शोएब अख्तर ने 161.3 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से गेंद फेंक कर दुनिया का सबसे तेज़ गेंदबाज़ होने का एजाज़ हासिल किया था. महिलाओं की क्रिकेट में यह रेकॉर्ड दक्षिण अफ्रीका की शबनम इस्माइल के नाम है जिसने 128 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार निकाली. शबनम की यह रफ़्तार पुरुषों की क्रिकेट में मीडियम पेस कहलाती है और बाज़ स्पिनर तक इतनी तेज़ गेंदें फेंक लेते हैं. इसी तरह सौ मीटर की स्प्रिंट के विश्व रेकॉर्ड को लिया जा सकता है जिसे कायम करने के लिए उसैन बोल्ट के 9.58 सेकेण्ड के मुकाबले फ्लोरेंस ग्रिफिथ जॉयनर ने 10.49 सेकेण्ड लिए.
प्रकृति ने स्त्रियों के शरीर को इस तरह रचा है कि दुनिया के तकरीबन हर खेल में पुरुष उनसे कहीं बेहतर प्रदर्शन करते हैं. शारीरिक संरचना का यह नैसर्गिक अंतर खेल की केवल उन प्रतिस्पर्धाओं में मायने रखना बंद कर पाता है जिन्हें अल्ट्रा-मैराथन कहा जाता है. यानी जिन प्रतिस्पर्धाओं में शारीरिक शक्ति और रफ़्तार नहीं मानसिक दृढ़ता और दर्द का सामना करने की क्षमता का इम्तहान होता हो. मिसाल के तौर पर अगर किसी स्टेडियम में दस हजार मीटर की रेस के लिए इलाके के सबसे बड़े सौ एथलीट बुलाये जाएं तो उनमें मुश्किल से दो या चार स्त्रियाँ होंगी. हो सकता है ये स्त्रियाँ सबसे फिसड्डी प्रदर्शन भी करें. अब इस रेस को बयालीस किलोमीटर की मैराथन में बदल दीजिये. संभव है शुरू के दस में एक महिला निकल आए. एक कदम और आगे जाकर इसे 150 किलोमीटर की अल्ट्रा-मैराथन बना दीजिये. बहुत मुमकिन है उसे कोई स्त्री जीत कर दिखा दे. दर्द को सहने, अपनी शारीरिक ऊर्जा का मैनेजमेंट करने और भीतरी ताकत को बचाए रखने की ताकत भी स्त्री को प्रकृति ने ही दी है.
डायना नायड की अकल्पनीय कहानी हमारे समय के अनेक मिथकों के ध्वस्त होने की कहानी है. डायना नायड को बचपन से ही दुनिया की सबसे बड़ी तैराक बनने की ज़िद थी. चौदह साल की उम्र में उसने बाकायदा ट्रेनिंग लेनी शुरू की. उसके कोच ने बरसों उसका यौन उत्पीड़न किया लेकिन वह किसी से कुछ न कह सकी क्योंकि उसे अपने साथ कोचिंग ले रही अन्य लड़कियों की तरह भय लगता था. फिर वह किसी दूसरी जगह पढ़ने चली गयी जहाँ उसका कोच बदला और उसने छोटी दूरी की तैराकी प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेना शुरू किया और विश्वविद्यालय स्तर के तमाम रेकॉर्ड्स तोड़ डाले. फिर उसे दिल की बीमारी हो गयी और तीन माह बिस्तर पर गुज़ारने पड़े. वापस स्विमिंग पूल में लौटी तो उसने पाया उसकी रफ़्तार पहले से बहुत कम हो गई है. उसके कोच ने उससे कहा लम्बी दूरी की दौड़ों में हिस्सा लेना शुरू करे और अपना स्टेमिना बनाने पर ध्यान दे. उसने ऐसा ही किया भी.
25 साल की आयु में उसने बे ऑफ़ नेपल्स रेस में 35 किलोमीटर की दूरी को वर्ल्ड रेकॉर्ड समय में पार किया. अगले साल न्यूयॉर्क में हुई एक रेस में यह रेकॉर्ड 45 किलोमीटर की रेस के लिए बनाया. अपने ही कीर्तिमानों को तोड़ने-बनाने का यह क्रम अगले तीन-चार सालों तक चलता रहा 1979 में जब वह तीस की हुई उसने बहामा के बिमिनी द्वीप से फ्लोरिडा के बीच नॉन-स्टॉप तैराकी का विश्व रेकॉर्ड बनाया. 164 किलोमाटर की इस दूरी को उसने साढ़े सत्ताईस घंटों में तय किया. इतिहास में ऐसा न कोई पुरुष कर सका था न स्त्री. उसके मन में क्यूबा से फ्लोरिडा की दूरी तैर कर तय करने का सपना भी था लेकिन 1979 की उस रेस के बाद वह इस कदर थक गई थी कि उसने तैराकी से संन्यास ले लिया.
अगले तीस साल उसने स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टर और मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर खूब नाम कमाया. 2009 में जब वह साठ की हुई, उसकी माँ की मृत्यु हो गई. वह अपनी माँ को बहुत प्यार करती थी और अपने जीवन की हर सफलता का श्रेय उसी को देती थी. माँ की मृत्यु ने उसे सोचने पर विवश किया.
