प्रमोद कृष्णम के बयानों से असमंजस में कांग्रेस, क्या “सियासी शहीद” कहलाएंगे आचार्य?

नई दिल्लीः कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के क़रीबी आचार्य प्रमोद कृष्णम द्वारा ज्ञानवापी, ताजमहल, कुतुबमीनार और अपनी ही पार्टी व पार्टी नेताओं के ख़िलाफ बयानबाज़ी को लेकर कांग्रेस इन दिनों असमंजस की स्थिति में है। कभी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो कभी पार्टी एवं पार्टी के दूसरे नेता आचार्य के निशाने पर होते हैं।

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सचिन पायलट की हिमायत में बोलते हुए आचार्य पर अक्सर पार्टी लाइन से भटक जाने के आरोप भी लगते रहे हैं। उदयपुर में 13 से 15 मई तक चले कांग्रेस के “नव संकल्प शिविर” में राहुल गांधी की बजाए प्रियंका गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग करने और राजस्थान में सचिन पायलट के साथ नाइंसाफी होने का बयान दे कर आचार्य प्रमोद कृष्णम, पार्टी आलाकमान के निशाने पर हैं।

पिछले दिनों आज़म ख़ान से सीतापुर जेल में मुलाक़ात के बाद आज़म ख़ान को कांग्रेस में शामिल होने की दावत और उनके स्वागत में लगाए पोस्टर्स के चलते भी आचार्य को पार्टी की नाराज़गी झेलनी पड़ी। अभी हाल ही में कांग्रेस में वामपंथी विचारधारा की पकड़ और पार्टी के भीतर RSS के एजेंट्स होने की बात कह कर आचार्य ने अपने विरोधियों को एक और मौका दे दिया।

आज़म ख़ान और शिवपाल सिंह यादव से बढ़ती नज़दीकियां भी पार्टी को खटकने लगी हैं। इन तमाम कारणों के चलते पार्टी के कई नेता अब आचार्य के ख़िलाफ मोर्चा खोल चुके हैं, ये नेता अब आचार्य के ख़िलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार आचार्य, उत्तर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद या अपने लिए राज्यसभा की सीट में से कोइ एक बात मनवाने के लिए पार्टी पर दबाव की रणनीति के तहत ही ये सब कर रहे हैं।

सियासी जानकार कहते हैं कि आचार्य अपनी मांगें नहीं माने जाने की स्थिति में कांग्रेस से अलग होकर या तो शिवपाल के साथ नया मोर्चा बनाएंगे या फिर एक नया दल बना कर मैदान में उतर सकते हैं। फिलहाल, आचार्य और कांग्रेस दोनों ही एक दूसरे के इंतज़ार में हैं कि “Good Bye” बोलने की पहल कौन करता है!

वैसे, दिलचस्प यह है कि चाहे कांग्रेस आचार्य को बाहर का रास्ता दिखाए या फिर आचार्य ख़ुद ही पार्टी को अलविदा कहें, दोनों ही सूरत में पलड़ा आचार्य का ही भारी रहेगा। निकाले गए तो ज्ञानवापी, ताजमहल, कुतुबमीनार और हिन्दुओं के पक्ष में बोलने पर “सियासी शहीद” कहलाएंगे और अगर ख़ुद पार्टी छोड़ी तो भी हिन्दू हृदय सम्राट बन कर उभरेंगे।