पलश सुरजन
1977-78 में अटल बिहारी वाजपेयी देश की पहली गैरकांग्रेसी सरकार में विदेश मंत्री बने थे। बतौर विदेश मंत्री अटल जी पाकिस्तान के आधिकारिक दौरे पर थे। जहां उन्हें कब, किससे मिलना है, यह सब पूर्व निर्धारित था। लेकिन वे प्रोटोकॉल तोड़ कर महान शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ से मिलने उनके घर गए। श्री वाजपेयी के इस अप्रत्याशित कदम से सभी हैरान रह गए थे, खुद फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ भी आश्चर्य में पड़ गए। लेकिन कवि हृदय वाजपेयी जी ने फ़ैज़ से कहा- मैं सिर्फ एक शेर के लिए आप से मिलने आया हूं। और शेर पढ़ा –
मकाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जंचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले।।
बताया जाता है कि यह सुनकर ‘फ़ैज़’ भावुक हो गए थे। गौरतलब है कि फ़ैज़ की लोकप्रियता भारत और पाकिस्तान दोनों में एक जैसी ही थी। लेकिन अपने प्रगतिशील विचारों और बेबाक लेखनी के कारण फ़ैज़ हमेशा पाकिस्तानी हुकूमत की आंख में खटकते रहे। पाकिस्तान की जेलों में उन्होंने कई बरस गुजारे, लेकिन सच को सच कहने की उनकी आदत और विद्रोही तेवर कभी ढीले नहीं पड़े।
अटल जी ने जो शेर पढ़ा था, वो फ़ैज़ की ग़ज़ल ‘गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौ-बहार’ चले का हिस्सा है। यह ग़ज़ल भी फ़ैज़ ने मांटगुमरी जेल में रहते हुए लिखी थी। बरसों पहले पाकिस्तान की सत्ता को फ़ैज़ के लिखे से दिक्कत थी और अब ऐसा लग रहा है कि हिंदुस्तान में भी प्रगतिशील लेखनी से परहेज की आदत डाली जा रही है।
दरअसल हाल ही में शैक्षणिक सत्र 2022-2023 के लिए नया पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। जारी किए गए आधिकारिक नए पाठ्यक्रम में दसवीं कक्षा की एनसीईआरटी की किताब से फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की दो नज़्मों के अंशों को हटा दिया गया है। जबकि बीते एक दशक से ज्यादा वक़्त से ये छात्रों को पढ़ाई जा रही थीं। जिन दो अंशों को हटाया गया है, उनमें एक है- इतनी मुलाकातों के बाद भी हम अजनबी रहते हैं, इतनी बारिश के बाद भी खून के धब्बे रह जाते हैं। जबकि दूसरी है-आज, जंजीरों में जकड़े किसी चौराहे पर चलो।
गौरतलब है कि 1974 में ढाका से लौटते हुए फ़ैज़ ने नज़्म लिखी थी- हम तो ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बा‘द, फिर बनेंगे आश्ना कितनी मुलाक़ातों के बा‘द। कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार, ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बा‘द। दूसरा अंश फ़ैज़ की उस नज़्म का हिन्दी अनुवाद है जो उन्होंने तब लिखी थी जब उन्हें लाहौर की जेल से जंजीरों में बांधकर तांगे से एक दंत चिकित्सक के पास ले जाया जा रहा था।
यह नज़्म असल में इस तरह है कि आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो, दस्त-अफ़्शाँ चलो मस्त ओ रक्¸साँ चलो। ख़ाक-बर-सर चलो, ख़ूँ-ब-दामाँ चलो, राह तकता है सब शहर-ए-जानाँ चलो। इन अंशों को आज के बच्चे पढ़ते, कुछ नया सीखते, एक महान शायर से परिचित होते। दो बेहतरीन नज़्मों के कुछ हिस्से पढ़कर कुछ छात्रों के भीतर पूरी नज़्म पढ़ने की इच्छा जगती, लेकिन अब ये सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं। पता नहीं खून के धब्बे धुलने की बात करने वाली शायरी से पाठ्यक्रम निर्धारकों को क्या तकलीफ़ हो गई।
