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तुंदी ए बाद ए मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब

अम्न व अमान, सद्भावना, भाईचारा और गंगा जमुनी तहज़ीब के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हमारे प्यारे देश हिन्दुस्तान को न जाने किसकी नज़र लग गयी। कोरोना जैसी वबा ने देश और दुनिया की सतह पर जो तबाही मचाई थी उसके बाद होना यह चाहिए था कि मुल्क को तरक़्क़ी के रास्ते पर लगाया जाता, रोज़गार को बढ़ावा दिया जाता, महंगाई पर क़ाबू पाया जाता, भाईचारे को मज़बूत किया जाता, अमन व अमान को क़ायम किया जाता लेकिन इसके ख़िलाफ़ बातें नज़र आ रही हैं।

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ऐसा लग रहा है जैसे मुल्क के विकास की किसी को फ़िक्र नहीं है और न ही यह कोई विषय है। बेरोज़गारी तो जैसे कोई मसला ही नहीं है। मुल्क में नफ़रत की ऐसी आंधी चलाई जा रही है कि जैसे इसके बीच आकर हर चीज़ मिट जाएगी। अफ़सोस की बात यह है कि इस ख़तरनाक सूरत ए हाल पर क़ाबू पाने की बजाए सरकार में बैठे लोग इस मुल्क मुख़ालिफ़ आंधी को तूफ़ान में तब्दील करना चाहते हैं।

मुल्क का मुसलमान जो पिछले 75 साल से नफ़रत की आग में जल रहा है उसको राख के ढेर में तब्दील करके तूफ़ान में उड़ा देने की कोशिश की जा रही है। देश के 15 फ़ीसद मुसलामानों से 80 फ़ीसद हिन्दुओं को डराया जा रहा है। बहरहाल मुल्क में इस वक़्त जो सूरत ए हाल है वो किसी काली रात से कम नहीं है। मुमकिन है कि कुछ लोग फ़िरक़ापरस्ती के सबब अंधे हो गए हों, वो सुनहरी ख़्वाब देख रहे हों और उनको महसूस हो रहा हो कि शायद अच्छे दिन आने वाले हैं लेकिन मुल्क का एक बड़ा तब्क़ा इस बात के लिए फ़िक्र मंद है कि आख़िर देश किस रास्ते पर जा रहा है और इसका अंजाम क्या होगा?

हर रोज़ कोई न कोई ऐसा मसअला ज़ेर ए बहस लाया जा रहा है जो मुल्क में नफ़रत को और बढ़ाने का काम कर रहा है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद ख़त्म हुआ तो ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह के मसअले को उठा दिया गया। बात तो इसपर होनी चाहिए थी कि मोदी सरकार ने अपनी 8 साला सरकार में क्या काम किया?  क्या जो वादे किये थे वो पूरे किये?  क्या देश में महंगाई कम हुई? बेरोज़गारी दूर हुई? काला धन वापस आया? गंगा जमुना जैसी नदियां साफ़ हुईं? आतंकवाद पर क़ाबू पाया जा सका?

लेकिन इस पर ख़ामोशी है। नौजवान आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। ख़ुद मोदी सरकार की जानिब से संसद में पेश की गई रिपोर्ट है कि 2018 से 2020 के दौरान 9 हज़ार से भी ज़्यादा नौजवानों ने ख़ुदकुशी की है लेकिन इस पर कहीं कोई मुबाहिसा हुआ? दो साल से फ़ौज में भर्ती नहीं हुई और जब नौजवानों की तरफ़ से दबाव बनाया गया तो अग्निपथ जैसी विवादित योजना पेश कर दी गयी जिसने एक नया हंगामा खड़ा कर दिया। महज़ 22 साल की उम्र में नौजवानों को रिटायर्ड करने का मंसूबा तैयार करके मोदी सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है।

मुल्क की शानदार और आलमी शोहरत याफ़्ता विरासत को निशाना बनाया जा रहा है। ताजमहल और क़ुतुब मीनार के ख़िलाफ़ मुहिम शुरू की जा रही है। हालांकि अब इलाहबाद हाईकोर्ट और पुरातत्व विभाग ने जो फिरकापरस्तों को आइना दिखाया है उससे कुछ उम्मीद बंधी है लेकिन सरकार में बैठे लोगों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्यूंकि वो अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए कोई न कोई नया विषय छेड़ देते हैं।

अब गुस्ताख़ ए रसूल नूपुर शर्मा का ही मामला ले लीजिये। अगर सरकार की नियत अच्छी होती और मुल्क में शान्ति चाहती तो जैसे ही इस गुस्ताख़ के ख़िलाफ़ थानों में शिकायत दर्ज करायी गयी थी क़ानून के मुताबिक़ कार्रवाई कर दी जाती लेकिन ऐसा न करके इस मसले को हवा दी गयी। नतीजा क्या हुआ?  पूरे मुल्क में अफ़रा तफ़री मच गयी जिसका नुक़सान हक़ पर रहते हुए भी मुसलामानों का हुआ और हो रहा है।

नूपुर शर्मा तो जेल नहीं गईं लेकिन हक़ की आवाज़ बुलंद करने वाले 2200 से ज़्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया। उदयपुर में कन्हैया कुमार के क़त्ल ने तो जैसे आग में घी डालने का काम किया। हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (सअ) के नाम पर क़त्ल को कोई भी जायज़ नहीं ठहरा रहा है। हम सबने सरकार से मांग की है कि मुजरिमीन को सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाए लेकिन इसके बावजूद फिरकापरस्तों का जो तांडव है वो आप देख सकते हैं।

