में ओर मोदी सरकार इसे पूरे देश मे लागू करने पर आमादा है।

अप्रैल 2010 में टोरेंट पावर को आगरा का काम देते समय अनुबंध किया गया था कि 31 मार्च 2017 तक लाइन लॉस 15 प्रतिशत तक करना होंगी। लेकिन टोरेंट कम्पनी इस पर बिल्कुल खरी नहीं उतरी यह भी करार था कि बिजली विभाग पर उपभोक्ताओं से बकाया वसूल कर विभाग को वापस करना होगा। 31 अक्तूबर 2016 तक वह बकाया बढ़कर लगभग 2137 करोड़ हो गया, वर्तमान में यह 2500 करोड़ रुपये के ऊपर है। इसमें से केवल नाममात्र का विभाग को लौटाया गया है यानी विद्युत निगम को इसमे कोई फायदा नहीं हुआ।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि आगरा में  टोरंट को बेहद कम रेट पर टोरेंट पावर को बिजली दी जा रही है। विद्युत कर्मचारियों के संगठन बता रहे है कि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम 5.26 रुपये/यूनिट की दर पर खरीद कर टोरेंट पावर आगरा को 4.45 रुपये/यूनिट की दर पर बेच रहा है। यानी न्यूनतम दर से भी कम दर पर टोरेंट कम्पनी के साथ करार कर लिया गया। इससे निगम को हर साल 162 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इसका खामियाजा पूरे उत्तर प्रदेश की तीन करोड़ उपभोक्ताओं को महंगी बिजली के रूप में भुगतना पड़ रहा है।

कर्मचारी संगठन बता रहे हैं कि पिछले वर्ष तक के आकड़े पर ध्यान दिया जाए तो हालात यह है कि आगरा की फ्रेंचाइजी टोरेंट पावर से ज्यादा राजस्व  निगम को कानपुर से मिल रहा था। टोरेंट कंपनी आगरा में पावर कारपोरेशन को 3.25 प्रति यूनिट भुगतान कर रही थी। जबकि कानपुर में पावर कारपोरेशन को लगभग 6.25 प्रति यूनिट राजस्व मिल रहा था।

यानी निजीकरण से जनता को दो तरफा नुकसान हो रहा है एक तो भ्रष्टाचार का सहारा लेकर टोरेंट सरकार से महंगी बिजली सस्ते में खरीद रही है और उसी बिजली को महंगे दाम में उपभोक्ताओं को बेच रही है. अब जनता की स्थिति भी समझ लीजिए.  आगरा में विद्युत उपभोक्ता टोरेंट से बेहद परेशान है उपभोक्ताओं के मीटर बेतहाशा तेज चलने की शिकायतें, बिल वसूली के लिए गुण्डों व बाउन्सरों के जरिए डराना धमकाना और गरीब बस्तियों में कई-कई घण्टे तक जानबूझ कर ब्रेकडाउन अटेण्ड करना आदि शिकायतें बार बार सामने आते है.

आगरा में कई बार दक्षिणांचल और टोरेंट के दपतरों पर तालाबंदी और घेराव जैसे प्रदर्शन हुए। सभी दलों ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले टोरेंट पावर के खिलाफ खूब प्रदर्शन किये। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी सड़क पर उतरकर टोरेंट के खिलाफ खूब नारे लगाए और भाजपा के बड़े नेताओं ने सरकार बनने के बाद टोरेंट पर नकेल कसने की बात कही थी लेकिन जैसे ही योगी सरकार 2017 में सत्ता में आयी वह सब भूल गयी और निजीकरण का दोषपूर्ण आगरा मॉडल को आज वह पूरे उत्तर प्रदेश में ओर मोदी सरकार पूरे देश मे लागू करने जा रही है। बिजली के निजीकरण के इस सबसे बड़े दोषपूर्ण उदाहरण से पूरी तरह स्पष्ट है कि निजीकरण से सबसे ज्यादा परेशानी आम उपभोक्ताओं को ही होने वाली है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)