डैनियल नूर: हाशिये पर पड़े लोगों की नि:स्वार्थ सेवा करके ‘यंग ऑस्ट्रेलियन ऑफ द ईयर’ का ख़िताब पाने वाले

प्रस्तुति: चंद्रकांत सिंह

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वह 25 जनवरी, 2022 की देर शाम थी। मंच से एक नौजवान का नाम पुकारा गया और उस शख्स के अपनी जगह पर पहुंचने से पहले ही ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने खुद आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया। पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा और वह नाम अपने वजूद के साथ दुनिया भर में सुर्खरू हो गया। ‘2022 यंग ऑस्ट्रेलियन ऑफ द ईयर’ अवॉर्ड ने डैनियल नूर और उनके काम को संसार भर में पहुंचा दिया। 

दरअसल, एक बेहतर जिंदगी की तलाश में डैनियल के माता-पिता मोना और जॉन नूर 1970 के दशक में मिस्र से सिडनी चले आए थे। नया शहर था, लेकिन पिता जॉन को बाल सेवा विभाग में नौकरी मिल गई थी। इज्जत से गुजारा तो हो जा रहा था, पर दूसरे मुल्क में स्थायी रूप से बसने के लिए उन्हें काफी पैसे की दरकार थी, जो उस नौकरी से पूरी नहीं हो सकती थी। आखिरकार, उन्होंने ऑफिस फर्नीचर का कारोबार शुरू किया। उस काम से कुछ उम्मीदें बंधने लगी थीं। इस दरम्यान परिवार में क्रिस्टोफर और डैनियल की आमद हो चुकी थी। मिस्र की तमाम अनिश्चितताओं से दूर एक खुशहाल लोकतांत्रिक माहौल में बेटों के भविष्य को लेकर जॉन और मोना को कोई खास चिंता नहीं थी, मगर अपनी जड़ों से उखडे़ हुए लोग कभी बेफिक्र भी कहां होते हैं, इसलिए मां दोनों बेटों के साथ साये की तरह लगी रहती थीं।

दक्षिणी सिडनी के उपनगर पीकहर्स्ट में नूर परिवार रहा करता था। इसी से लगे रिवरवुड के सेंट जोसेफ्स कैथोलिक प्राइमरी स्कूल में डैनियल को दाखिला मिल गया। मिशनरी स्कूल होने के कारण इसकी फीस भी कम थी। भाई क्रिस्टोफर से उलट डैनियल बचपन में पढ़ाई से खूब भागते थे। उनकी चंचलता को लेकर शिक्षक अक्सर यही शिकायत करते कि इससे डैनियल की पढ़ाई प्रभावित हो रही है, लेकिन डैनियल की मासूम शरारतों ने उन्हें घर-स्कूल में सबका चहेता भी बना रखा था। किसी तरह प्राइमरी कक्षाएं पास करने के बाद वह सेंट मार्क्स कॉप्टिक ऑर्थोडॉक्स कॉलेज चले आए, जहां से उन्होंने के-12 की पढ़ाई पूरी की।

इस दौरान भी उन्होंने अपने अकादमिक रिकॉर्ड को लेकर बहुत संजीदगी नहीं दिखाई, लेकिन माता-पिता को अपनी परवरिश और बेटे की योग्यता पर पूरा भरोसा था। वे लगातार डैनियल को प्रोत्साहित करते रहे और इसका असर भी हुआ। के-12 के बाद उन्हें इंपीरियल कॉलेज, लंदन के मेडिकल स्कूल में दाखिला मिल गया। एक खिलंदड़ स्वभाव का युवा दुनिया के सबसे संवेदनशील पेशे में आ गया था। लेकिन डैनियल अब पूरी संजीदगी के साथ इंसानी खिदमत के सारे तय सबक सीखने लगे। और यह उन पर किस कदर असरंदाज हुआ, इसकी मिसाल है- ‘स्ट्रीट साइड मेडिक्स।’

