पंकज चतुर्वेदी
इन दिनों टीवी मीडिया की सनसनी में लव जेहाद, जबरन धर्म परिवर्तन के बाद दरभंगा विस्फोट का मसला है। दरभंगा के रेलवे स्टेशन पर 17 जून को एक सिकंदराबाद से भेजे गये पार्सल में बहुत साधारण सा धमाका हुआ था जिसकी ताकत मामूली थी। फिर इसमें एनआईए का प्रवेश हुआ। हैदराबाद से दो लडकों को उठाया जो वहां कपडे की दुकान करते थे।
असली कहानी शुरू हुई कि ये लड़के उत्तर प्रदेश के हैं, वह भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कैराना से, शामली के इमरान और नासिर मलिक के पिता मूसा खान ने 15 साल भारतीय सेना में नौकरी की। सन 1971 की लड़ाई में वह बांग्लादेश पहुंचने वाली लाम में आगे थे। नासिर लगभग बीस साल से हैदराबाद में ही रहता है। वहीं की लड़की से उसने ब्याह किया।
असली सनसनी इसमें मूसा खांन का वह बयान है जिसके अनुसार उनका बेटा लंबे समय से भारत सरकार की खुफिया एजेंसी रॉ के लिए काम कर रहा था। वह एक वरिष्ठ महिला अधिकारी के अंडर में काम कर रहा था। उनके कहने पर वह दो बार पाकिस्तान भी जा चुका है। मूसा खान का आरोप है कि काम निकलने के बाद उसी महिला अधिकारी ने उनके बेटे को फंसा दिया।
जान लें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, संसद हमले वाले अफजल गुरू के बारे में सभी जानते थे कि वह भारतीय एजंसी के लिए काम करता था। कश्मीर पुलिस के डीएसपी देवेन्द्रर सिंह का मामला भी याद कर लें। हथियार व तथ्यों के साथ भी पकड़े जाने के बाद न तो उस पर यूएपीए लगा था और ना ही उसकी जमानत पर रोक लग सकी। देवेन्द्रर सिह का काम ही कश्मीर से युवकों को ला कर दिल्ली पुलिस व अन्य केंद्रीय एजंसियों को सौंपना था।
पंजाब के सीमावर्ती जिलों में घर-घर में ऐसे लोग मिल जाएंगे जो कई साल पाकिस्तान की जेलों में रहे। उनका दावा है कि उन्हें इंडियन एजंसी भेजती हैं और जब वे पकडे जाते हैं या लौट कर आते हैं तो उनकी कोई मदद नहीं होती। दरभंगा ब्लास्ट का कनेक्शन यूपी से जोड़ दिया गया, जहां पहले से ही धर्मातंरण की सच्ची झूठी कहानियों के साथ ध्रुवीकरण की हांडी खदबदा रही है। यहां लोग दंगों को भूल कर किसान आंदोलन में शामिल हैं।
बस यही कहूंगा कि मीडिया में जो कुछ चल रहा है उसके आधार पर किसी व्यक्ति, संस्था या मजहब के बारे में धारणा ना बनाएं- एक ही उदाहरण काफी है, नासिर और इमरान के लिए आतंकी शब्द इस्तेमाल करने वाला मीडिया तोडफोड कर रहे बजरंग्र दल के कार्यकर्ताओं के लिए गुंडा नहीं एक्टिीविस्ट शब्द का इस्तेमाल करता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)