रोहित देवेन्द्र
कांग्रेस एक ऐसी अम्ब्रेला पार्टी रही है जहां सेंटर टू राइट सोच रखने वालों के लिए उतनी ही गुंजाइश है जितनी सेंटर टू लेफ्ट वालों की। यहां समाजवाद भी जगह पाता है और पूंजीवाद भी। यह पार्टी पब्लिक सेक्टर को भी बुरी निगाह से नहीं देखती रही और मौका पड़ने पर कॉर्पोरेट सेक्टर के साथ भी खड़ी दिखी है। यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए भी आगे आती है और मनरेगा के लिए भी। यह टाटा, बिड़ला, बजाज, अंबानी के साथ भी दिखती है और गांव के हरिया और किशन के साथ भी। इसके नेता बीएचयू की बुनियाद में भी खड़े हैं, जेएनयू और एएमयू के भी।
फिर ऐसा क्या हुआ कि देश के आम आदमी की निगाहों में विचाराधारा के स्तर पर सेंटर में खड़ी यह पार्टी वामपंथी पार्टी जैसी दिखने लगी। धीमे-धीमे ही सही लेकिन ‘दिशाहीन अतिवाद’ की तरफ झुकी लेफ्ट आइडियोलॉजी और कांग्रेस में फर्क होना बंद हो गया। हर ऐसी चीज जिसे राष्ट्रवाद के चश्मे से देखा गया कांग्रेस को बिना उसके कुछ कहे सुने उस बात का विरोधी मान लिया गया। कुछ ऐसा जरुर हुआ होगा कि देश के मध्यमवर्ग को ये पार्टी एक कौम की हितेषी और दूजी कौम की विरोधी लगने लगी। उसे ‘एंटी स्टेबलिसमेंट’ माना जाने लगा। जो स्टीकर वामपंथ के साथ सदैव चस्पा रहा है।
इसमें शक नहीं कि इस इमेज को गढ़ने में बीजेपी की विशालकाय और चौतरफा हमला करने की काबलियत रखने वाली मशीनरी का बड़ा रोल रहा है। पर सवाल यह नहीं है, सवाल यह है कि कांग्रेस ने ऐसा होने कैसे दिया। कांग्रेस ने अपनी इमेज ऐसे कैसे बननी दी कि वह बहुसंख्यकों के हितों के खिलाफ खड़ी पार्टी है। ऐसा कैसे हो गया कि 85 प्रतिशत आबादी वाले समूह को यह अपने हितों की पार्टी नहीं लगने लगी। ऐसा कैसे हुआ कि लोगों को लगने लगा कि कांग्रेस मस्जिद या गिरजाघर को लेकर तो संवेदनशील है, मंदिर को लेकर संकीर्ण। जिस महान धर्मनिरपेक्ष छवि की कांग्रेस पोषक थी वह धर्मनिरपेक्ष होना एक गाली की तरह प्रयोग में कैसे होने लगा।
ऐसा कैसे हुआ कि नेहरु जैसा आइकॉन कटघरे में खड़ा हो जाता है। नेहरु सोशल मीडिया के फॉरवर्ड के जरिए जज होने लगते हैं। नेहरु पर जोक बनते हैं। इसी इंटरनेट की दुनिया में कश्मीरी पंडित नेहरु मुसलमान साबित किए जाते हैं। हर दिन, हर घंटे अनपढ़ गंवार किस्म के व्यक्ति भी नेहरु के चरित्र से जुड़े जोक फॉरवर्ड करते हैं। उन जोक्स पर एक किस्म की स्वीकार्यता है। ऐसा कैसे हुआ कि हर दिन गांधी की ऊंची प्रतिमा का कुछ हिस्सा खुरचकर उसे नीचा करने की कोशिश की जाती रही और ऐसे करने में किसी को बुरा भी नहीं लगा।
