आरएसएस के संघ संचालक मोहन भागवत एक बहुत बड़ी हस्ती हैं। अगर वो आसमान हैं तो मैं ज़मीन। पिछले दिनों वह हिंदुस्तान के मुसलमानों के विरोध में और उनके ख़िलाफ़ देश में नफरत की भावना फैलाने के लिए अनेक प्रकार की बेबुनियाद और झूठी बातें करते रहे हैं। हिंदुस्तान के मुसलमानों के आगमन के बाद, हिंदुओं का नरसंहार, हिंदू मंदिरों का गिराया जाना और उन्हें नष्ट करना, हिंदू आबादी का तलवार के जोर पर धर्मपरिवर्तन कराना और भारत के हिंदुओं को आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और व्यापारिक तौर पर नष्ट करना और ऐसे ही बहुत से इल्ज़ामात हैं जिन्हे लगातार मुसलमानों के खाते में जमा किया जाता रहा है और कहा जाता रहा है के मुसलमानों के हिंदुस्तान में आगमन से पहले भारत में चैन की बांसुरी बजती थी, कोई खून खराबा नही था, ज़ोर ज़बरदस्ती किसी प्रकार का धर्मपरिवर्तन नही होता था और हर भारतीय के लिए न्याय और समानता के दरवाज़े खुले हुए थे और इन पर ज़बरदस्ती कोई टैक्स भी नहीं लगाए जाते थे।
मोहन भागवत को मेरा एक मशवरा है कि वह अपनी आरएसएस की कमीज़ के बटन खोलें और अपने गिरेबान में मुंह डालकर भारत के प्राचीन काल के इतिहास के पन्नों को पलटें, अपने ज्ञान में इज़ाफा करें और अपनी पूरी ईमानदारी और धर्म के साथ खुद ही निर्णय कर लें।
मुसलमानों के भारत में आने के बाद यहां कभी कोई हिंदुओं या किसी और धर्म के मानने वालों का नरसंहार नहीं हुआ, भारत के किसी भी मुसलमान बादशाह ने कभी भी तलवार के ज़रिए किसी भी प्रकार का धर्मपरिवर्तन नही कराया और न ही किसी और तरीके से ज़बरदस्ती किसी भी धर्म के लोगों को मुसलमान बनने पर मजबूर किया। कुछ घटनाएं ज़रूर ऐसी हुई हैं जहां मंदिर गिराए गए हैं और कभी कभी जज़िया टैक्स भी लगाया गया है लेकिन ज्यादातर ये उन मुसलमान हमलावर बादशाहों के ज़रिए किया गया जिन्होंने धर्म या मजहब के लिए नहीं बल्कि मंदिरों की दौलत लूटने के लिए उन्हें नष्ट किया जो केवल लुटेरों का काम था। अगर किसी प्रकार का नरसंहार हुआ भी है तो वो भी नादिर शाह दुर्रानी, महमूद गजनवी, अहमद शाह अब्दाली और मुहम्मद शाह गोरी जैसे हमलावरों के ज़रिए किया गया और उनके द्वारा हजारों मुसलमानों का भी कत्ल किया गया। आदरणीय भागवत जी को चाहिए के वह अपनी जानकारी में बढ़ोतरी करने के लिए कम से कम यह जानकारी ज़रूर प्राप्त करें कि नादिर शाह द्वारा दिल्ली में कत्ल ए आम का आदेश देने के बाद कितने मुसलमान शहीद हुए थे।
इससे बड़ा झूठा और बेबुनियाद दावा कोई नही हो सकता कि मुसलमानों की आमद से पहले भारत में बिलकुल अमन और चैन था और किसी प्रकार का कोई ख़ून खराबा नही था। क्या में आदरणीय भागवत जी और उनकी ज़ुबान में कोरस गाने वाले हिंदू नेताओं को यह याद दिलाऊं के जितना ख़ून हिंदू धर्म के मानने वालों ने दूसरे धर्म का बहाया है और दूसरे धर्म के पूजा स्थलों को और मंदिरों का नेस्त ओ नाबूद किया है, तारीख़ में इसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती।
सम्राट अशोक जैसे महान बादशाह, जिनका शुमार संसार के महान सम्राटों में होता है, उनके ही अपने एक हिंदू ब्राह्मण सेना पति ने उनके पोते की हत्या करके शासन पर कब्ज़ा कर लिया। