एल. एस. हरदेनिया
धर्म बड़ा या देश? यह प्रश्न मद्रास हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान पूछा। याचिकाकर्ताओं ने यह मांग की थी कि मंदिरों में गैर-हिन्दुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है। इसके बाद भी कोई हिजाब के पीछे दौड़ रहा है और कोई धोती के। इन दिनों ड्रेस कोड को लेकर पूरे देश में विवाद छिड़ा हुआ है। क्या हम एक देश हैं या हम धर्म के नाम पर विभाजित हैं? यह कहां तक उचित है?
याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि एक धर्म के श्रद्धालुओं का एक ड्रेस कोड होना चाहिए। इसी तरह गैर-हिन्दुओं का हिन्दू मंदिरों में प्रवेश वर्जित होना चाहिए। उन्होंने यह मांग भी की कि मंदिरों के प्रवेश द्वार पर एक बोर्ड लगा होना चाहिए जिसपर प्रवेश के लिए ड्रेस कोड का विवरण होना चाहिए और उसपर यह भी स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए कि मंदिर में गैर- हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है।
इस पर बेंच ने आश्चर्य प्रगट करते हुए टिप्पणी की कि बोर्ड पर ड्रेस कोड कैसे लिखा जा सकता है जब कोई ड्रेस कोड है ही नहीं। बेंच ने याचिकाकर्ताओं से इस का सबूत पेश करने को कहा जिसके अनुसार धोती, पेन्ट-शर्ट या अन्य किसी पहनावे को ड्रेस कोड बताया गया हो।
बेंच ने पुनः कहा कि धर्म के नाम पर देश को न बांटें। क्योंकि धर्म से ज्यादा बड़ा और महत्वपूर्ण देश है। (11 फरवरी, 2022 के ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित)