गिरीश मालवीय
भारत की बेरोजगारी दर अक्तूबर माह में तीन साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले महीने बेरोजगारी दर 8.5 फीसदी रही, जो कि अगस्त 2016 के बाद का सबसे उच्चतम स्तर है। यह इस साल सितंबर में जारी किए गए आंकड़ों से भी काफी ज्यादा है। सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक त्रिपुरा, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में लोगों को नौकरियां ढूंढने पर भी नहीं मिल रही हैं। त्रिपुरा में बेरोजगारी दर 23.3 फीसदी रिकॉर्ड की गई है।
पढ़े लिखे तबके को भी जो नोकरी कर रहा है उसे छटनी जैसी समस्या से दो चार होना पड़ रहा है ताजा खबर यह है कि इन्फोसिस जैसी कम्पनी में छंटनी हो रही है जहाँ IT इंडस्ट्री से जुड़ा हर बेरोजगार व्यक्ति रोजगार पाने का सपना देखता है इंफोसिस कंपनी जेएल6 (इंटरनल जॉब कोड) लेवल के 2200 इग्जेक्युटिव्स को हटाने जा रही है ये सभी मध्य और उच्च स्तर पर काम करने वाले एग्जेक्यूटिव हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक जेएल 1 से 5 लेवल तक के भी 2-5 फीसदी कर्मचारियों को हटाने का प्लान बना रही है। यह संख्या 4 से 10 हजार के बीच होगी।
आईटी क्षेत्र की एक और दिग्गज कंपनी कोग्जिनेट टेक्नोलॉजी कंटेंट मॉडरेशन कारोबार समेटने का ऐलान किया है। कंपनी के इस फैसले से 6000 लोग बेरोजगार होने वाले हैं। कंपनी इनके अलावा भी 7000 लोगों की छुट्टी करने पर विचार कर रही है।
यह तो हुई उच्च शिक्षित बेरोजगारी की बात अब आप मनरेगा जैसी बेसिक रोजगार प्रदाता योजना को ही देख लीजिए, द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि 2018-19 में मनरेगा में काम करने वाले 18 से 30 आयु वर्ग के श्रमिकों की संख्या 70.7 लाख पहुंच गई जबकि 2017-18 में यह केवल 58 लाख थी। 2013-14 के बाद इन आंकड़ों में लगातार गिरावट आई थी लेकिन चालू वर्ष में लगातार बड़ी तादाद में लोग इसके तहत रोजगार चाह रहे हैं।
देश में पहली बार 2011-12 और 2017-18 के बीच करीब 90 लाख नौकरियां कम हुई हैं। यह बात अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिर्टी में सेंटर आफ सस्टेनेबल इंप्लॉयमेंट की ओर से कराए गए अध्ययन में सामने आई है. दरअसल आर्थिक मंदी के कारण देश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। ऑटो सहित कई सेक्टर टेक्सटाइल, चाय, एफएमसीजी, रियल एस्टेट जैसे सेक्टर में आई भीषण मंदी से हालात बद से बदतर हो रहे हैं.
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार एंव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)