दीपक असीम
सुल्लीएप बनाने का आरोपी औंकारेश्वर ठाकुर इंदौर से पकड़ाया है और इससे दैनिक भास्कर के रिपोर्टर और शायद पूरे संपादकीय स्टाफ की छाती फट रही है। इसीलिए ऐसी रिपोर्टिंग की गई है। जब किसी आरोपी को पकड़ा जाता है तो उसका बयान उस तरह नहीं छापा जाता जिस तरह इसने छापा है।
ओंकारेश्वर ठाकुर कह रहा है कि अगर मैं दोषी हूं तो मुझे फांसी पर टांग देना। इतना ही नहीं उसके पिता का भी बयान है जिसने राजेंद्र नगर थाने में दिल्ली पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ आवेदन दिया है। हद तो यह है कि पड़ोस में रहने वाली किसी मुस्लिम महिला का भी ओपिनियन है, जो कह रही है कि औंकारेश्वर ऐसा कर ही नहीं सकता। तमाम लोग झूठे आरोपों में पकड़ाते हैं। हो सकता है कि औंकारेश्वर भी निर्दोष सिध्द हो।
मगर कोई और खासकर जब कोई दलित-मुस्लिम इस तरह के आरोप में पकड़ाता है तो उसके पिता का और उसके पड़ोसियों का बयान नहीं होता। ऐसा जान पड़ रहा है जैसे भास्कर के रिपोर्टर का बस चले तो वो ओंकारेश्वर, उसके पिता और उसकी पड़ोसन के बयान के आधार पर औंकारेश्वर को अभी निर्दोष साबित करके हथकड़ी खुलवा दे। यहां गौरतलब है कि औंकारेश्वर का नाम बुली बाई एप के आरोपियों ने लिया है। दिल्ली पुलिस को कुछ सबूत भी मिले हैं। दिल्ली पुलिस सीधे गृहमंत्री अमित शाह से आदेश लेती है। छत्तीसगढ़ या महाराष्ट्र पुलिस ने अगर ये गिरफ्तारी की होती तो पता नहीं दैनिक भास्कर का रिपोर्टर क्या करता।
ओंकारेश्वर के लिए जिस तरह की रिपोर्टिंग की गई है, उस तरह की रिपोर्टिंग किसी दलित मुस्लिम के लिए नहीं की जाती। उनका तो नाम आते ही मान लिया जाता है कि ये दोषी हैं। फिर रिपोर्टर उन लोगों के बयान लेता है जो उस आरोपी के खिलाफ बोलते हैं। यह कैसी पत्रकारिता है, जो नफरत फैलाने वालों के पक्ष में खड़ी नज़र आती है? अगर दैनिक भास्कर का रिपोर्टर आरोपी को बेगुनाह समझता है तो उसे मेहनत करके सबूत ढूंढने चाहिए और सबूत छापकर बताना चाहिए कि पुलिस ने यह गलती की है। सिर्फ आरोपी, आरोपी के पिता, आरोपी की पड़ोसन के बयान से ओंकारेश्वर निर्दोष साबित नहीं सकता।