नई दिल्लीः साल 2020 में दिल्ली दंगों से जुड़े भड़काऊ भाषणों से जुड़े एक मामले में, दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि चुनाव के समय दिया गया भाषण सामान्य समय के दौरान दिए गए भाषण से अलग होता है और कभी-कभी बिना किसी इरादे के सिर्फ ‘महौल’ बनाने के लिए ऐसी बातें कही जाती हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि अगर मुस्कुराते हुए कुछ कहा जाता है, तो कोई अपराध नहीं है, लेकिन अगर गुस्से के साथ कुछ आपत्तिजनक कहा जाता है, तो वो अपराध हो सकता है। अदालत सीपीआई (एम) नेता वृंदा करात की निचली अदालत के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और सांसद परवेश वर्मा के खिलाफ उनके कथित भड़काऊ भाषा के लिए प्राथमिकी दर्ज करने की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया गया था।
मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक़ कोर्ट ने कहा, “क्या वे चुनावी भाषण थे? क्या वह आम भाषण थे या चुनावी भाषण थे? चुनाव के समय अगर कोई भाषण दिया जाता है, तो वह अलग बात है। अगर आप आम भाषण में कुछ ऐसे बोल रहे हैं, तो यह कुछ उकसावे वाला हो सकता है। चुनावी भाषण में राजनेताओं की तरफ से इतनी सारी बातें कही जाती हैं यह भी गलत है, लेकिन मुझे अधिनियम की आपराधिकता देखनी है।”
तो दर्ज हो जाएंगी हज़ारों एफआईआर
इसमें कहा गया है कि ऐसे तो चुनावों के दौरान सभी राजनेताओं के खिलाफ हजारों FIR दर्ज की जा सकती हैं, “अगर आप मुस्कान के साथ कुछ कह रहे हैं, तो कोई अपराध नहीं है, अगर आप आक्रामक होकर कुछ कह रहे हैं, तो आपराधिकता। आपको चेक और बैलेंस करना होगा। नहीं तो, मुझे लगता है कि चुनाव के दौरान सभी राजनेताओं के खिलाफ 1,000 एफआआआर दर्ज की जा सकती हैं।”
बेंच ने कहा, “क्योंकि हम भी लोकतांत्रिक देश में हैं,आपको भी बोलने का अधिकार है। वह भाषण कब और किस समय दिया गया था और उसका इरादा क्या था? केवल चुनाव जीतने का इरादा या जनता को अपराध करने के लिए उकसाने का इरादा। दोनों दो अलग-अलग चीजें हैं। यह देख कर ही हमें आपराधिक कानून लागू करना होगा।”
याचिकाकर्ता ने कैसे तय किया?
बता दें कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा नेता प्रवेश वर्मा ने एक बयान में कहा था कि “ये लोग आपके घर में घुसेंगे आपकी बेटियों को उठेंगे और उनको रेप करेंगे …”, अदालत ने पूछा कि इसमें ‘ये लोग’ किस तरफ इरादा करता है और याचिकाकर्ता कैसे निष्कर्ष निकाल रहे थे कि यह किसी एक विशेष समुदाय को लेकर ही कहा रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील अदित पुजारी ने तर्क दिया कि यह बयान शाहीन बाग के संदर्भ में दिया गया था।
अदालत ने यह भी पूछा कि क्या केवल एक विशेष समुदाय ही विरोध में था? “वो मटेरियल कहां है? क्योंकि अगर आप कह रहे हैं कि विरोध केवल एक विशेष समुदाय के लिए है और दूसरा समुदाय आंदोलन का समर्थन नहीं कर रहा है, तो क्या आप यह सुझाव दे रहे हैं?” अदालत ने पूछा कि क्या उस आंदोलन को इस देश के दूसरे सभी नागरिकों की तरफ से समर्थित किया गया था, याचिकाकर्ता कैसे तर्क दे सकते हैं कि भाषण केवल एक समुदाय के लिए निर्देशित किया गया था।
पुजारी ने जवाब दिया कि चाहे चुनाव हो या न हो, बयानों में “किसी तरह का उकसावा” है। कोर्ट ने शुक्रवार को करात की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। पुलिस ने पहले निचली अदालत के फैसले का बचाव किया था।