विक्रम सिंह चौहान
मौजूदा सरकार उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती जिसकी कोई कमजोरी नहीं है. दैनिक भास्कर की बहुत कमजोरी हैं. इसलिए इस अखबार को देर सबेर मैनेज होना ही होगा? नहीं तो यह अखबार बंद हो जाएगा! भारत में पत्रकारिता अभी सिर्फ दो तरह की हो रही है सरकार के साथ या सरकार के विरोध में. जिसे आप साहसिक या निष्पक्ष पत्रकारिता कह रहे हैं उसे भी मोदी के विरोध में ही माना जायेगा. दैनिक भास्कर गोदी मीडिया का ही अखबार माना जाता था, लेकिन जब उसने देखा कि लोग उसके अखबार को पढ़ना बंद कर रहे हैं तो धीरे -धीरे सिर उठाना यानी सच लिखना शुरू किया.
कोरोनाकाल में यह अखबार निखरकर सामने आया और ऑक्सीजन की कमी से मौत,हॉस्पिटल न मिलने से मौत, लापरवाही, बदइंतजामी से मौत,कोरोना से हुई मौतों का सच आंकड़ों और तथ्यों सहित दिया.जलती चिताओं को की फ़ोटो लिया. भोपाल में तो उनके कैमरामैन संजीव गुप्ता रात -रातभर शमशान में ही रहते थे.एक दिन संजीव भदभदा विश्राम घाट के विद्युत शवदाह गृह में फ़ोटो क्लिक कर रहे थे तो 10 -12 साल के भाई बहन उनके पास आये और शवदाह गृह से निकलते काले धुंए को दिखाकर कहा, अंकल मेरी मम्मी जा रही है प्लीज़ उनका एक फोटो ले लीजिए.जिसने भी ये फोटो देखी और खबर पढ़ी आंख से आसूं नहीं रोक पाए.सरकार ने जब कहा सिर्फ चार लोग मरे हैं तो भास्कर ने कहा,नहीं जनाब 112 लोग मरे हैं.ये देखिये सबकी फ़ोटो.इसके बाद भास्कर ने थोड़ा और सिर उठाया और देश में कोरोना से हुई एक-एक मौत को अपने रिपोर्टरों को कवर करने भेजा, तब पता चला मौत हज़ारों में नहीं लाखों में हुई है.
कोरोनाकाल में यह अखबार सच लिखता रहा.राफेल पर भी सरकार को उधेड़ रहे थे.अभी पेगासस मामले में भी यह अखबार इसे लीड बनाया और लगातार फ्रंट पेज पर इस खबर को दे रहे हैं.अखबार ने पेगासस के साथ मोदी और शाह के गुजरात के जासूसी के दौर को भी याद कराया. लिखा “पहले गुजरात, अब केंद्र: फोन टैपिंग विवाद मोदी-शाह के लिए नया नहीं,15 साल पहले भी गुजरात के नेताओं और अधिकारियों के फ़ोन टेप के लगे थे आरोप”.इस हेडिंग के साथ अखबार ने गुलेल वेबसाइट के एक महिला की जासूसी वाली पुरानी खबर को अंदर फ़ोटो के साथ जगह दिया.
बस यहीं से बात बिगड़ गई और भास्कर को इस न्यूज़ को हटाने सीधे पीएमओ से धमकी आई.भास्कर ने यह खबर तो हटा दी लेकिन तब तक यह उनके बड़े पाठक वर्ग के पास जा पहुंचा था.स्क्रीनशॉट अब भी घूम रहा है. उसके बाद वही होना था जो आज हो रहा है.बेशक भास्कर हिंदी पट्टी का सबसे बड़ा अखबार है। जागरण, हिंदुस्तान, पत्रिका, नभाटा और अमर उजाला जैसे अखबार भास्कर के सामने पानी भरते हैं इसलिए भास्कर के हर खबर का अपना दम होता है.
अब बात कमजोरी की
आपको समझना होगा भास्कर जनवादी अखबार नहीं है, न वो क्रांति कर रहा है. वह घोर कारपोरेट अखबार है.विज्ञापन फर्स्ट की नीति रही है इस अखबार की. देश भर में सभी जगह अखबार के लिए सरकारी जमीन लिया और उस पर डीबी पार्क,डीबी माल,डीबी बिजनेस पार्क तान दिया. यह नियमविरुद्ध है ,अखबार के प्रयोजन के लिए मिले जमीन को बिजनेस पर्पस में उपयोग किया.सरकार से पिछले 6 साल से अच्छे रिश्ते रहें ,करोड़ों का विज्ञापन लिया. उल्टे आड़े, सीधे अपने हित साधे. नरेंद्र मोदी एंड कंपनी को भास्कर की हर कमजोरी की खबर है. इसलिए मोदी कह रहे हैं मेरा गुलाम मुझसे बगावत कैसे कर सकता है? पर कहते हैं न एक अच्छाई आपकी सब बुराइयों पर पर्दा डाल देती है तो कोरोनाकाल में की गई अच्छी पत्रकारिता इस अखबार के सारी गलतियों को माफ करती है.इसलिए इस अखबार के साथ खड़े होने का वक़्त है.पर भास्कर को आगे अपना स्टैंड क्लियर रखना होगा.
आपको वायर,स्क्रॉल,न्यूज़क्लिक, कारवां जैसे मीडिया संस्थानों की तरह चीखकर सच बोलना होगा.भास्कर बने रहेंगे तो रेड का खतरा बना रहेगा! भास्कर कल के अंक में इस बात का सबूत दें कि वो डरा नहीं है.
(लेखक सोशल एक्टिविस्ट एंव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)