सुसंस्कृति परिहार का लेख: कश्मीरियत पर हमले फिर भी वह है ज़िंदाबाद!

ज़र्रा ज़र्रा है मेरे कश्मीर का मेहमाननवाज़,

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रास्ते में पत्थरों ने भी दिया पानी मुझे

जिस किसी शायर ने ये वादिए कश्मीर के बारे में कहा बहुत ख़ूब कहा है वाकई कश्मीर रियायत और यहां के लोगों का जवाब नहीं।कश्मीर में सिख, हिंदू अल्पसंख्यक हैं किंतु यह सच है कि वहां महाराजा रणजीत सिंह ने राज किया जो सिख थे जिनके पास कहा जाता है दुनिया का सबसे बड़ा कोहिनूर हीरा था जिसे अंग्रेज लूट कर ले गए  और वह महारानी के मुकुट में तीन टुकड़ों में आज भी चमकता है।यह उस दौरान कश्मीर की सम्पन्नता का प्रतीक है। महाराजा हरिसिंह जो हिंदू राजा थे ने आज़ाद भारत के साथ जुड़ने का नेहरू के साथ फैसला किया तभी कश्मीरियत की हिफाज़त के लिए धारा 370 में विशिष्ट अनुबंध किए गए।

महत्वपूर्ण बात यह है कि बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी के बावजूद कभी कोई तनाव इन तीनों धर्मावलंबियों के बीच नहीं रहा। शुरू से कश्मीर के तमाम लोगों का रुझान भारत की ओर रहा है।आज भी वे कश्मीर घाटी को अपना वतन कहते हैं और भारत के लोगों को भी मेहमान ही मानते हैं।उनकी दिली इच्छा कश्मीर को वतन मानती है। आज़ादी के बाद उनके रिश्ते भारत से मज़बूत हुए जिससे पाकिस्तान बहुत नाराज़ रहा और वह अपनी खुन्नस आज भी आतंकियों को भेजकर जब तब निकालता रहता है।अब तो यह बेरोजगार युवाओं का एक धंधा बन चुका है।

जब शेख अब्दुल्ला आज़ाद भारत होने के बाद महाराजा हरिसिंह से हुए समझौते के मुताबिक कश्मीर के प्रधानमंत्री बने तब पाकिस्तान ने उन्हें बरगलाने के पुरजोर प्रयास किए किंतु वे समझौते पर अडिग रहे तब तो पाकिस्तान ने यहां जिस तरह अशांति फैलाई वह दुनिया जानती है।मगर कश्मीर के लोगों ने अपने आपको धर्मों के आधार पर कभीअलग नहीं माना दोनों समुदाय के लोग मारे जाते रहे। कश्मीरियत सलामत रही।उधर धीरे धीरे कश्मीर भारत का एक राज्य बन गया और प्रधानमंत्री की जगह मुख्यमंत्री कहलाने लगा।इस सबका श्रेय शेरे कश्मीर शेख अब्दुल्ला को ही जाता है। आतंकवाद के खिलाफ भी कुछ काम हुआ। दूसरी तरफ संघ कश्मीर मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने का ख्वाब देख रहा था ।

1991में भाजपा के समर्थन से बनी वी पी सिंह की सरकार की बदौलत कश्मीर घाटी में पहली बार संघ ने मज़बूती से दस्तक दी। जगमोहन राज्यपाल बने उन्होंने वैष्णव देवी और अमरनाथ यात्राओं को बढ़ावा दिया ।कश्मीर में अच्छा खासा रोजगार बढ़ा। लेकिन इसके साथ हिंदू मुस्लिम अलगाव के लिए कश्मीरी पंडितों का पलायन कराया गया बताते हैं उनसे कहा गया कि मुस्लिमों को हटाकर उनकी वापसी होगी। वे उनकी साजिश का शिकार बन गए।आज तक कुछ विस्थापित पंडित जो कश्मीर वापस आए हैं सुकून से नहीं है। बाकी घर वापसी के लिए छटपटा रहे हैं।जबकि केन्द्र शासित राज्य बनाने और धारा 370 हटाने के बाद अल्पसंख्यक समुदाय को सुरक्षा की गारंटी दी गई थी।

इस बीच धारा 370की समाप्ति और केंद्रीय सरकार के शासन के बावजूद वहां के हालात में कोई बदलाव नहीं आया है।रियाया परेशान हैं। हिंदू मुसलमान बराबर आतंकियों द्वारा मारे जा रहे हैं उनके बीच विद्वेष फैलाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।कश्मीर फाईल्स ने जो आग उगली उसका तिलस्म देश के अन्य राज्यों में ज़रूर दिखाई दे रहा है किन्तु कश्मीर में वह ना के बराबर असरकारक रहा है। उल्टे उसमें दिखाई गई नफरतों के बावजूद कश्मीरियत अपने अहसास और मासूम टूटे रिश्ते को जोड़ने में लगे हैं।जबकि कश्मीरियों के दिल में घाटी से गए हिंदू भाइयों के प्रति दर्द रहा वे उनके घरों की सुरक्षा करते हैं मेरा भाई एक दिन वापस आएगा। झूठ देखकर उनका एहसास लौटा है।

