बिहार के बक्सर जिले में सोमवार को गंगा में 40 लाशें बहती देखी गईं। आज गाजीपुर में यूपी-बिहार बॉर्डर के गहमर गांव के पास गंगा में दर्जनों लाशें मिली हैं। गंगा में नाव चलाने वाले गहमर के बुजुर्ग नाविक शिवदास का कहना है कि चालीस साल से नाव चला रहे हैं, लेकिन गंगा में इस तरह बिखरी लाशों का मंजर कभी नहीं देखा। एक वीडियो वायरल है जिसे शेयर करना मुनासिब नहीं है। वह भयावह है। कई गांवों में 40, 50, 60 मौतों की खबरें आ रही हैं।
ऐसा महसूस होता है कि हमारे चारों तरफ लाशें ही लाशें बिखरी हैं। जहां से भी सूचनाएं मिल सकती हैं सिर्फ मौत का तांडव दिख रहा है। हमारी सरकारों ने कोरोना रोकने की जगह खबरों को रोकने में ताकत लगा दी है। जिस भी श्मशान में रिपोर्टर चेक कर रहे हैं, सरकारी और वास्तविक आंकड़ों में जमीन आसमान का अंतर है। बक्सर में रविवार को सरकारी आंकड़ों में 76 शव दर्ज हुए, जबकि 100 से ज्यादा अंतिम संस्कार हुए।
इससे हमारे गांवों की भयावह हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। खबरें बता रही हैं कि गांवों में श्मशानों में जगह कम पड़ गई है। दिन रात लाशें जल रही हैं। इसके बावजूद कई जगह लोग शवों को गंगा में प्रवाहित कर रहे हैं। वे शव बहकर कहीं पर किनारे लग रहे हैं। यूपी और बिहार के गांव-गांव में लोग खांसी और बुखार से पीड़ित हैं। एक-एक गांव में दर्जनों मौतें हो रही हैं। अभी तक शहरों के हाहाकार से निपटने का ही कोई खास इंतजाम नहीं है। गांवों का क्या होगा, कोई नहीं जानता।
गांव में न टेस्ट हो रहे हैं, न दवाएं हैं, न डॉक्टर हैं, न अस्पताल हैं। जो लोग बीमार हो रहे हैं, वे छुआछूत के डर से बीमारी छुपा रहे हैं। हर जिले में बिना सुविधाओं के कम से कम एक जर्जर जिला अस्पताल या हर ब्लॉक में एक खंडहरनुमा प्राथमिक चिकित्सा केंद्र तो है ही, जहां कुछ लोगों के टेस्ट हो सकते हैं। लेकिन लोग टेस्ट कराने से भी बच रहे हैं। खबरें कहती हैं कि लकड़ी और जगह की कमी के चलते लोग शवों को जलाने की जगह गंगा में प्रवाहित कर रहे हैं।
इस तरह गंगा में तैरते शवों से संक्रमण और ज्यादा फैल सकता है। सरकार के पास आक्सीजन और दो-चार दवाओं जैसी मामूली चीजों का अब तक कोई इंतजाम नहीं है तो गांव-गांव तक महामारी रोकने के बारे में कुछ किया जाएगा, यह सोचना भी आसमान से फूल तोड़ने की कल्पना करना है। चुनाव हवसियों और सत्तालोभियों ने पूरे भारत को श्मशान में बदल डाला है।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)