कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से असहमत होकर एक सुर में बोले मुस्लिम नेता

नयी दिल्ली: प्रमुख मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्लाह ने मंगलवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले की निंदा की जिसमें हिजाब को इस्लाम का गैर-जरूरी अंग बताते हुए शिक्षण संस्थानों में प्रतिबंधित कर दिया गया।

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पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा, “यह फैसला बेहद निराशाजनक है। हम एक तरफ महिलाओं को सशक्त करने की बात करते हैं और दूसरी तरफ हम उनसे चुनने का अधिकार छीन रहे हैं। यह सिर्फ धर्म के बारे में नहीं है, बल्कि चुनने की स्वतंत्रता से संबंधित है।”

नेशनल कांफ्रेंस अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके उमर अब्दुल्लाह ने कहा, “फैसले से बहुत निराश हूं। आप हिजाब के बारे में जो भी सोचते हों, बात सिर्फ एक कपड़े की नहीं है, बात एक महिला के यह चुनने के अधिकार की है कि वह क्या पहनना चाहती है। यह उपहासजनक है कि अदालत ने इस मूल अधिकार की रक्षा नहीं की।”

मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (मीम) अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि उन्हें आशा है कि याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च अदालत का रुख करेंगे। उन्होंने फैसले को बदनीयत बताते हुए अपने विचार के पीछे कई कारण गिनाये।

उन्होंने कहा कि फैसले ने “धर्म, संस्कृति और अभिव्यक्ति की आजादी के मूलभूत अधिकारों को समाप्त कर दिया है।” उन्होंने कहा,“एक धार्मिक मुसलमान के लिए हिजाब एक प्रकार की आराधना है। अनिवार्य धार्मिक व्यवहार परीक्षा को कसौटी पर रखने का समय आ गया है। एक धार्मिक व्यक्ति के लिए सब कुछ अनिवार्य है और नास्तिक के लिए कुछ अनिवार्य नहीं है। एक धार्मिक हिन्दू ब्राह्मण के जनेऊ अनिवार्य है मगर एक गैर-ब्राह्मण के लिए अनिवार्य नहीं है। यह हास्यास्पद है कि न्यायाधीश अनिवार्यता निर्धारित कर सकते हैं।”

ओवैसी ने कहा,“एक ही धर्म के दूसरे लोगों को अनिवार्यता निर्धारित करने का अधिकार नहीं है। यह एक व्यक्ति और ईश्वर के बीच का मामला है। राज्य को इन धार्मिक अधिकारों में दखल देने की अनुमति सिर्फ तब होनी चाहिए जब यह किसी दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाते हों। हिजाब किसी को हानि नहीं पहुंचाता।”

लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाना मुस्लिम महिलाओं और उनके परिवारों के लिये हानिकारक है क्योंकि यह उन्हें शिक्षा हासिल करने से रोकता है।

उन्होंने कहा, “दलील दी जा रही है कि वर्दी से एकरूपता सुनिश्चित होगी। कैसे? क्या बच्चों को यह पता नहीं चलेगा कि कौन अमीर परिवार से है और कौन गरीब परिवार से? क्या जातिगत नाम बच्चों के वर्ग की तरफ इशारा नहीं करेंगे? जब आयरलैंड में हिजाब और सिख पगड़ी को अनुमति देने के लिए पुलिस की वर्दी में बदलाव किये गए थे तो मोदी सरकार ने इस फैसले का स्वागत किया था। देश और विदेश के लिए दोहरे मानदंड क्यों? स्कूल की वर्दी के रंग के हिजाब और पगड़ी को पहनने की अनुमति दी जा सकती है।”

ओवैसी ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि यह फैसला हिजाबी महिलाओं के उत्पीड़न को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। एक व्यक्ति उम्मीद कर ही सकता है। बैंकों, अस्पतालों व बस-मेट्रो में इस तरह की घटनाओं के शुरू होने पर निराश होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।”