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भगवा चोले की आड़ में अपराधी! यह वो जमात है, जो धर्म, राष्ट्र और समाज के साथ ही व्यक्तित्व को भी दूषित कर देती है

अजय शुक्ल

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भगवा चोला ओढ़कर धर्म के मूल और आत्मा की हत्या करने वाले स्वयंभू संतों की देश में लाखों की जमात है। यह जमात सौहार्द सम्भाव और सद्भावना को बढ़ावा नहीं देती बल्कि आपस में लोगों को लड़ाती है। तर्कहीन आलोचना ही नहीं करती बल्कि अभद्रतापूर्ण आचरण करते हुए गालियां बकती है। ऐसे लोग संत कैसे हो सकते हैं? पिछले सप्ताह रायपुर में आयोजित धर्म संसद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को गाली देने वाले तथाकथित संत के नाम का उच्चारण ही गाली के समान होगा। यह शख्स मक्कार किस्म का है। यह बात वह खुद मानता है कि पढ़ने से बचने के लिए वह मक्कारी करता था, तभी सिर्फ आठवीं पढ़ा है। उसने अकोला नगर निगम चुनाव में क़िस्मत आज़माई थी मगर बुरी तरह हारा था। उसने  विश्व स्वास्थ्य संगठन एक फ़्रॉड संस्था और इसके डॉक्टरों-विशेषज्ञों को फ़्रॉड कहा था। उसने दावा किया था कि जिन कोविड मरीज़ों के शव परिजनों को नहीं सौंपे जाते हैं, उनकी किडनी और आंखें आदि निकाल ली जाती हैं। बहराल, छत्तीसगढ़ पुलिस ने इस अपराधी को गिरफ्तार कर हवालात में डाल दिया, जबकि हरिद्वार की धर्म संसद में सांप्रदायिक जहर उगलने वाले तथाकथित संतों पर वहां की सरकार और पुलिस मौन है। छत्तीसगढ़ की पुलिस ने पार्षद प्रमोद दुबे की शिकायत पर इस स्वयंभू संत को गिरफ्तार किया। उसकी गिरफ्तारी पर भाजपा और उसके समर्थित संगठनों के लोग बिलबिलाते हुए निकल पड़े हैं।

संत-महात्मा कौन होता है, यह हमारे धर्मग्रंथों ने बहुत सलीके से समझाया है। संत उस व्यक्ति को कहते हैं, जिसका आचरण सत्य, अहिंसा और सहिष्णुता का हो। जो आत्मज्ञानी होने के साथ ही सर्वजनहिताय, सर्वजनसुखाय का चिंतन करता हो। रामचरित मानस के अरण्यकांड में राम के सवाल, संत कौन है? पर ऋषि नारद बताते हैं “षट विकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा।। अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी।। सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना”।। अर्थात “जो लोग काम, क्रोध ,लोभ, मोह, मद, मत्सर इन छह विकारों से रहित, पाप न करने वाले, कामना रहित, बार-बार विचारों को न बदलने वाले, दूसरों के लिए हर समय त्याग की भावना रखने वाले, पवित्र भाव युक्त, दूसरों को सुख देने के लिए तत्पर, विस्तृत ज्ञान रखने वाले, कम खाने वाले, कोमल हृदय, गहरी सूझबूझ रखने वाले, योगी, सतर्क, सावधान, सदैव दूसरों को सम्मान देने वाले, अभिमानरहित, धैर्यवान ,धर्म के व्यवहारिक रूप को समझकर उसे आचरण में लाने वाले अत्यन्त बुद्धिमान हों, उन्हे ही संत कहा जाता है”। यजुर्वेद के अध्याय 19 में संत के बारे में भी यही वर्णन मिलता है। तुलसीदास जी लिखते हैं, “संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना। निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर दुःख द्रवहिं संत सुपनीता”।। यानी, “संतों का हृदय मक्खन के समान होता है, ऐसा कवियों ने कहा है। परंतु उन्होंने असली बात कहना नहीं जाना क्योंकि मक्खन तो अपने को ताप मिलने से पिघलता है, जबकि पवित्र संत दूसरों के दुःख देखकर पिघल जाते हैं”।