वैसे फ़ैज़ की लेखनी ही पाठ्यक्रम से नहीं हटी है, इसके साथ कक्षा दसवीं के खाद्य सुरक्षा अध्याय से कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव के हिस्से को हटाया गया। ग्यारहवीं के इतिहास की पुस्तक से इस्लाम की स्थापना, उसके उदय और विस्तार की कहानी को हटाया गया। कक्षा ग्यारहवीं के गणित की किताब में भी कई बदलाव किए गए। बारहवीं के राजनीति शास्त्र से शीत युद्ध काल और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पाठ बाहर हो गया है, बारहवीं की किताब से मुगल साम्राज्य के शासन-प्रशासन पर एक अध्याय में तब्दीली हुई है और पुस्तक से ‘लोकतंत्र और विविधता’ पर अध्याय भी हटा दिए गए हैं, जो छात्रों को भारत सहित दुनिया भर में जाति और जाति की तर्ज पर सामाजिक विभाजन और असमानताओं की अवधारणा से परिचित कराते हैं।
स्कूली पाठ्यक्रम में इस बदलाव के साथ ही उच्च शिक्षा के लिए भी एक परामर्श जारी हुआ है। यूजीसी और एआईसीटीई ने 22 अप्रैल को एक संयुक्त एडवायज़री जारी कर भारतीय छात्रों को सलाह दी है कि वे पाकिस्तान के किसी भी कॉलेज या शैक्षणिक संस्थान में दाखिला न लें, अगर वे ऐसा करते हैं तो वे देश में काम खोजने या उच्च शिक्षा में आगे बढ़ने में असमर्थ होंगे। इस परामर्श में कहा गया है, ‘‘सभी विद्यार्थियों को सलाह दी जाती है कि वे उच्च शिक्षा के लिए पाकिस्तान न जाएं। पाकिस्तान के किसी कॉलेज या शिक्षण संस्थान में कोई भी भारतीय नागरिक या भारतीय मूल का विदेश नागरिक (ओआईसी) प्रवेश लेना चाहता है तो वह पाकिस्तानी प्रमाण-पत्र के आधार पर भारत में नौकरी या उच्च शिक्षा के लिए पात्र नहीं रह जाएगा।’’
हालांकि परामर्श में इस बात की अनुमति है कि प्रवासी नागरिक और उनके बच्चे, जिन्होंने पाकिस्तान में शिक्षा पाई है तथा भारत द्वारा उन्हें नागरिकता मिली हुई है, वे भारत में रोज़गार हासिल करने के लिए पात्र होंगे, लेकिन इससे पहले उन्हें गृह मंत्रालय की ओर से सुरक्षा मंजूरी लेनी होगी।
इस एडवायज़री के पीछे मकसद क्या है, इसका खुलासा अभी नहीं हो पाया है, लेकिन पहली नजर में यह फैसला अल्पसंख्यकों खासकर जम्मू-कश्मीर के नौजवानों के ख़िलाफ़ लगता है। साथ ही शिक्षा पर भगवाकरण के एजेंडे को थोपने की कोशिश इन फैसलों में दिखती है।
भारत ही नहीं दुनिया भर में इस वक्त तरह-तरह के संघर्ष छिड़े हुए हैं। और इसमें नौजवानों और बच्चों का भविष्य ही दांव पर लगा हुआ है, क्योंकि आज की तबाही उनके कल के निर्माण में बाधा बनेगी। इस बाधा को दूर करने का एक ही उपाय है कि शिक्षा से नवनिर्माण किया जाए। मगर संकुचित और कट्टरता भरी सोच नए रास्तों के बनने में रुकावट डाल रही है। जर्मनी में हिटलर ने यहूदियों का नाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन बाद में यहूदियों ने अपनी मेहनत, ज्ञान और नए शोध व अनुसंधानों से इज़रायल को हर क्षेत्र में अग्रणी बना दिया। आज देश के नौजवानों को ज्ञान और कौशल हासिल करने के लिए राजनैतिक एजेंडों में उलझे बिना अपनी ओर से मेहनत करनी होगी, तभी इन रुकावटों से पार पाया जा सकेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एंव देशबन्धु अख़बार के संपादक हैं)