अपूर्व भारद्वाज
‘दिल्ली विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग अंतिम 90 मिनट में 19.89% वोट “पड़े है इसका मतलब है कि एक करोड़ 46 लाख 92 हजार 136 कुल मतदाताओं में से, 29 लाख 22 हजार,266 लोगों ने मात्र अंतिम 90 मिनट में ही मतदान किया. अगर यह सच है तो यह विश्व भर के चुनाव और डाटा विशषज्ञों के लिए सबसे बडी घटना है.
दिल्ली चुनाव की क्रोनोलॉजी समझिये
- सबसे पहले चूहे का “अनुमान” था कि दिल्ली में 8 तारीख को मतदान शाम 4:30 बजे 42 % था। फिर शाम 5 बजे तक इसमें 1.82% की वृद्धि हुई। अगले 30 मिनट में, करीब 10.15% दिल्ली के मतदाता मतदान केंद्रों पर पहुंचे और यह आंकड़ा 54.65% तक पहुंच गया.
- शाम 6:30 बजे यह “अनुमान” 0.53% बढ़ गया और 55% तक पहुंच गया फिर मतदान समाप्त होने के लगभग तीन घंटे बाद करीब 8:40 पर चूहे ने अनुमान लगाया कि मतदान प्रतिशत 59.13% है और सरकार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की चूहे ने 10:18 बजे इसे 1.13 % और बढ़ गया.
- अगले दिन 9 तारीख की सुबह यह आँकड़ा यह 61.43% तक पहुंच गया था.दरअसल ईवीएम में एक सुविधा है कि मतदान केंद्रों के अधिकारी एक ही बटन दबाकर मतदान के अंत में उस विशेष ईवीएम में मतदान की कुल संख्या की जांच कर सकते हैं।
- एक बार फिर से 24 घँटे सोने के बाद चूहा जागा और “अनुमान” लगाया कि मतदान प्रतिशत 1.16% और बढ़ गया और 62. 59 तक पहुंच गया है.
सबसे आपत्तिजनक की बात है कि चुनाव आयोग का कहना है कि वे 13750 मतदान केंद्रों से 24 घंटे से अधिक समय के बाद भी डेटा को नहीं मिला सकते हैं अब तमाम राजनीतिक दलों को सतर्क रहना होगा उन्हें फॉर्म 17 सी, बूथ वार जमा करना होगा और मतदान प्रतिशत की तुलना करनी होगी।आंकड़ों में किसी भी प्रकार की भिन्नता का मतलब है, चुनाव में धांधली की गई है। दूसरे शब्दों में, इसका मतलब है, ईवीएमडाटा को पेपर बैलट की तुलना में अधिक आसानी किया मैनिपुलेट किया जा सकता है.
इसी प्रकार की आशंका मैंने 2019 के लोकसभा चुनाव के डाटा विश्लेषण में भी व्यक्त की थी मैंने पाया था कि बिहार, बंगाल और उड़ीसा के चुनाव के मतदान के प्रतिशत में भी अंतिम समय आश्चर्यजनक वृद्धि हुई थी एक डाटा विश्लेषक के रूप मैं अच्छे से जानता हूं कि 1-3 फीसदी वोट का अंतर भी किसी भी चुनाव को बिलकुल उलट सकता है खासकर जब मुकाबला तिकोना हो इस तरह की घटनाएं मेरे जैसे EVM समर्थकों के मन भी कई प्रकार के प्रश्न पैदा करती है।
दिल्ली के चनाव आयोग ने इस चुनाव में जिस तरह से नेताओं के नफरत भरे भाषण पर कोई ठोस कार्रवाई नही करते हुए मतदान के प्रतिशत को लेकर जितनी आंशका खड़ी की है, वो भारत के चुनावी लोकतंत्र के लिए बहुत बुरे दिन की आहट का संकेत है ईश्वर भारत की संस्थाओं की रक्षा करे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार एंव डाटा विश्वेषक हैं)