हम जब मोहनदास करमचंद गांधी, यानी महात्मा गांधी के जीवन को परखते हैं, तो पाते हैं कि ये सभी गुण उनके जीवन में शामिल थे। यही वजह है कि उनसे असंतुष्ट होकर कांग्रेस छोड़ने वाले सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो पर उन्हें महात्मा कहकर संबोधित किया था। संपूर्ण विश्व के महान विचारकों ने उन्हें महात्मा के रूप में ही स्वीकार किया है। लंदन स्थित संसद चौक पर ब्रिटिश साम्राज्य के हीरो रहे विंस्टन चर्चिल की प्रतिमा के बगल में महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित की गई है। दोनों विभूतियां वैचारिक रूप से एक दूसरे की विरोधी थीं। चर्चिल ब्रिटिश साम्राज्य के रक्षक थे, तो गांधी ने उनके साम्राज्यवाद को तोड़ने का काम किया। चर्चिल वही शख्स थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया था। उन्होंने गांधी को अर्धनग्न फकीर कहकर उनके विचारों को खारिज कर दिया था। गांधी पहले भारतीय और कभी किसी पद पर न रहने वाले एकमात्र ऐसे शख्स हैं, जिनकी प्रतिमा यहां लगी है। यह प्रतिमा पैलेस ऑफ वेस्टमिंस्टर में स्थित ब्रिटिश संसद के सदनों के ठीक सामने लगाई गई है। इससे समझा जा सकता है कि गांधी के विचार उनकी हत्या के 74 साल बाद भी उनके वक्त से अधिक प्रासंगिक हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी सही ही कहते हैं कि गांधी की हत्या की जा सकती है मगर उनके विचारों की नहीं। जो लोग उन्हें गाली देते हैं, वो भी वैश्विक चर्चा में आ जाते हैं क्योंकि ऐसे छोटे लोग, आसमान से भी बड़े व्यक्ति पर हमला करके खुद की पहचान बनाने की साजिश रचते हैं।

ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने गांधी की मृत्यु पर कहा था कि किसी देश के लोग क्या इतने अहसान फरामोश और निष्ठुर हो सकते हैं, जो अपने ही संत समान बुजुर्ग की हत्या कर दें। महात्मा गांधी की हत्या पर सरोजिनी नायडू ने कहा था, “एक पागल उन्मादी हिंदू हत्यारे ने युग के सबसे बड़े हिंदू की हत्या कर दी है”। आज उसी हत्यारे के वंशज गांधी के वंशधरों के विनाश की योजनाओं पर अमल कर रहे हैं। आज उन्हें गाली देने या उनकी आलोचना करने वालों पर यह सटीक बैठता है। एक और सच यह भी है कि संघ की विचारधारा गांधी का वोट बैंक के लिए राजनीतिक इस्तेमाल करती है मगर सुबह शाम उनकी हत्या करने से भी नहीं चूकती। ये लोग हिंदू धर्म की हत्या, अपने हिंदुत्व के जरिए कर रहे हैं। हिंदू धर्म जहां हमें वसुधैव कुटुंबकम और सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय सिखाता है, वहीं हिंदुत्ववादी हमें सिर्फ अपने सुख और स्वार्थ में समाज और परिवारों को तोड़ना सिखाते हैं। यह नीति धर्म के मूल को नष्ट करने वाली है। हमें अपने धर्म के नीति-नियमों और सिद्धांतों से सीखना चाहिए, न कि उसका पालन करने वाले संत-महात्माओं को गालियां देनी चाहिए। जो भी इनका समर्थन करता है, वह सबसे बड़ा अपराधी है।

हिंदू धर्म वास्तव में वैदिक सनातन परंपरा से जन्मा है। जो विश्व का सबसे पुराना धर्म भी है और उसका धर्मग्रंथ ऋग्वेद सबसे प्राचीन भी। इसमें हमें दैनिक जीवन से लेकर अपने व्यवहार और प्रकृति के महत्व को समझने का मौका मिलता है। इसमें राजा के कर्तव्यों से लेकर प्रजा तक के कर्तव्य बताये गये हैं। यही नहीं, इसके अनुसार आचरण करने वाला हर व्यक्ति संत बन जाता है, यह भी स्पष्ट है। इसके बाद भी अगर भगवा ओढ़कर स्वयंभू संत मृत और महान व्यक्तियों का उपहास उड़ाते और गालियां देते हैं, तो यह हम सभी हिंदुओं के लिए शर्म का विषय है। यह उनके लिए और भी लज्जाहीनता का विषय है, जो उस स्थान पर उपस्थित थे, जहां महात्मा गांधी जैसे संत को गाली दी गई। वे लोग और भी निंदनीय हैं, जिन्होंने ऐसे शब्द सुनकर विरोध करने के बजाय तालियां पीटीं। यह वो जमात है, जो धर्म, राष्ट्र और समाज के साथ ही व्यक्तित्व को भी दूषित कर देती है। हमें ऐसे लोगों और जमात से बचना चाहिए। दूषित विचार ही व्यक्ति के चरित्र को दूषित करते हैं और दुर्भाग्यपूर्ण राष्ट्र बनाते हैं।

(लेखक डेली वर्ड के ग्रुप एडीटर हैं।)