पिछले दिनों जब राहुल भट्ट की हत्या उनके दफ्तर में की गई उसी दौरान सिर्फ 18 घंटों बाद जम्मू और कश्मीर पुलिस के रियाज़ ठोकर की संदिग्ध चरमपंथियों ने पुलवामा में हत्या कर दी गई। देशवासी तब सिर्फ कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा के लिए चिंता में थे मगर कश्मीरियत का मज़बूत रंग तब देखा गया जब पंडितों के साथ मुस्लिमों ने मिलकर राहुल और रियाज़ की हत्या के खिलाफ ज़ोरदार प्रदर्शन किया और  बीजेपी सरकार पर झूठे वादे करने और उन्हें पूरा न करने का आरोप लगाया है। राहुल भट्ट और रियाज़ की मौत के विरोध में हजारों लोग सड़कों पर उतरे और उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ नारे लगाए। उन्हें तितर बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज तक किया। उन्होंने बड़ी देर कर दी असलियत जानने में। फिर भी देर आए दुरुस्त आए। इससे उस आशा को बल मिलता है कि कश्मीर को कश्मीरियत विहीन करना आसान नहीं टेढ़ी खीर है।

ऐसे तनाव भरे समय में एक और दुखद घटना हुई लेकिन इस घटना से कश्मीरी पंडितों को घाटी के मुसलमानों से हौसला मिला। जानकारी के मुताबिक बडगाम के बेहद तनाव भरे माहौल के बीच कुलगाम में एक 80 साल की कश्मीरी पंडित महिला दुलारी भट्ट की प्राकृतिक मौत हो गई। वृद्धा दुलारी की मौत के बाद मुसलमानों ने कश्मीरी पंडितों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनका अंतिम संस्कार किया। दुलारी कुलगाम के वाई के पोरा गांव की रहने वाली थीं।

जानकारी के मुताबिक 80 साल की भट्ट एक विवाह समारोह में शामिल होने के लिए कुलगाम से अनंतनागगई थीं, जहां अचानक उनकी तबियत खराब हो गई और उन्होंने दम तोड़ दिया।इसके बाद दुलारी के परिजन उनका शव लेकर अनंतनाग से लेकर कुलगाम स्थित उसके पैतृक गांव वाई के पोरा लेकर आये, जहां गांव के सैकड़ों मुस्लिम पड़ोसी वृद्धा दुलारी भट्ट के शव की प्रतिक्षा कर रहे थे। मट्टन के गांव के रहने वाले अल्ताफ अहमद ने कहा, “मट्टन बहुत अच्छी थीं, उनके हर त्योहारों पर गांव के मुसलमान उनसे मिलने के लिए जाते थे और जब भी गांव में किसी की मौत हो जाती थी वो सभी तरह के रिचुअल के पारे में गांववालों को बताया करती थीं। वह कश्मीरियत की जिंदा मिसाल थीं। अब जब वो चली गईं तो हमारा फर्ज था कि हम भी उन्हें इज्जत और सम्मान के साथ आखिरी विदाई दें।”

इसी तरह जाति-धर्म से परे उठ कर राहुल भट ने रोहिंग्या मुस्लिमों के हितों के लिए आवाज उठाई थी। फेसबुक पर अपने प्रोफाइल के साथ उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार को रोकने की अपील की थी। यह सितंबर 2017 की बात है। इसके ठीक एक महीने पहले अगस्त 2017 में लगभग 900000 रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार से भाग कर जान बचाने के लिए बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी थी। इनमें से कई हजार भारत में भी अवैध ढंग से घुसे। अफसोस यह कि दूसरे देश के मुस्लिमों के लिए आवाज उठाने वाले राहुल भट को शायद यह नहीं पता होगा कि उनकी जान एक दिन इस्लामी आतंकी ही लेंगे।

बीते आठ महीनों में कश्मीर घाटी में कम से कम छह कश्मीरी पंडितों और एक हिंदू राजपूत को संदिग्ध चरमपंथियों ने निशाना बनाया है. इनमें से चार की मौत हो गई।हमले की ये घटनाएं कश्मीर घाटी के अलग- अलग ज़िलों में हुईं. अक्तूबर, 2021 में घाटी में पांच दिनों के भीतर सात आम नागरिकों की हत्याएं हुईं।इनमें एक सिख महिला शिक्षक और एक कश्मीरी पंडित महिला शिक्षक के अलावा कश्मीर के एक मशहूर केमिस्ट माखन लाल बिंद्रू भी शामिल थे।

ये तसल्लीबख़्श बात है कि कश्मीर के लोग कश्मीरियत को ख़तरे में डालने वालों के खिलाफ लामबंद हो रहे। वे यह जानते हैं कि कश्मीरी मुसलमान नहीं बल्कि बाहर से आ रहे आतंकी इन घटनाओं की जिम्मेदार है।वे ये भी मानते हैं ऐसी घटनाओं के बाद कश्मीर के मुस्लिम युवाओं को बेवजह मारा और सताया जाता है। उम्मीद  है सिख, हिंदू अल्पसंख्यक होने के बावजूद यहां पूर्ववत अपनी स्थिति सुदृढ़ करेंगे एवं मन का मैल साफ करेंगेऔर कश्मीरियत को सलामत रखेंगे। ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद कश्मीरीयत ज़िंदाबाद।