प्रधानमंत्री मोदी बधाई के पात्र हैं कि उनके कार्यकाल में सबको आसानी से पता चल गया कि कौन पत्रकार है और कौन पक्षकार है। भारतीय मीडिया मुसलमानों के ख़िलाफ तो था ही लेकिन अब हर उस आवाज़ के ख़िलाफ हो गया जो इस मोदी सरकार की आलोचक है। मोदी के कार्यकाल में कुछ हुआ या न हुआ हो लेकिन समाज द्वारा पत्रकारों को सर्टिफिकेट जारी हो गया कि कौन पत्रकार है और कौन नहीं। मौजूदा दौर में टीवी स्क्रीन पर दिखने वाले भारतीय मीडिया के स्वयंभू एंकर यूपीए सरकार में पत्रकार समझे जाते थे, लेकिन अब वही चेहरे सीधे सीधे गोदी मीडिया एंव दलाल कहे जा रहे हैं।
कल एक चैनल पर राकेश टिकैत फरमा रहे थे कि इन चैनलों ने ही तो देश का बंटाधार किया है। यूपीए के वक्त में जो एंकर ग्राउंड पर रिपोर्टिंग किया करते थे मोदी सरकार में वे इतनी भी हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं कि अपने स्टूडियो के बाहर का जायजा ले सकें। जिन्हें नस्लवादी क़ानून के ख़िलाफ चले आंदोलन में चैनल के ‘झूठ’ पर यक़ीन था, उनका भ्रम किसान आंदोलन में दूर हो रहा है। जिन्हें अभी किसान आंदोलन पर चैनल पर होने वाली बकवास पर यक़ीन है उनका भ्रम अगले किसी आंदोलन में टूट जाएगा। अभी बिजली क़ानून आ रहा है, बिजली कंपनियों की अपनी पुलिस होगी, अब वे थाने के मोहताज नहीं होंगे। उसी तरह बीज क़ानून भी आने वाला है, बीज कंपनियों की भी अपनी पुलिस होगी, किसानों का जो वर्ग इन दिनों भाजपा द्वारा की जाने वाले कृषि क़ानून जागरुक रैलियों में दरी चादर कुर्सी बिछा रहा है और आंदोलन कर रहे किसानों को बुरा भला कह रहा है उसकी अक्ल बीज क़ानून पर जरूर ठिकाने पर आएगी। धीरे धीरे सबका नंबर आएगा। एक दिन ऐसा होगा कि इस देश में कोई भी परिवार ऐसा नहीं बचेगा जो मीडिया को झूठा, मक्कार, दलाल नफरतबाज न कहे।
एनडीए सरकार में हर वर्ग को आंदोलन करने का मौक़ा मिलेगा, क्योंकि 2019 में बनी सरकार का अभी तक कोई यूटर्न नहीं है, हो सकता है यह सरकार कृषि क़ानून पर भी यू-टर्न न ले पाए। एक वजह और भी है, हिंदु मुस्लिम, दंगा, झंडा, चंदा, के नाम पर सिर्फ अपने वोट बैंक तो खुश रखा जा सकता है लेकिन जिस मीडिया के दम पर यह सरकार टिकी हुई है उसके मालिक यानी अंबानी को दंगा, झंडा, राम मंदिर, हिंदु, मुस्लिम से खुश नहीं किया जा सकता. उसे अपना कारोबार करना है, उसके लिये जनता के अधिकारों में कटौती लाजिमी है। इसलिये यह सरकार हर एक वर्ग को आंदोलन प्रदर्शन करने का मौक़ा देगी।