लॉकडाउन में ताली,थाली बजाने वाला मध्यम वर्ग क्या आर्थिक संकट से निपटने के लिये बलिदान देगा?

गिरीश मालवीय

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मोर्गन स्टेनले के ताजे आकलन के मुताबिक केंद्र का राजकोषीय घाटा 11 साल की ऊंचाई पर (जीडीपी का 6.2%) पर पहुंचेगा. केंद्र राज्य का संयुक्त घाटा 10% से ऊपर होगा. नोमुरा के मुताबिक ग्लोबल रेटिंंग एजेंसी मूडीज रेटिंग घटा सकती है और फिच भी कटौती कर सकता है. कोरोना के असर से राजस्व में कमी के कारण सरकार का कर्ज जीडीपी के 80% तक पहुंचने की आशंका है.

लॉकडाउन ने भारत की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ है यह इस बात से पता चलता है कि सरकार अब तक यह पता नही लगा पाई है इससे उबरने कितना बडा पैकेज चाहिए करेंसी छापने से सरकार डर रही है क्योकि उससे उसकी बची खुची साख भी गिर सकती है.

घाटा बढ़ने से राज्यों और केंद्र दोनों को पेट्रोल डीजल महंगा करना होगा.दिल्ली वालो ने तो पेट्रोल डीजल पर टैक्स लगा दिया है दूसरे राज्य भी तैयारी में है केंद्र मदद देने की स्थिति में नहीं है. जमीन और वाहन पंजीकरण भी महंगे हो सकते हैं मनोरंजन कर,नगर निकाय, सफाई सब पर कोरोना सेस लग सकता है मतलब कोरोना का बिल अंततः सबसे बड़े देशभक्त क्लास मिडिल क्लास के नाम ही फटेगा

भारत मे विदेशी शराब और सिगरेट की खपत सबसे ज्यादा मिडिल क्लास ही करता है शराब पर 70 फीसदी कोरोना का टैक्स लग ही गया है सिगरेट औऱ पान मसालों पर भी टैक्स लगने की संभावना है अंतत: सब कुछ जनता की जेब पर फटेगा.

अब उस मिडिल क्लास को सोचना है कि जिसने लॉकडाउन में खूब मटरगश्ती की है…खूब टिकटाक बनाये…खूब ताली, घँटी बजाई….खूब दिए और दिल जलाए…अब उसे पीना, खाना और मौज मस्ती छोड़कर अगले चार साल देश को बचाना है। अब उसे देश की अर्थव्यवस्था भी सुधारनी है। ऐसे में क्या वे मोदी मोदी का नारा लगाऐंगे और… देश के लिए बलिदान देंगे?

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)