जून 2019 की बात है। उस समय वह पाठ्यक्रम के आखिरी साल में थे। एक शाम अपनी इंटर्नशिप की शिफ्ट खत्म करके वह लौट रहे थे। रास्ते में वाटरलू स्टेशन पर एक जगह काफी भीड़ एकत्र थी। पास जाकर देखा, तो एक शख्स को दौरे पड़ रहे थे। तमाशाई भीड़ में से कोई उसकी मदद नहीं कर रहा था। डैनियल नूर ने फौरन उसकी ‘एबीसी’ की और यह सुनिश्चित किया कि पैरा-मेडिकल टीम के पहुंचने तक वह शांत रहे और अपने को कोई नुकसान न पहुंचा सके। उस बीमार शख्स के पास चार-पांच और बेघर लोग थे, जो उसके साथ वहीं रातें गुजारते थे।

डैनियल ने उनमें से एक बेघर महिला से बात की, तो उसने बताया कि पीड़ित व्यक्ति न तो शराब पीता है और न ही ड्रग्स लेता है, फिर भी उसे महीनों से ऐसे दौरे पड़ते हैं। जब उन्होंने उससे पूछा, आखिर यह किसी डॉक्टर के पास या अस्पताल क्यों नहीं गया, तब उस बेघर स्त्री के रुंधे गले से दुत्कार की जो दास्तान सुनी, वह डैनियल को आहत कर गई। अस्पतालों की निगाह में वे सभी ड्रग्स के लती थे। इन बेघरों का पुरसाहाल कोई न था। तंत्र और समाज से उस महिला की शिकायतों को याद करके डैनियल पूरी रात सो नहीं सके। रह-रहकर उनका मन वाटरलू स्टेशन पर पहुंच जाता था। और उसी रात उन्होंने तय किया कि वह जब ऑस्ट्रेलिया लौटेंगे, तब ऐसे लोगों को यूं तड़प-तड़पकर मरने नहीं देंगे।

यूनिवर्सिटी की छुट्टियों में डैनियल जब सिडनी लौटते, तो हर सप्ताहांत वह बेघरों में भोजन वितरित करने जाया करते थे। यह उनके चर्च का कार्यक्रम था, जिसमें बतौर वॉलंटीयर वह अपनी सेवाएं देते थे। इस तरह वह सिडनी के बेघरों से अच्छी तरह वाकिफ थे। फरवरी 2020 में सिडनी में उन्होंने ‘स्ट्रीट साइड मेडिक्स’ नाम से एक गैर-लाभकारी संगठन का रजिस्ट्रेशन कराया। उनकी रहमदिली और प्रतिबद्धता का आलम यह रहा कि उनके पास जो कुछ भी पूंजी थी, उन्होंने सारी इस अभियान में लगा दी। जिन-जिन से वह मदद ले सकते थे, उनसे संपर्क किया, उनकी सहायता ली। जुलाई 2020 में संस्था के पास अपनी मेडिकल वैन आ गई, जो सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस थी। सिर्फ दो स्वयंसेवकों के साथ डैनियल बेघर दीन-दुखियों की सेवा में जुट गए।

अस्पताल में अपनी पेशेवर जिम्मेदारियां निभाने के बाद डॉक्टर डैनियल नियमित रूप से बेघर बीमारों का इलाज में लगे रहे। हाशिये पर पड़े लोगों की इस नि:स्वार्थ सेवा ने कई लोगों को प्रभावित किया। आज उनकी टीम में 220 वॉलंटीयर हैं, जो दो मेडिकल वैन में घूम-घूमकर सैकड़ों बेघरों का मुफ्त में इलाज करते हैं। वह अब तक 500 से अधिक बेघर, लावारिस लोगों का उपचार कर चुके हैं। डैनियल उनमें से कई को कैंसर, एचआईवी, हेपेटाइटिस-सी जैसे गंभीर रोगों में राहत बांट रहे हैं। असहाय होने की कराह और पीड़ा से मुक्ति के बाद की दुआएं सबसे पुरअसर होती हैं। महज 32 साल के डैनियल को आज यदि दुनिया भर में लोग जानने लगे हैं, तो यह उन दुआओं का ही सिला है।

(सभार हिंदुस्तान)