देवबंदः उत्तर प्रदेश में सहारनपुर जिले के देवबंद में इस्लामिक शिक्षा के 156 वर्ष पुराने केंद्र ‘दारूल उलूम’ की विशालकाय बहुमंजिला इमारत के नक्शे और शुल्क का विवाद एक बार फिर तूल पकड़ गया है। दारुल उलूम में 1994 के बाद बिना नक्शा पारित कराये और निर्धारित शुल्क जमा किये बिना किये गये निर्माण कार्य पर शुल्क के निर्धारण के लिये जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने संबंधित विभागों के प्रमुख अफसरों की एक समिति गठित की है। समिति एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट और सिफारिश जिलाधिकारी को सौंपेगी।
आरोप है कि इस संस्था में 1994 के बाद जो भी निर्माण कार्य हुए है और जिनके न तो कभी नक्शे विनियमित क्षेत्र से स्वीकृत कराये और न ही शुल्क राशि जमा कराई। ध्यान रहे विनियमित क्षेत्र का गठन देवबंद में 1994 में ही हुआ है। उसके बाद से दारूल उलूम में छात्रावास, कक्षाएं और मस्जिद आदि काा निर्माण कराया गया।
कमेटी के गठन के बाद दारूल उलूम के नायब मौलाना अब्दुल खालिक मद्रासी, प्रबंध समिति के सदस्य मौलाना अनवाउर्रहमान, निर्माण समिति के प्रभारी हाफिज असजद पांडौली एवं आरकेटेक्ट अशोक भारद्वाज ने जिलाधिकारी अखिलेश सिंह से भेंट कर कहा कि दारूल उलूम चैरिटेबिल धार्मिक संस्था है। जिसका पूरा खर्च दान और चंदे पर आधारित है।
उन्होंने दलील दी कि आयकर की धारा 80 जी के तहत उसे एक तिहाई छूट मिलती है। मौलाना मद्रासी ने जिलाधिकारी से कहा कि इस संस्था में ज्यादातर निर्माण सैकड़ों साल पुराने है और देवबंद के विनियमित क्षेत्र बनने के बाद जो भी निर्माण संस्था में हुए है उनके शुल्क का मूल्यांकन विधिवत तरीके से कराया जाए और जो भी राशि बनेगी संस्था उसे अदा करेगी।
दारूल उलूम इस मामले में 18 फरवरी 2019 को 25 लाख रूपए जमा करा चुका है। उस दौरान राज्य सरकार की ओर से शुल्क जमा करने की एक मुश्त समन योजना आई थी। जिसे बाद में हाई कोर्ट ने स्टे कर दिया था। विनियमित क्षेत्र के नए जेई एनके सिंह ने कहा कि यह राशि बाद के शुल्क में जमा कर दी जाएगी।
इसी विषय को लेकर विनियमित क्षेत्र द्वारा अलग-अलग मूल्यांकन राशि को लेकर विवाद और भ्रम पैदा हो गया। रीजनल टाऊन प्लानर मेरठ कृष्ण मोहन ने बताया कि पूर्व में जो 40 करोड रूपए के शुल्क लगाने की बात आई थी। उसमें कई जमीनी तथ्यों को या तो नजर अंदाज कर दिया गया था और या उनसे आंकलन करने में त्रुटि हुई। जैसे मौलाना मद्रासी के मुताबिक पार्क स्थल पर भी शुल्क लगा दिया गया और 1994 से पहले बने भवनों का भी आंकलन कर लिया गया। बाद में विनियमित क्षेत्र ने यह राशि घटाकर मात्र 39 लाख कर दी।
जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने इसी संदर्भ में मूल्यांकन और शुल्क राशि निर्धारित करने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी बनाई है। जिसमें एसडीएम दीपक कुमार, जेई विनियमित क्षेत्र एनके सिंह, रीजनल टाऊन प्लानर कृष्ण मोहन अधिशासी अभियंता जल निगम और लोक निर्माण विभाग शामिल है। एक माह के भीतर इस समिति को रिर्पोट नए सिरे से तैयार करके देनी है।