नई दिल्लीः यूपी की राजधानी लखनऊ के काकोरी इलाके से अलकायदा के दो संदिग्ध आतंकियों को पकड़ा गया है। एक संदिग्ध आतंकी को मंडियाव से हिरासत में लिया गया है। गिरफ्तार अलकायदा के आतंकियों के पास से प्रेशर कुकर और टाइम बम बरामद किया गया है। एटीएस के आईजी जीके गोस्वामी ने एबीपी न्यूज़ से कहा कि आतंकी कई दिनों से रडार पर थे। इनकी साजिश सीरियल ब्लास्ट को अंजाम देने की थी। भीड़-भाड़ वाले बाजार इनके निशाने पर थे। गिरफ्तार आतंकियों के हैंडलर का नाम उमर अल मंदी है। इसमें से एक आतंकी पर कश्मीर हमले में शामिल होने का आरोप है।
अल कायदा, आईएसआईएस, पीएलओ आदि इन सब का भले ही दुनिया से नामो निशाँ मिट जाए या मिट गया हो, हमारी पुलिस के लिए उनके मॉड्यूल इस देश में हर समय अवश्य ही पाए जाते हैं. जब ज़रूरत पड़े, प्रस्तुत कर दो.
एक ही घिसापिटा झूठ बोलते ये लोग बोर नहीं होते? कुछ नया सोचो, कोई नई कहानी बताओ.— Dr. N. C. Asthana, IPS (Retd) (@NcAsthana) July 11, 2021
उठने लगे सवाल
लखनऊ में एटीएस द्वारा हुईं इन गिरफ्तारियों पर केरल के पूर्व डीजीपी एंव पूर्व आईपीएस डॉक्टर एन।सी। अस्थाना ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि अल कायदा, आईएसआईएस, पीएलओ आदि इन सब का भले ही दुनिया से नामो निशाँ मिट जाए या मिट गया हो, हमारी पुलिस के लिए उनके मॉड्यूल इस देश में हर समय अवश्य ही पाए जाते हैं। जब ज़रूरत पड़े, प्रस्तुत कर दो। एक ही घिसापिटा झूठ बोलते ये लोग बोर नहीं होते? कुछ नया सोचो, कोई नई कहानी बताओ।
यूपी और दिल्ली पुलिस की FIRs का संकलन किया जाए तो चुटकुलों की बढ़िया किताब बन सकती है.
मैने आज सुबह आम खरीदे, मोल भाव भी किया लेकिन अभी वो आमवाला मेरे सामने आजाये तो उसे पहचान नहीं पाऊंगा.
लेकिन एक दुकानदार 4 महीने बाद टिफिन खरीदने वाले को फट पहचान लेता है, टिफिन के रंग समेत😀— Prashant Tandon (@PrashantTandy) July 11, 2021
उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा कि वैसे इनको कष्ट और शर्मिन्दगी से बचाने के लिए एक सुझाव है। एक जनरल एफ़आईआर का टेम्पलेट बनवा कर हर थाने को जारी कर दिया जाए, जिसमें देशद्रोह, यूएपीए से लेकर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने आदि सब सेक्शन हों। जो चाहें उस धारा पर टिक कर दें। सिर्फ अभियुक्त का नाम/जगह डालना बाकी हो।
वैसे इनको कष्ट और शर्मिन्दगी से बचाने के लिए एक सुझाव है. एक जनरल एफ़आईआर का टेम्पलेट बनवा कर हर थाने को जारी कर दिया जाए, जिसमें देशद्रोह, यूएपीए से लेकर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने आदि सब सेक्शन हों. जो चाहें उस धारा पर टिक कर दें. सिर्फ अभियुक्त का नाम/जगह डालना बाकी हो.
— Dr. N. C. Asthana, IPS (Retd) (@NcAsthana) July 11, 2021
पूर्व आईपीएस डॉ। अस्थाना ने कहा कि अपना पासपोर्ट भी हमेशा साथ ही रखता है ताकि शिनाख्त हो सके। कुछ काजू बादाम भी ताकि देर तक लड़ने में आसानी हो। कुछ सफ़ेद पाउडर भी जो शायद एक्स्प्लोसिव होता है। हमला भले कहीं करना हो पर एक चाइनीज़ पिस्टल काफी होती है। अक्सर एक चिट भी रखता है जिसमें आईएसआई के निर्देश होते हैं।
पत्रकार ने किया समर्थन
केरल के पूर्व डीजीपी द्वारा किए गए इन ट्वीट्स का वरिष्ठ पत्रकार ने भी समर्थन किया है, उन्होंने भी एटीएस द्वारा की गईं गिरफ्तारियों पर सवाल उठाए हैं। प्रशांत टंडन ने कहा कि यूपी और दिल्ली पुलिस की FIRs का संकलन किया जाए तो चुटकुलों की बढ़िया किताब बन सकती है। मैने आज सुबह आम खरीदे, मोल भाव भी किया लेकिन अभी वो आमवाला मेरे सामने आजाये तो उसे पहचान नहीं पाऊंगा। लेकिन एक दुकानदार 4 महीने बाद टिफिन खरीदने वाले को फट पहचान लेता है, टिफिन के रंग समेत।
अपना पासपोर्ट भी हमेशा साथ ही रखता है ताकि शिनाख्त हो सके. कुछ काजू बादाम भी ताकि देर तक लड़ने में आसानी हो. कुछ सफ़ेद पाउडर भी जो शायद एक्स्प्लोसिव होता है. हमला भले कहीं करना हो पर एक चाइनीज़ पिस्टल काफी होती है. अक्सर एक चिट भी रखता है जिसमें आईएसआई के निर्देश होते हैं.
— Dr. N. C. Asthana, IPS (Retd) (@NcAsthana) July 11, 2021
उन्होंने कहा कि खूंखार आतंकवादी, कोई मास्टरमाइंड टाइप जो न जाने कहां कहां से ट्रेनिग लिए हुए है लेकिन जब दिल्ली के ISBT बस अड्डे पर उतरता है तो सबसे पहले उर्दू का अखबार खरीदता है Grinning face। गूगल मैप और एंड्राइड फोन के ज़माने में वो कागज़ पर एक नक्शा ज़रूर रखता है ताकि पकड़ा जाए तो पुलिस को आसानी हो।
इन्हीं रद्दी के ढेर में पड़ीं कहानियों का खामियाजा गुलबर्गा के निसार अहमद से लेकर श्रीनगर के बशीर भट्ट जैसे सैंकड़ों मुस्लिम नौजवानों ने दस बीस पच्चीस वर्ष तक कैदखाने में कैद रहे हैं।
— Wasim Akram Tyagi (@WasimAkramTyagi) July 11, 2021
पत्रकार वसीम अकरम त्यागी ने भी डॉ. अस्थाना द्वारा किए गए ट्वीट पर अपनी राय दी है। उन्होंने भी पुलिस की कहानी पर सवाल उठाते हुए कहा कि इन्हीं रद्दी के ढेर में पड़ीं कहानियों का खामियाजा गुलबर्गा के निसार अहमद से लेकर श्रीनगर के बशीर भट्ट जैसे सैंकड़ों मुस्लिम नौजवानों ने दस बीस पच्चीस वर्ष तक कैदखाने में कैद रहे हैं।