संजय कुमार सिंह
कांग्रेस पर तुष्टीकरण का आरोप लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी के राज में खुलकर हिन्दुत्व चला। भले ही अंतरराष्ट्रीय दबाव अधिकृत प्रवक्ता के बयान पर बना और पार्टी (या सरकार) ने उन्हें फ्रिंज एलीमेंट कहकर उनसे पल्ला झाड़ लिया पर पार्टी प्रमुख कर्ता-धर्ता जिस तरह धार्मिक भावनाएं भड़काते रहे हैं और छोटे-मोटे नेताओं को भी जिस तरह संरक्षण मिलता रहा है वह छिपा हुआ नहीं है। और कोई गिनती के मामले नहीं हैं कि उनका हर बार उल्लेख किया जा सके। फिर भी नुपुर शर्मा को बचाने की हर संभव कोशिश चल रही है। पहले तो एफआईआर ही नहीं लिखी गई और जब लिखी गई तो संतुलन बनाने का खेल चल रहा है।
आज के अखबारों में खबर है कि दिल्ली पुलिस ने कुल 31 लोगों के खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने और ऑनलाइन गलत सूचनाएं फैलाने के आरोप में एफआईआर लिखी गई है। इनमें एआईएमआईएम के प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी हैं। द टेलीग्राफ ने इस खबर का शीर्षक लगाया है, दिल्ली पुलिस की समानांतर एफआईआर के बाद ‘बैलेसिंग’ (संतुलन बनाने) का आरोप। टाइम्स ऑफ इंडिया ने शीर्षक में बताया है कि 31 लोगों में ओवैसी भी हैं और ओवैसी के आरोप को हाईलाइट कर बताया है, ओवैसी के अनुसार दिल्ली पुलिस पक्ष लेने और बैलेंसवाद दोनों की शिकार है। उन्होंने कहा है कि एफआईआर में यह भी नहीं कहा गया है कि आक्रामक (आपराधिक) क्या है। द हिन्दू में यह खबर पहले पन्ने पर दो कॉलम में है लेकिन सूचना भर, और बैलेंस! भी दिल्ली पुलिस ने नरसिम्हानंद और ओवैसी के खिलाफ मामला दर्ज किया।
नया इंडिया ने लिखा है, सरकार ने फिर दी सफाई। भारत ने बृहस्पतिवार को स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसी टिप्पणियां सरकार के रूख को प्रदर्शित नहीं करती हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने प्रेस कांफ्रेस में सरकार का रूख स्पष्ट किया। ऐसे ट्वीट, टिप्पणियां सरकार के रूख को प्रदर्शित नहीं करती हैं। तथ्य है कि ऐसे ट्वीट एवं टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ संबंधित पक्ष द्वारा कार्रवाई की गई है। इसके अतिरिक्त मुझे और कुछ नहीं कहना है। नवोदय टाइम्स में लगभग यही बात बताते हुए इसे लीड बनाया गया है। शाह टाइम्स का शीर्षक है, दिल्ली में ओवैसी और नरसिम्हानंद पर केस दर्ज। कहने की जरूरत नहीं है कि दिल्ली पुलिस का बैलेंसवाद अखबारों के शीर्षक में भी दिख रहा है।
आपको याद होगा कि दिल्ली पुलिस के मौजूदा प्रमुख, राकेश अस्थाना को सीबीआई कार्रवाई से बचाने के लिए सीबीआई प्रमुख को रातो-रात बदल दिया गया था और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पर 5 जनवरी 2020 को हमले के समय पुलिस ने बचाव में आवश्यक कार्रवाई नहीं की और अब तक मुख्य आरोपी, ‘शर्मा जी की बिटिया’ को गिरफ्तार नहीं किया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि दिल्ली पुलिस की कार्रवाई निष्पक्ष नहीं है और उसे निष्पक्ष दिखाने की कोई कोशिश भी होती नहीं दिख रही है। और अखबारों में यह सब तो नहीं पर जो थोड़ा-बहुत छपा है वह एक अच्छी शुरुआत (या मजबूरी) हो सकती है।
इस संबंध में फेसबुक पर विनोद चांद ने लिखा है, आरोप तय करने में गलती मत कीजिए। अगर नुपुर शर्मा, नवीन जिन्दल, तेजिन्दर बग्गा, अनुराग ठाकुर, नविका कुमार, अरनब गोस्वामी, सुधीर चौधरी और कपिल मिश्रा जैसे लोग हैं तो इसलिए कि (प्रधानमंत्री नरेन्द्र) मोदी ने उन्हें ऐसा बने रहने दिया है। वे जानते हैं कि मोदी को क्या पसंद है और इसलिए ये वही करते हैं जो मोदी जी का पसंदीदा बने रहने के लिए उन्हें पसंद है। बेहयायी सबसे ऊपर से शुरू होती है और जब तक खुद मोदी को धार्मिक घृणा फैलाने और धुप्रीकरण के अपराध को संरक्षण देने के लिए गिरफ्तार नहीं किया जाता है यह अभियान रुकने वाला नहीं है। ये लोग कुछ समय के लिए शांत हो जाएंगे और फिर शुरू हो जाएंगे। भाजपा की प्रेस विज्ञप्ति के बावजूद। बेशक मीडिया सच बता रहा होता तो बात कुछ और होती।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)