डॉ. शारिक अहमद खान
वो बहुत की ख़ूबसूरत थीं। कोई उन्हें बुलबुल कहता तो कोई हंटरवाली। वो अक्सर अपने साथ हंटर लिए रहतीं।ग्लैमरस गर्ल ऑफ़ पार्लियामेंट कही जातीं। बहुत से सांसद पता करते रहते कि वो संसद आईं कि नहीं आयीं। जैसे ही पता चलता कि आयी हैं,कई सांसद चकाचक कपड़े डाटकर और ख़ुशबू लगाकर संसद पहुँच जाते।
उनकी सीट पर जाकर कहते कि नमस्ते जी। वो दोनों हाथ जोड़कर ख़ास अंदाज़ में कहतीं कि नमस्कार। सांसद बस इतने में ही गुलगुल हो जाते। उनकी हेयर स्टाइल बॉब कट थी,उस दौर के हिसाब से कपड़े भी बहुत माडर्न पहनतीं।जो साड़ी एक बार पहन लेतीं उसे दोबारा नहीं पहनतीं। उनका नाम था तारकेश्वरी सिन्हा। वो बिहार से सांसद थीं। उनका फ़िरोज़ गाँधी से खुला लव अफ़ेयर था। फ़िरोज़ गाँधी ने इसे छिपाया भी नहीं और स्वीकार भी किया। इंदिरा गाँधी को भी ये बात पता थी। इंदिरा गाँधी उनसे चिढ़ा करतीं।
रघुपति सहाय ‘फ़िराक़ गोरखपुरी’ जब अपनी मौत से चंद महीनों पहले दिल्ली में एम्स में भर्ती थे तो उनकी प्रशंसक कई महिलाएं उनसे मिलने आतीं। मिसेज़ बैनर्जी आतीं जो फ़िराक़ साहब के लिए उनकी मनपसंंद कढ़ी बनाकर लातीं और ब्रांडी लातीं। मिसेज़ बैनर्जी के पिता फ़िराक़ साहब के पढ़ाए हुए थे और ब्रिटिश दौर के आईसीएस रहे थे। मिसेज़ बैनर्जी फ़िराक़ की ग़ज़लों को हारमोनियम बजाते हुए आवाज़ देतीं।फ़िराक़ साहब झूम-झूम उठते।
मिसेज़ गर्ग तो क़रीब-क़रीब रोज़ ही आतीं। फ़िराक़ की मनपसंद चीज़ें रोज़ वहीं से बनकर आतीं। मिसेज़ गर्ग के पति वकील आर के गर्ग फ़िराक़ साहब के बहुत बड़े प्रशंसक थे। बाद में फ़िराक़ की मौत भी गर्ग साहब के आवास पर ही हुई। मिसेज़ गर्ग और मिस्टर गर्ग ने फ़िराक़ साहब की आख़िरी वक़्त में बहुत सेवा की। गर्ग साहब ही फ़िराक़ की डेड बॉडी को लेकर दिल्ली से इलाहाबाद आए थे। मिसेज़ गर्ग ‘नाम म्योहो रेंगे क्यों’ वाले निचिरेन बौद्धवाद ग्रुप में थीं।वो एक ज़हीन महिला थीं।
इंदिरा गाँधी तब प्रधानमंत्री थीं। वो भी फ़िराक़ साहब से मिलने अक्सर आतीं। फ़िराक़ ने तो इंदिरा के बचपने में उन्हें गोद में खिलाया था। इंदिरा के कहने पर ही फ़िराक़ ने सिगरेट भी छोड़ी थी। फ़िराक़ इंदिरा गाँधी तो बेटी ही मानते। असल में फ़िराक़ का एम्स में इलाज भी इंदिरा गाँधी की तरफ़ से हो रहा था,जो भी इलाज में ख़र्च आता उसे इंदिरा ही वहन करतीं।
