हद हो गई दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ खान भी देशद्रोही है?

ज़ाहिदा सुलेमान

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अब तक सबसे ज्यादा फिल्म फेयर अवार्ड जीतने वाले दिलीप कुमार का 7 जुलई को 98 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन पर एक विचारधारा विशेष उसका मीडिया चैनल दिलीप कुमार को देशद्रोही बताकर पाकिस्तान से जोड़ रही है। राष्ट्रवादा के इन ‘ठेकेदारों’ को इतना भी मालूम न हीं कि दिलीप कुमार आजादी से पहले 1922 में पेशावर (तत्कालीन भारत) में पैदा हुए थे और सात जुलई 2021 में मायानगरी मुंबई में सुपुर्द-ए-खाक हो गए। इस तरह दिलीप कुमार जन्म भी भारत में हुआ, और उन्होंने आखिरी सांस भी भारत में ही ली।

आजादी से पहले ही दिलीप कुमार साहब का परिवार पेशावर से मुंबई आ गया था, फिर ये पाकिस्तानी कैसे हो गए? विभाजन के समय पाकिस्तान से आने वालों में लाल कृष्ण आडवाणी, मणिशंकर अय्यर, गुलज़ार, मिल्खा सिंह और डॉ. मनमोहन सिंह शामिल हैं। ये लोग विभाजन के समय पाकिस्तान से भारत आए थे। जहां तक सवाल दिलीप कुमार का है तो उनका बस इतना कसूर है कि वो मुसलमान थे, चूंकि इस देश में मुसलमानों के  ख़िलाफ प्रोपेगेंडा वार का रिवाज बन गया है, इसलिये दिलीप साहब को निशाना बनाया जा रहा है, सवाल यह है कि दिलीप कुमार अगर मुसलमान न होते तो उन्हें पाकिस्तानी बताने वाले लोग ही उनकी शान में क़सीदे गढ़ते।

मुसलमानों की ओर से कुंठाग्रस्त रहने वालों को यह भी मालूम होना चाहिए कि कलाकार पूरी दुनिया का होता है। लेकिन इन्हें तो ये भी मालूम नहीं कि सिने कलाकार चंकी पांडे कभी बांग्लादेश के सुपरस्टार थे। लेकिन उन्हें भारत में सम्मान दिया गया, इस पर शायद ही किसी आपत्ति ज़ाहिर की हो, किसी ने नहीं कहा कि बंग्लादेशी चंकी पांडे को भारत में पुरुस्कार क्यों दिये जा रहे हैं। जन्म तो राज कपूर का भी पेशावर में हुआ था, फिर उन्हें देशद्रोही या पाकिस्तानी कहकर क्यों नहीं पुकारा गया।

क्योंकि दिलीप कुमार का जन्म भारतीय पेशावर में हुआ था लेकिन 1947 में पेशावर, पाकिस्तान में ही रह गया, आजादी के बाद पाकिस्तान सरकार ने पेशावर के बेटे को पाकिस्तान के  निशान-ए- इम्तियाज़ से भी सम्मानित किया। यह तमाम भारतीयों के लिए गर्व की बात होनी चाहिए। दिलीप कुमार ने कभी अपने खुद को पाकिस्तानी नहीं कहा। अखंड भारत का राग अलापने वाला वर्ग अगर पाकिस्तान और बांग्लादेश को अपना हिस्सा मानता है लेकिन दिलीप कुमार को नहीं पचा पा रहा है।

अब पाकिस्तान में मांग उठ रही है कि शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को देश का सबसे बड़ा सम्मान दिए जाए। अगर पाकिस्तान अपने नागरिकों को बात मान लेता है तो शायद ये महान शहीद भी तथाकथित राष्ट्रवादियों के लिए देशद्रोही हो जाए। नफरत में विवेक खो बैठे इस वर्ग को कौन बताए कि देश और दुनिया में प्यार फैलाना कितना ज़रूरू है।

(लेखिक पंजाबी चैनल की एंकर हैं, यह पंजाबी भाषा से अनुदित किया गया है)