बदलना राहुल को नहीं बल्कि समाज को अपनी सोच बदलनी होगी!

फायक़ अतीक़ किदवई

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लोगों को लगता है सफ़लता के लिए राहुल गाँधी को बदलना होगा, उनको राजनीति करने का तरीका दूसरे सफ़ल नेताओं से सीखना होगा। जबकि हक़ीक़त ये है कि उन्हें नही बल्कि समाज के एक बड़े हिस्से को अपनी सोच बदलना होगी, हम राहुल गाँधी को इसलिए पसंद नही कर सकते कि वो राजीव गाँधी के बेटे है भले उनको इसका लाभ मिला हो, हम उनके व्यक्तित्व से उन्हें पसंद करते है औऱ आप जब वो व्यक्तित्व ही चेंज करवाने पर तुले है तो राहुल सफलता पा भी जाये तो भी क्या फायदा वो उन्ही की कैटगरी में आ जाएंगे।

अब्राहम लिंकन अपनी ज़िंदगी मे छोटे बड़े इलेक्शन मिलाकर तकरीबन पच्चीस तीस इलेक्शन हारे थे, शायद वो उस वक़्त के पप्पू रहे होंगे। हार जीत इतना मायने नही रखती, मायने रखती है कि हार के बावजूद अपने उसूलों पर टिके रहना, मैंने अपने ऑफिस में उन लोगो को भी राहुल गाँधी को पप्पू कहते सुना है जिन्हें ये तक नही पता उच्च सदन निम्न सदन किसे कहते है।

बहरहाल नफ़रत बढ़ाकर, दो धर्मो के बीच खाई चौड़ी कर, दंगे फ़साद कराकर, कोर्ट में संगीन आरोप झेलकर उसके बाद इलेक्शन जीतकर आने को आप समझदारी कहते है तो बेशक वो समझदार है पर देश समाज के लिए हितकर नही है और न उनको चुनने वाले समझदार है।

केवल हिटलर दोषी नहीं था, दोषी थी वहाँ की जनता भी, केवल मुसोलिनो दोषी नहीं था ,दोषी वहाँ की जनता भी थी, अगर पूरा समाज ही उन्माद पसंद होगा तो एक चुना हुआ उन्मादी का व्यक्तित्व बदल जाये तो दूसरा उन्मादी चुन लेंगे क्योंकि उन्हें वो सोच चाहिए जिसको पोषित किया है,  उदाहरण समझिये जब एक कट्टर नेता जो दूसरे धर्म दूसरी जाति दूसरे नस्ल के लोगो के विरुद्ध ज़हर उगलकर सत्ता पाता है औऱ किसी समय उसका ह्रदय परिवर्तन होता है और प्रेम के दो शब्द वो उनके लिए बोल देता हैं जिनके विरुद्ध नफ़रत फैलाता रहा फिर उसी नेता को उसके अपने गाली देने लगते हैं

यानी गलती सिर्फ नेता की नही समाज की भी है जो उसे नही बल्कि उसके उस व्यक्तित्व को पसंद करता है। ऐसे समाज को भी बदलना होगा, जब आप ये कहते है कि राहुल गाँधी राजनीति के लिए नही बने है तो इसका अर्थ जानते है क्या होता है, आप ख़ुद समझते है कि यहाँ झूठ फरेब छल और मक्कारी है जिसमे ये फिट नही बैठते फिर जिनको आपने सत्ता सौंपी वो उसमे फिट बैठते है तो उनमें कैसे गुण हुए?

याद रखिये राहुल गाँधी राजनीति में न होते, कहीं इंजीनियर डॉक्टर प्रोफेसर वगैरह होते तो क्या वहाँ फिट हो जाते? हम किसी से ये नही कह सकते आप सफेद कपड़े पहने है कीचड़ में मत आइये, हमको कीचड़ साफ करना है जहाँ सफेद कपड़े पहनकर इंसान आ जा सके। ये कहकर छुट्टी नही मिलेगी कि राजनीति ऐसी ही होती है, क्यो ऐसी ही होती है? क्यो नही इसे बदलेंगे? हरगिज़ नही चुनेंगे हम कातिलों को अपराधियो को, धर्म जाति के नाम पर लड़ाने वालो को, इसलिए आईटीसेल वाला काम छोड़िये, फेक फ़ोटो एडिटेड ट्वीट्स को इधर उधर फैलाने से अच्छा है खुद समझिये परखिये।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)