अपनी आत्मकथा ‘फाइंड अ वे – वन अनटेम्ड एंड करेजियस लाइफ’ में डायना याद करती हैं, “मैं नहीं चाहती थी मुझे किसी बात का पछतावा रहे. मैं लगातार उन चीजों के बारे में सोचती रही जिन्हें मैं अपने जीवन में अलग तरीक़े से कर सकती थी. मरते समय मेरी माँ 82 साल की थी. मुझे अहसास हुआ मेरे पास जीने के लिए 22 साल और बचे हैं. मुझे सुनिश्चित करना था मैं इन सालों को वाकई जी सकूं.”
साठ साल की आयु में डायना ने अपने सपने को पूरा करने का फैसला किया. वह क्यूबा से फ्लोरिडा की दूरी को पूरा तैर कर दिखाएगी – अकेली और बिना किसी तरह की सहायता के. जहरीली जेलीफिश और खूंखार शार्क मछलियों से भरी हुई समुद्र की यह दूरी संसार की सबसे खतरनाक जगहों में से एक है. डायना ने पिछले तीस वर्षों में तैराकी नहीं की थी लेकिन अपने शरीर की देखभाल ठीकठाक की थी. अब उसने बाकायदा कोचिंग लेना शुरू कर दिया. कभी-कभी वह दिन में बारह से चौदह घंटे जिम में बिताती.
पर्याप्त तैयारी कर चुकने के बाद उसने 61 की आयु में रेस शुरू की लेकिन 29 घंटे तैरने के बाद उस पर अस्थमा का दौरा पड़ा और रेस स्थगित करनी पड़ी. अगले साल फिर यही हुआ. 63 की आयु में उसने तीसरी बार कोशिश की लेकिन वह भी असफल रही. छः माह बाद चौथी कोशिश भी नाकाम गयी. वह अपनी बचत का बड़ा हिस्सा इस दौरान खर्च कर चुकी थी. भीतर की ताकत जवाब दे रही थी लेकिन उसके सबसे अन्तरंग दोस्तों ने उससे हार न मानने को कहा. उसके दोस्तों की फेहरिस्त में तब तक मार्टिना नवरातिलोवा और बिली जीन किंग जैसे नाम शामिल हो चुके थे.
इसी बीच मेलबर्न की 28-वर्षीय एक युवा तैराक क्लो मैककारडेल ने भी उसी रास्ते तैरने की कोशिश की लेकिन 11 घंटों तक तैरने के बाद उसे एक जेलीफिश ने काट लिया. वह मरती-मरती बची और उसने प्रेस से कहा – “अब मैं दोबारा यहां नहीं आने वाली. बस हो गया!” क्लो मैककारडेल के असफल प्रयास के दो महीने बाद डायना ने फिर एक और कोशिश की. एक सौ दस मील की इस दूरी को उसने इस दफा पार कर दिखाया – अकेले. इंग्लिश चैनल की जिस दूरी को तैरने को बड़ी उपलब्धि माना जाता है, यह दूरी उसके पांच गुने से ज्यादा है. इसके लिए उसे 53 घंटे लगातार तैरना पड़ा. उसे तीन बार जेलीफिश के डंकों को झेलना पड़ा. कम से कम तीन बार ऐसा हुआ जब उसे लगा वह मर जाएगी. उसके साथ चल रही एक नाव में बैठे उसके मित्रों और डाक्टरों ने कम से कम दस बार उससे रेस रोक लेने को कहा. लेकिन उसका नाम डायना नायड था – ग्रीक भाषा में मिथकीय जलकन्या को भी नायड नाम दिया गया है.
आखिरकार जब वह फ्लोरिडा के समुद्रतट पर उतरी उसके चेहरे की झुर्रियां दूनी हो चुकी थीं, समुद्र के नमक ने उसकी त्वचा को सुजा दिया था और वह एक शब्द तक नहीं बोल पा रही थी. उसे देखकर किसी चैपियन एथलीट की नहीं किसी ऐसे इंसान की छवि बनती थी जो किसी विभीषिका से जान बचा कर आया हो. 2 सितम्बर 2013 को 64 साल की आयु में डायना ने वह कर दिखाया जिसे मानव इतिहास में आज तक कोई नहीं कर सका है – न कोई स्त्री न पुरुष.
उसके साथ चल रही नाव में एक वेटरन गोताखोर भी तैनात था जो तीन युद्धों में भाग ले चुका था. उसने कहा, “मैंने कई बार साहस को देखा है. मैंने कई बार धैर्य और इच्छाशक्ति को देखा है. लेकिन ऐसी बहादुरी कभी नहीं देखी. मैंने ऐसा कुछ भी कभी भी नहीं देखा. डायना एक अकल्पनीय स्त्री है. अफ़सोस हमारी दुनिया में सिर्फ एक ही डायना नायड है.” जीवन से जब कभी परास्त होने को हों, एक बार डायना के उस समुद्र में तैरने का वीडियो देख डालिए.