एक दिन ग्लैमरस तारकेश्वरी सिन्हा फ़िराक़ साहब से मिलने पहुँचीं। इत्र की ख़ुशबू से कमरा महक उठा। फ़िराक़ ने तारकेश्वरी सिन्हा को देखा तो पहचान नहीं पाए, लेकिन फ़िराक़ शायर-ए-हुस्न थे तो हुस्न को इज़्ज़त देने के लिए दन्न से उठकर बैठ गए, वरना उनको उठने में बहुत तकलीफ़ होती। तारकेश्वरी सिन्हा ने अपने ख़ास अंदाज़ में कहा कि फ़िराक़ साहब नमस्कार। फ़िराक़ साहब ने कहा कि मैंने आपको पहचाना नहीं। तब उन्होंने कहा कि फ़िराक़ साहब मैं तारकेश्वरी सिन्हा हूँ।
फ़िराक़ ने कहा कि अच्छा, बिहार से, मैं भी बिहार से हूँ, गया से, हमारे पुरखे शेरशाह सूरी के दौर में वहीं से गोरखपुर आए। तारकेश्वरी सिन्हा सिर्फ़ ख़ूबसूरत ही नहीं थीं बल्कि ख़ूब ज़हीन और पढ़ी-लिखी महिला थीं। उर्दू की माहिर थीं। उनको उर्दू शायरों के हज़ारों शेर याद थे। इस वजह से भी वो जहाँ जातीं छा जातीं।
फ़िराक़ के भी सैकड़ों शेर उन्हें याद थे। तारकेश्वरी सिन्हा अक्सर आने लगीं और फ़िराक़ साहब को उनके ही शेर सुनातीं। उनका अंदाज़-ए-बयाँ ख़ूब था, आवाज़ सधी हुई थी। उतार-चढ़ाव भी थे, जैसे माहिर शायरों के होते हैं। फ़िराक़ साहब उनसे अपने शेर सुनना ख़ूब पसंद करते। कई बार पूछ भी लेते कि क्या ये शेर मेरा है। वजह कि फ़िराक़ काफ़ी बूढ़े हो चले थे,भूल जाते थे। तारकेश्वरी सिन्हा कहतीं कि हाँ फ़िराक़ साहब आपका ही शेर है।
एक दिन जब तारकेश्वरी सिन्हा फ़िराक़ से मिलकर जैसे ही वापस हुईं कि फ़िराक़ ने मौजूद लोगों से बेहद डरे अंदाज़ में कहा कि भई कहीं ऐसा तो नहीं कि तारकेश्वरी सिन्हा के आने की ख़बर इंदिरा गाँधी को लग जाए और वो नाराज़ हो मेरे इलाज में आने वाला ख़र्च देना बंद कर दें। मैं ग़रीब आदमी हूँ। मेरी इन्कम शराब और नौकरों की लूट में ख़त्म हो जाती है।
लोगों ने कहा कि ऐसा नहीं होगा फ़िराक़ साहब,इंदिरा जी को ख़ूब पता है कि आपसे कौन-कौन मिलता है। यूँ भी आपका इलाज करवाने वाले हज़ारों हैं। तारकेश्वरी सिन्हा आपकी बहुत बड़ी प्रशंसक हैं ये भी इंदिरा जी को पता है। तारकेश्वरी सिन्हा संसद में आपके शेर अक्सर कोट करती रहती हैं। आने वाले को कौन रोक सकता है। फ़िराक़ ये सुन नॉर्मल हुए और आह भरी, कहा कि हाँ भई, तुम लोग ठीक कहते हो, तुम लोग मुझको शायर-ए-हुस्न भी कहते हो, तो ऐसे में हुस्न तो शायर-ए-हुस्न के पास आएगा ही, ये तो हुस्न की फ़ितरत है।तस्वीर फ़िराक़ साहब की जयंती पर बीते बरसों मेरे द्वारा मेरे आवास पर आयोजित कार्यक्रम की है।