ऐसे कैसे हुआ कि आज यूपी, बिहार में 25 साल का एक लड़का अपने साथियों के बीच गर्व से नहीं कह सकता कि वह कांग्रेसी है। ऐसा कैसे हुआ कि ‘कश्मीर फाइल’ देखकर निकली जनता जिनमें ज्यादातर राजनीतिक रुप से बहुत सजग और अपडेट नहीं है वह फिल्म देखकर कांग्रेस के मुर्दाबाद होने के नारे लगाते हैं, वह भी तब जबकि यह फिल्म एक शब्द भी कांग्रेस के बारे में कोई बात नहीं करती।
कांग्रेस लेफ्ट जैसी क्यों बन गईं? क्यों उसके सबसे बड़े नेता दो भारत होने की बात कहते हैं। वह उस पार्टी के नेता हैं जो देश की आजादी के बाद हांसिए पर नहीं रही है। वह देश की मुख्य पार्टी रही है और दशकों तक केंद्र और राज्यों में सत्ताओं में रही है। दो भारत की बात करना लेफ्ट पार्टियों के लिए सहूलियत का सौदा हो सकता है कांग्रेस के लिए नहीं। ऐसे कैसे हो गया कि दक्षिणपंथी विचारधारा का विरोध करते-करते एक धर्म के विरोध को लेकर अतिवाद पर खड़े लोग कांग्रेसी लगने लगे। ऐसा कैसे हो गया कि ट्वीटर और फेसबुक के वामपंथी, लोगों को कांग्रेसी नजर आने लगे और वह स्पेस जो कांग्रेस का हुआ करता था बीजेपी का हो गया।
ऐसा कैसे हुआ कि देश के हर मजहब और जाति की पार्टी कांग्रेस अब किसी की नहीं रही। एक पार्टी उसे मुसलमानों की पार्टी साबित करने में आमादा है। मुसलमान को यह अपनी पार्टी नहीं लगती। उसे उप्र में कोई और अच्छा लगता है, बिहार में कोई और, तमिलनाडु में कोई और, केरल में कोई और। कांग्रेस मुसलमानों की च्वाइस नहीं रही। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात जैसे अपवाद हैं, वहां भी कोई और आ जाएगा मुसलमान उसके संग हो लेगा।
ऐसा कैसे हो गया कि कांग्रेस ने जिस 84 प्रतिशत आबादी का तुष्टीकरण नहीं किया उस पर 15-16 प्रतिशत आबादी वाले समूह के तुष्टीकरण का आरोप है। ऐसा कैसे हो गया कि कसाब का बिरयानी खिलाने वाला झूठा जुमला कांग्रेस के गले सच में मढ़ गया। ऐसा कैसे हो गया कि आम लोगों को लगने लगा कि हिंदुस्तान में हिंदुओं का हित अलग है और मुसलमानों का हित अलग और हिंदुओं का हित कांग्रेस के हित से जुदा है? जिस मुल्क की बुनियाद धर्मनिरपेक्षता पर टिकी हो, जिस पार्टी की बुनियाद धर्म निरपेक्षता पर टिकी हो वह दोनों ही बातें खोखली लगने लगें या खोखली साबित कर दी जाएं। ऐसा कैसे हो गया?
एक ऐसे दौर में जब एक राजनीतिक पार्टी को राष्ट्र की तरह ट्रीट किया जा रहा है ऐसे दौर में कांग्रेस के सामने यह चुनौती यह नहीं है कि वह अपना नया अध्यक्ष किसे बनाए बल्कि चुनौती यह है कि वह अपने इमेज कैसे बदले।
वह कैसे बताए कि वह कांग्रेस है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस। जो महात्मा गांधी, नेहरु, सुभाष, पटेल, राजेंद्र प्रसाद, मदन मोहन मालवीय, बाल गंगाधर तिलक, अबुल कलाम आजाद, लाला लाजपत राय की पार्टी है।
जिसकी जड़ें सोवियत संघ और चीन में नहीं फूटतीं, जिसका जड़ और चेतन सब हिंदुस्तानी ही है