नई दिल्लीः बसपा सांसद कुंवर दानिश अली ने कहा है कि सदन में उनके द्वारा पूछे गए एक भी सवाल का गृहमंत्री जवाब नहीं दे पाए। दानिश अली की ओर से जारी एक प्रेस नोट में कहा गया है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय एक भी सवाल का जवाब नहीं दे पाए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अपनी विफलताओं का ठीकरा राज्य सरकारों पर फोड़ रही है। दानिश अली ने मीडिया कर्मियों से संबंधित छह सवाल पूछे थे, लेकिन उन्हें एक भी सवाल का जवाब नहीं मिल पाया।
ये थे सवाल
क्या यह सच है कि देश में मीडियाकर्मियों पर हमलों/पत्रकारों की हत्या इत्यादि की घटनाएं बढ़ रही हैं?
यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और गत पांच वर्षों में प्रत्येक वर्ष और वर्तमान वर्ष के दौरान राज्य-वार पृथकत कुल कितने पत्रकार घायल हुए/मारे गए, कितने व्यक्ति गिरफ्तार किए गए तथा उनके विरूद्ध क्या कार्रवाई की गई?
क्या सरकार को मीडियाकर्मियों/पत्रकारों की सुरक्षा के संबंध में भारतीय प्रेस परिषद से कोई रिपोर्ट/सिफारिशें प्राप्त हुई हैं?
यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और सरकार द्वारा इस संबंध में क्या कार्रवाई की गई है।
क्या सरकार ने पत्रकारों पर हुए हमलों की जांच करने तथा मामले को निर्धारित समय अवधि में निपटाने के लिए कोई समिति गठित की है और यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है? और सरकार द्वारा पत्रकारों, ब्लॉगर्स, स्क्राइब्स, रिपोर्टरों, समाचारपत्र कार्यालयों एवं टीवी स्टेशनों की सुरक्षा हेतु अन्य क्या कदम उठाए गए हैं?
क्या कहा दानिश ने
यूपी की अमरोहा लोकसभा सीट से सांसद दानिश अली ने बताया कि मेरे सवालों के जवाब में उत्तर में गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने अपना पल्ला झाड़ते हुए राज्य सरकारों पर इस की जिम्मेदारी देते हुए कहा के भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत “पुलिस” और “लोक व्यवस्था” राज्य के विषय हैं। पत्रकारों की सुरक्षा एवं संरक्षा सहित कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी प्राथमिक रूप से संबंधित राज्य सरकारों की होती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी), पत्रकारों पर हमलों से जुड़े मामलों के बारे में विशेष आंकड़े नहीं रखता है।
सरकार, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में उल्लिखित “बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार” को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के अंतर्गत स्थापित “भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई)”, जो कि एक सांविधिक स्वायत्त निकाय है, प्रेस की स्वतंत्रता को कम करने, पत्रकारों पर शारीरिक हमले/आक्रमण आदि के संबंध में प्रेस दवारा’ दायर शिकायतों पर विचार करती है। पीसीआई को प्रेस की स्वतंत्रता से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों और इसके उच्च मानकों की रक्षा करने से संबंधित मामलों में स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति भी प्रदान की गई है।
बसपा सांसद ने कहा कि “भारतीय प्रेस परिषद” ने पत्रकारों की सुरक्षा के मामले की जांच करने के लिए एक उपसमिति गठित की थी। उप-समिति द्वारा दिनांक 23.07.2015 को प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में पत्रकारों की सुरक्षा और संरक्षा के संबंध में विभिन्न सिफारिशें की गई थी। मौजूदा कानून पत्रकारों सहित नागरिकों की रक्षा हेतु पर्याप्त हैं।
दानिश ने कहा कि केंद्र सरकार, पत्रकारों सहित देश के सभी नागरिकों की सुरक्षा एवं संरक्षा को सर्वाधिक महत्व प्रदान करती है। गृह मंत्रालय ने राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर परामर्शी पत्र जारी किए हैं कि कानून को अपने हाथ में लेने वाले व्यक्ति को कानून के अनुसार तत्काल दंडित किया जाए। विशेष रूप से पत्रकारों की सुरक्षा के संबंध में राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को एक एडवाइजरी 20 अक्टूबर, 2017 को जारी की गई थी, जिसमें उनसे मीडिया के लोगों की सुरक्षा एवं संरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून को सख्ती से लागू करने का अनुरोध किया गया था।