अमरावती की क्या सच्चाई है नहीं मालूम लेकिन महाराष्ट्र में सरकार बदलते ही इस मामले को भी तूल दे दिया गया। इसको उदयपुर की तरह क़रार दे दिया गया लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीमकोर्ट की जानिब से जो टिपण्णी की गई है और उपरोक्त बातों के लिए जिस गुस्ताख़ ए रसूल को ज़िम्मेदार क़रार दिया गया है उसके ख़िलाफ़ अबतक कोई करवाई नहीं की गई बल्कि सुप्रीमकोर्ट के ख़िलाफ़ ही मुहिम छेड़ दी गयी। सर्वोच्च न्यायालय की शान में फ़िरक़ापरस्तों की जानिब से जो अभद्र टिपण्णी की गयी है उसको यहाँ लिखना भी मुनासिब नहीं है।

सवाल यह है कि अगर सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने अपने तब्सरे में यह कह दिया कि ”आपके बयान से देश का माहौल ख़राब हुआ है। आपके बयान से मुल्क की बदनामी हुई है। आपने पैग़म्बर पर भड़काऊ बयान दिया है। आपको टीवी पर जाकर माफ़ी मांगनी चाहिए। आप ख़ुद को वकील कहती हैं, फिर भी ऐसा बयान दे दिया। तो इसमें ग़लत क्या है? सुप्रीमकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को भी अगर फटकार लगाई कि आख़िर एफ़ आई आर दर्ज होने के बाद नूपुर शर्मा को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया? लगता है आपके (नूपुर शर्मा ) लिए दिल्ली पुलिस ने रेड कार्पेट बिछा रखा है तो इसमें हैरानी क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने बहुत साफ़ शब्दों में ये भी कहा है कि नूपुर शर्मा के बयान की वजह से ही उदयपुर का हादसा हुआ है, इसके बावजूद क्या नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी अमल में लायी गई?  कहीं महापंचायत करके और कहीं जुलूस निकाल कर मुसलामानों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने का एलान किया जा रहा है तो कहीं मुस्लिम सब्ज़ी और फल बेचने वालों का समाजी बहिष्कार का एलान किया जा रहा है। उदयपुर और अमरावती के मुल्ज़िमीन की गिरफ़्तारियों के बावजूद मुस्लिम मुख़ालिफ़ सियासत जारी है।

नूपुर शर्मा की हिमायत पहले से ज़्यादा की जा रही है। सुप्रीमकोर्ट के सख़्त तब्सरे के बावजूद फ़िरक़ापरस्त ताक़ते मुल्क के मुसलामानों को ही क़ुसूरवार ठहरा रही हैं। इस दौरान उदयपुर के ताल्लुक़ से यह बात भी सामने आई है कि जिस रियाज़ नाम के शख़्स ने कन्हैया का क़त्ल  किया है इसका ताल्लुक़ भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा से है। रोज़नामा दैनिक भास्कर की जानिब से इस पर एक पूरी स्टोरी भी चलाई गई है। विपक्ष की जानिब से भाजपा को घेरा भी गया है और जवाब माँगा गया है तो क्या इसकी ईमानदारी से जांच नहीं होनी चाहिए?

सवाल यह है कि मुल्क में हो क्या रहा है? क्या कुर्सी के लिए सियासत का मैयार इस क़द्र गिराया जा सकता है? बहरहाल कुछ भी हो लेकिन “बर्क़ गिरती है तो बेचारे मुसलामानों पर” वाली सूरत ए हाल है। इस पूरी गुफ़्तगू में जो सबसे अहम बात छन कर आयी है वो ये कि सरकार में बैठी भाजपा की नज़र में सुप्रीमकोर्ट और संविधान की कोई इज़्ज़त है या नहीं? अगर है तो नूपुर शर्मा को फ़ौरी तौर पर जेल भेजा जाए और सुप्रीमकोर्ट की तौहीन करने वालों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की जाए वरना यही समझा जाएगा कि अब देश में क़ानून का राज नहीं है।

मुमकिन है कि इस पर भाजपा की जानिब से यह जवाब हो कि नहीं है लेकिन मुझको कहने दीजिये कि देश में जो कुछ हो रहा है उसको पूरी दुनिया देख रही है। आज़ाद सहाफ़ी मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ कहाँ कहाँ आवाज़ बुलंद हुईं बताने की ज़रूरत नहीं है। नूपुर शर्मा का बचाव मोदी सरकार को कितना महंगा पड़ रहा है वो भी सबके सामने है इसलिए मेरा कहना है कि ग़लत फ़हमी को दूर करते हुए संविधान की सर्वोच्चता को क़ायम रखा जाए। क़ुसूरवारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए और मुल्क के अमन व अमान को बहाल किया जाए, इसी में ख़ैर है।

जहाँ तक मुल्क के मुसलामानों का ताल्लुक़ है तो उनको यही मश्विरा है कि वो और सब्र व तहम्मुल से काम लें। संविधान और अदालत पर भरोसा रखें। अपनी सियासी ताक़त पैदा करें और सुप्रीमकोर्ट के तब्सरे से जो रौशनी मिली है उसमें मुल्क के रौशन मुस्तक़बिल को देखें। आख़िर अपनी बात एक शेर से ख़त्म करता हूँ।

तुंदी ए बाद ए मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब

ये तो चलती है तुझे ऊंचा उड़ाने के लिए

(लेखक AIMIM दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष हैं, ये उनके निजी विचार हैं)