नई दिल्लीः केरल के डीजीपी रहे डॉ. एन.सी अस्थाना अपने एक ट्वीट की वजह से विवादों में घिरते नज़र आ रहे हैं। दरअस्ल एनसी अस्थाना ट्विटर पर काफी सक्रिया रहते हैं, और मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं। इसी क्रम में उन्होंने ट्वीट किया था कि किसी भी कौम को एक बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए. कोर्ट में हर चीज़ के लिए लड़ना पेचीदा भी है और श्रमसाध्य भी. गुडविल खोकर रहना मुश्किल है. दूसरी ओर शासन की शक्ति अपार है और सड़क पर लड़ कर तुम कभी जीत नहीं सकते. कुचल दिए जाओगे. जो इतनी सीधी बात भी न समझ सकें उनका विनाश निश्चित है.
उनके इस ट्वीट पर टिप्पणी करते हुए पत्रकार वसीम अकरम त्यागी ने कहा कि मान्यवर, किसी भी कौम की जगह आप सीधे मुसलमान भी लिख सकते है, आपको कोई नहीं रोक रहा।आजकल तो हर कोई सीधा टार्गेट कर रहा है तो आप किससे भयभीत है। रही बात शासन की शक्ति की! तो जिस भी शासन ने अपनी शक्ति का बेजा इस्तेमाल किया है वो इतिहास की गर्त में समा गया है। आप ताक़तवर के साथ खड़े है लेकिन आपको खड़ा कमजोर के साथ होना चाहिए था।ये शक्ति क्षणभंगुर है।आपकी भी और उनकी भी।
इसके बाद इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के जाने-माने पत्रकार खुर्शीद रब्बानी ने डॉ. अस्थाना को आड़े हाथ लिया। खुर्शीद रब्बानी ने लिखा कि “Mr. Asthan, mind your Language!! बकैती करो, लेकिन हद में रह कर। और हां, कभी खुद के गिरेबां में झांकने का भी कष्ट करो, सुबह शाम सिर्फ दूसरों को ही ज्ञान मत पेलो। हद में रहो और औक़ात में भी, समझे Mr. Asthan!!”
औकात है तो लड़कर देख लो
इसके बाद एनसी अस्थाना ने एक अन्य यूजर को जवाब देते हुए लिखा कि औक़ात है तो लड़ के दिखा. हिम्मत है तो सड़क पर उतर कर दिखा, फिर देखना शासन की शक्ति. शासन की विधि विहित शक्तियों को चुनौती दे रहा है मूर्ख? बेटा, शासन के पास न तो गोलियों की कमी है न जेलों में जगह की. अपराधियों के पास दो ही विकल्प हैं, मरो या जेल में सड़ो. चुन लो जो चाहिए.
इसके जवाब में पत्रकार वसीम अकरम त्यागी ने लिखा कि “आप ताक़तवर हैं, पुलिस सेवा में डीजीपी तक पहुंचे हैं। आपकी ताक़तवर हनक ऐसी कि रिटायरमेंट के बाद भी वर्दी वाली तस्वीर ही डीपी बनाई हुई है। लेकिन आपके ताक़तवर होने के मायने तभी हैं, जब आप कमज़ोर के पक्ष में खड़े हों, अन्याय के विरोध में खड़े हों, वरना इस ताक़त के कोई मायने नहीं।”
सोशल एक्टिविस्टों की प्रतिक्रिया
डॉ. अस्थाना के इस विवादित ट्वीट पर स्वतंत्र टिप्पणीकार जफर सैफी ने कमेंट किया “अस्थाना जी, आपका मानना है कि फासिस्ट सरकार एक समुदाय पर जितना चाहे ज़ुल्म करें, उनके संवैधानिक अधिकारों को कुचल डालें मगर उस समुदाय को सरकार से लड़ना (लोकतान्त्रिक रूप से) नहीं चाहिए. क्योंकि शासन के पास न गोलियों की कमी है न जेलों की. श्रीमान, भारत मोनार्की है या डेमोक्रेसी ?”
इसके जवाब में डॉ. अस्थाना ने लिखा कि “अनिता ठाकुर केस पढ़ो बेटा। सब ज्ञान ट्विटर पर नहीं देंगे। विरोध की आड़ में क़ानून तोड़ना या क़ानून व्यवस्था को बिगाड़ना दंडनीय है और बेशक गोली मारी जा सकती है। 74 साल में कभी किसी पुलिस अधिकारी की इस बिना पर कभी कोई गलती नहीं निकाली गई है कि गोली क्यों मार दी। भला बुरा समझते होगे”
यह विवाद चल ही रहा था कि इसी में स्तंभकार तारिक़ अनवर चंपारणी ने डॉ. अस्थाना के कार्यकाल पर ही सवालिया निशान लगा दिया। तारिक़ अनवर ने ट्वीट किया कि यह पुलिस के अधिकारी रह चुके है। यह शासन और प्रशासन के इतने ग़ुलाम बन चुके है कि इनके भीतर की यह मानसिक रूप से सड़ चुके है। ऐसे ही लोग उस समय भी रहे होंगे जब द्रोपदी का चीरहरण हुआ था। जब यह पुलिस में रहे होंगे तब कितने बर्बर रहे होंगे? इस बात का अंदाज़ा इनकी भाषा से लगा सकते है।
इसके जवाब में डॉ. अस्थाना भड़क गए, और तारिक़ अनवर को सांप्रदायिक बताते हुए कहा कि “यह प्राणी जो भी है, अज्ञान और सांप्रदायिक विद्वेष से अंधी इसकी तुच्छ बुद्धि इतनी सड़ चुकी है कि यह नहीं जानता कि शासन को क़ानून और संविधान तथा सुप्रीम कोर्ट के दर्जन भर फैसले यह निर्विवाद अधिकार देते हैं कि क़ानून तोड़ने वाले 5 से अधिक लोगों के समूह का वध कर दे। क़ानून को चुनौती?”