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म इख्तियार कर लिया था और वो उसी के प्रचार में सारा जीवन लगे रहे थे। उनके एक सेनापति जिसका नाम पुष्प मित्रा शंग था उसने शासन पर कब्ज़ा कर लिया और सम्राट अशोक के द्वारा किए जाने वाले तमाम कामों को बरबाद करना शुरू कर दिया। पुष्प मित्रा ने बुद्ध धर्म के मानने वालों के नरसंहार का आदेश दिया और हज़ारों लाखों बुद्ध धर्म के मानने वालों के सर कटवा दिए, उसने ऐलान किया के जो भी व्यक्ति किसी बौद्ध भिक्षु का सर काट के लाएगा उसे सोने की अशर्फियां इनाम में दी जाएंगी। उसने गुजरात से लेकर बंगाल तक और लद्दाख से लेकर कन्याकुमारी तक हज़ारों बौद्ध मंदिर स्तूपे और विहारों को नष्ट कराकर ज़मीन दोज़ कर दिया और ताक़त के ज़रिए बौद्ध धर्म के मानने वालों को हिंदुस्तान से बाहर निकालना शुरू कर दिया और उन्हें इतना परेशान किया की बुद्ध धर्म के मानने वालों ने खुद भी हिंदुस्तान से बाहर के देशों में भागना शुरू कर दिया। श्री लंका, बर्मा, जापान, चीन, वियतनाम, कोरिया, इंडोनेशिया, मलाया, सिक्किम, भूटान और संसार के दूसरे इलाक़ो में जो आज बुद्ध आबादी नज़र आती है उनमें अधिकांश भारत के हिंदू ब्राह्मणों के ज़रिए भगाए गए लोग ही हैं।
वैदिक काल में और अशोक के ज़माने में धार्मिक यज्ञों में गाय की बलि दी जाती थी और गाय का गोश्त प्रसाद के रूप में लोगों में बाटा जाता था। पुष्प मित्रा शंग ने इस रस्म पर प्रतिबंध लगा दिया और गाए को अपना धार्मिक प्रतीक बना लिया, इतना ही नहीं बल्कि पुष्प मित्रा ने बौद्ध गया में इस दरख़्त को भी काटने की कोशिश की जहां महात्मा बुद्ध को निर्वाण हासिल हुआ था। पुष्प मित्रा शंग ने दो मर्तबा अशोमेग यज्ञ कराया और इस बात का ऐलान किया के उसने महात्मा बुद्ध के बुद्ध धर्म को समाप्त कर दिया है और हिंदू धर्म की बुद्ध धर्म पर विजय के बराबर है। प्राचीन भारत पर लिखी हुई एक किताब में इस बात का भी वर्णन है के पुष्प मित्रा शंग ने सांची के स्तूपा पर भी हमला कराकर उसे नष्ट करने की कोशिश की थी लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो सका।
बुद्ध धर्म के मानने वालों के इस नरसंहार में और पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक उनके तमाम पूजा स्थल और मंदिर, विहारा, स्तूपा और दूसरी निशानियों को बरबाद कराने के लिए अगर कोई लोग ज़िम्मेदार थे तो वह सिर्फ हिंदू और विशेषकर ब्राह्मण ज़िम्मेदार थे जिन्होंने हज़ारों लाखों बुद्ध धर्म के मानने वालों का नरसंहार किया, उनका एक भी पूजा स्थल बाकी नहीं छोड़ा और उन्हें नष्ट कर दिया, लाखों लोगों को हिंदुस्तान से बाहर निकाल दिया. क्या मुसलमानों को क़ातिल, नरसंहरी, मंदिरों को तोड़ने वाले इल्ज़ामात जो लोग मुसलमान बादशाहों पर लगाते हैं, उनकी आंखों पर चढ़े हुए चर्बी के परदे और कानों में पिघला हुआ मोम समाप्त करने के लिए ये कड़वे सच काफी नहीं हैं?
परम आदरणीय एंव पूजनीय मोहन भागवत जी क्या आप कष्ट करेंगे के अपने स्वयं सेवकों को इतिहास का यह कड़वा सत्य और जलती हुई जानकारी भी प्राप्त हो सके? अगर कोई यह कहे कि मुसलमानों के लगभग 1100 साल के शासन काल में सब मिलाकर भी न हिंदुओं की इतनी हत्याएं हुई हैं और न ही इतने मंदिर और पूजा स्थल तोड़े गए हैं और न ही लाखों लोगों को भारत से बाहर निकाला गया है और न ही उनका नरसंहार हुआ है जो केवल एक पुष्प मित्रा शंग जैसे सम्राट के ज़माने में हुआ और जिसके करने वाले हिंदू केवल हिंदी और सिर्फ हिंदू ब्राह्मण ही थे जिन्होंने मासूम और अहिंसा के पुजारी और प्रचारक बौद्ध धर्म के मानने वालों के सीनों में अपनी तलवारें और खंजर डुबोकर इतिहास के पन्नों पर बरबरियत, अत्याचार, नरसंहार, ज़ुल्म और अन्याय की ऐसी तारीख लिखी है जिसके लिए मानवता हमेशा शर्मिन्दा रहेगी।
आदरणीय भागवत जी क्या अब भी मुसलमान नरसंहारी हैं? नफरत के काबिल है? भारत की सीमाओं से बाहर भगाये जाने के हकदार हैं? यह ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब का भारत की जनता को इंतज़ार है और रहेगा।