नई दिल्लीः यरुशलम की एक ज़िला अदालत ने अल-अक़्सा मस्जिद परिसर में चार यहूदी लड़कों के पूजा करने के ख़िलाफ़ फ़ैसला दिया है। यहूदियों के अनुसार इस जगह पर उनका पवित्र माउंट मंदिर है। ज़िला अदालत ने निचली अदालत के उस फ़ैसले को पलट दिया है, जिसमें अल-अक़्सा मस्जिद परिसर में पूजा करने के चलते लगे 15 दिनों के प्रतिबंध को हटा दिया गया था। फ़लीस्तीन इसे यथास्थिति में बदलाव मान रहा था।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार अल-अक़्सा मस्जिद परिसर जो कि पुराने यरुशलम शहर में है, उसे मुसलमानों की सबसे पवित्र जगहों में से एक माना जाता है। लेकिन इस जगह पर यहूदियों का पवित्र माउंट मंदिर भी है। यहूदियों के यहाँ पूजा करने को लेकर कई बार विवाद होता रहता है।
इसराइल और फ़लस्तीन के बीच विवाद का ये एक अहम कारण है। यहाँ “यथास्थिति” बनाए रखने के लिए जो समझौता हुआ था उसके तहत इस परिसर में सिर्फ़ मुसलमान प्रार्थना कर सकते हैं और ग़ैर-मुस्लिम यहाँ आ सकते हैं लेकिन लेकिन उन्हें यहाँ आकर प्रार्थना करने की अनुमति नहीं है।
क्या है मामला
पिछले हफ़्ते चार यहूदी लड़कों को अल-अक़्सा मस्जिद परिसर में प्रार्थना करने के बाद गिरफ़्तार किया गया और उनके पुराने यरुशलम शहर आने पर 15 दिनों का प्रतिबंध लगा दिया गया था। लड़कों ने प्रतिबंध के ख़िलाफ़ मैजिस्ट्रेट कोर्ट में अपील की।
उनका कहना था कि उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स में पढ़ा है कि इसराइल पुलिस कमिश्नर कोबी शाब्ताई ने यरुशलम में तीनों धर्मों को पूजा की आज़ादी का अधिकार दिया है। कोर्ट ने रविवार को उनकी अपील को स्वीकार कर लिया और उन पर लगे 15 दिनों के प्रतिबंध को हटा दिया।
इस फ़ैसले पर फ़लस्तीन, हमास और जॉर्डन ने कड़ी आपत्ति जताई और उन्होंने बयान जारी कर कहा कि यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ। इसके बाद पुलिस ने कहा कि वो इस आदेश के ख़िलाफ़ ज़िला अदालत में अपील करेंगे।
कोर्ट ने क्या कहा
ज़िला अदालत ने बुधवार को इस फ़ैसले को पलट दिया। अदालत ने कहा कि मीडिया रिपोर्टों में कथित तौर पर की गई टिप्पणियों पर भरोसा करके स्पष्ट प्रावधानों का उल्लंघन करना और उन (लड़कों) पर लगे आरोपों को ख़ारिज करना समस्या वाली बात है।
न्यायाधीश ने कहा कि अल-अक़्सा मस्जिद में यहूदियों का पूजा का अधिकार ही सबसे अहम नहीं है। ये लोगों की सुरक्षा के लिए क़ानून व्यवस्था बनाए रखने से बढ़कर नहीं है। चार लड़कों के वक़ील नाती रोम ने दावा किया कि जब से मजिस्ट्रेट कोर्ट का फ़ैसला आया है तब से दबाव और धमकियों का एक अभियान चल रहा है। ये कोर्ट की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है और न्यायिक प्रक्रिया को प्रदूषित करना है।